कुछ ऐसी यादें या बातें आप को याद रह जाती है जिन से आप को लगाव होता है.मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ जब मैं famous folk singer मालिनी अवस्थी जी से मिली,मैं इसे अपना सौभाग्य मानती हूँ की इटावा महोत्सव के माध्यम से जिन्हें मैं अपना गुरु मानती हूँ उनसे मिल पायी और अच्छा समय बिताया.वो समय हमेशा मेरे स्मृति में संचित रहेगा.
मालिनी जी के द्वारा गाये कुछ गीत मैं आप तक पहुँचा रही हूँ.
पुराने ज़माने में कम उम्र में शादी होना आम बात थी. कई बार तो बच्चों को पता भी नहीं होता था की उनके साथ क्या हो गया माता पिता ही आपस में मिल बैठ कर रिश्ता तय कर विवाह कर देते थे.
समय के साथ जब बच्चे बड़े होते थे तो उनकी मन में तरह तरह के विचार आते थे....एक दूसरे की भावनाओं को समझने का प्रयास करते थे और ऐसे ही प्रयासों में कुछ लोक गीतों का जन्म हो जाता था ऐसा ही इक गीत है जो मालिनी जी ने इटावा महोत्सव के मंच पर गाया और लोगों ने बहुत आनंद लिया.गीत में भाव है की नायिका बार बार अपने पति के बचकाने व्यवहार पर परेशान हो जाती है और अपनी शिकायत गीत में दिखाती है.

"छोटे से बलम"
छोटे से नन्हें से हमका मिले रे बालम,
की छोटे से.
बालम छोटे से.
छोटे से नन्हें से.
जब मैं गयी हलवैया दुकनिया
जब मैं,
मिल गए बालम छोटे से,
अरे वही मचलें वही रोयें
लड्डो दिला दो मेरी जान,
की बालम छोटे से.
छोटे से नन्हें से.
जब मैं गयी बजजवा दुकनिया,
मिल गए बालम छोटे से,
अरे वही मचलें वही रोए
कुर्ता सिला दो मेरी जान,
की बालम छोटे से.
छोटे से नन्हें से.
जब मैं गयी पनवड़िया दुकनिया,
मिल गए बालम छोटे से,
अरे वही मचलें वही रोयें
बीड़ा खिला दो मेरी जान,
की बालम छोटे से.
छोटे से नन्हें से.
मौसम में हल्की ठंड,सज हुआ मंच,दर्शकों की भीड़ और मालिनी जी का गाया इक और लोक गीत,सबके मन को छू गया.मालिनी जी की विशेषता ये है की वो अपने गीतों का चयन,दर्शकों व स्थान के आधार पर करती हैं.यहाँ मैंने ध्यान दिया की वो ठेठ भोझपूरी ना गा कर कुछ अवधी व ब्रज का मधुर राग छेड़ रही थी जिससे सभी झूम जा रहे थे.
वैसे तो ये गीत होली का है पर यहाँ लोक गीत के रूप में गाया गया.
गाने में कृष्ण के साथ गोपियों का परिहास चल रहा है,क्यूँकि इटावा ब्रज भूमि में ही आता है तो लोग बहुत मगन हो कर ऐसे गाने सुनते है.हमारे समाज में तो लोग ईश्वर को भी बाँट लेते है,अयोध्या से और पूरब जाइए तो श्री राम आप के भगवान हैं और इधर ब्रज भूमि आते ही लोग कृष्ण भक्त हो जाते है .चलिए आप तो गीत का आनंद लीजिये.
"रसिया को नार "
रसिया को नार बनाओ री,
रसिया को
रसिया को नार बनाओ री,
रसिया को .
बेन्दी भाल नयन बिच काजल,
नयन बिच काजल,
नयन बिच काजल .
नकबेसर पहनावो री,
रसिया को,
रसिया को नार बनाओ री,
रसिया को.
कटी लहंगा और माही कंचकि,
कटी लहंगा और माही,
माही कंचकि हो माही कंचकि,
कटी लहंगा और माही कंचकि,
चुनर सर पे ओढ़ाओ री रसिया को.
रसिया को नार बनाओ री,
रसिया को.
कान्हा जब मोरी बात ना माने,
कान्हा जब .
बात ना माने कान्हा बात ना माने,
यमुना तट पे ख़ूब नचाओ री,
रसिया को,
रसिया को नार बनाओ री,
रसिया को.
सावन का महीना आते ही जैसे सब कुछ बदल सा जाता है जैसे, मौसम, मन और भावनायें,विवाहित स्त्रियाँ मायक़े जाने की आस लगाए बैठी रहती थी. मन में चाह होती थी की, काश,माँ के घर से बुलावा आ जाये . कुछ दिन तो घर परिवार की ज़िम्मेदारियो से मुक्त हो कर वापस अपना बचपन, पेड़ों पर झूले, पुरानी सखियोंके साथ कजरी और माँ की गोद का आनंद ले सकें. कुछ ऐसे ही भावों को दर्शाता है ये गीत .

"सावन आया"
अम्माँ मेरे बाबा को भेजो री,
की सावन आया, की सावन .
अम्माँ मेरे .
की सावन आया री.
बेटी तेरा बाबा तो बूढ़ा री,
की सावन आया, की सावन.
अम्माँ मेरे बाबा को भेजो री,
की सावन आया.
अम्माँ मेरे भैया को भेजो री,
हो अम्माँ मेरे भैया को भेजो री,
अरी बेटी तेरा भैया तो बाला री,
बेटी तेरा भैया तो बाला री,
की सावन आया.
अम्माँ मेरे बाबा को भेजो री,
की सावन आया री.
बेटी का विवाह और बेटी की विदाई,
हमारी पुरानी परम्परा है.सदियों से ये होता आया है और आगे भी होता रहेगा, भले ही उसका रूप भाव बदल गया है,पुराने ज़माने में बेटी विदा हो कर जाती थी,तो जल्दी अपने मयके वापस नहीं आ पाती थी.जाते जाते जो भाव उसके मन में आते हैं,या पहले से ही कोई शिकायत थी, जो वो कह नहीं पायी घर छोड़ने की जो पीड़ा है वो "अमीर खुसरो " जी द्वारा लिखे गीत में जैसे जीवंत हो उठता है.

"बाबुल"
काहे को ब्याहे विदेश
अरे लखिया बाबुल मोहे ,
काहे को ब्याहे विदेश
हम तो बाबुल तेरे बेले की कलियाँ ,
अरे घर घर मांगन जाए,
अरे लखिया बाबुल मोहे ,
काहे को ब्याहे विदेश .
महलन तले से डोला जो निकला,
अरे बीरन ने खायी पछाड़
अरे लखिया बाबुल मोहे,
काहे को ब्याहे विदेश.
भैया को दियो बाबुल ,
महला दूमहला,
अरे हमको दियो परदेस
अरे लखिया बाबुल मोहे,
काहे को ब्याहे विदेश
अरे लखिया बाबुल मोहे,
काहे को ब्याहे विदेश
अरे लखिया बाबुल मोहे,
काहे को ब्याहे विदेश .