Wednesday, 21 March 2018

चैत की गुनगुनाती धूप




अभी फ़ागुनी रंग और फ़ाग़ के सुरों की खनक बाक़ी ही थी की,नववधु की तरह मंथर व सुरीली चाल के साथ ही चैत की गुनगुनाती धूप और महकती हवा ने हमारे दिलों पर दस्तक दे दी.
             यही तो ख़ासियत है हमारी पुरानी परम्पराओं की,कोई भी मौसम हो या कोई भी त्योहार सबकी अपनी ख़ास अहमियत है और अपनी पहचान.ऐसा ही ख़ास मौक़ा होता है चैत महीने का,ये वो समय होता है जब खेतों में गेहूँ की सुनहरि बालियाँ लहलहा रही होती हैं और किसान उनकी कटाई का आयोजन करते हैं. ये सबके लिए बहुत ख़ुशी का मौक़ा होता है किसान को अपने परिश्रम का फल मिलता है घर में सुख व समृद्धि आती है,इसलिए चैत मास में लोग बडे उमंग व उत्साह से भरे होते है साथ ही इस माह में "चैता" या "चैती" गाने की बड़ी पुरानी परम्परा है. ऐसा खेतों में कटाई के समय काम करते-करते भी गाते है और अक्सर शाम को कटाई के बाद गाँव के चौपाल पर जब लोग जमा होते हैं तो दिन भर की जी तोड़ मेहनत के बाद कुछ आनंद के पल गा बजा कर ख़ुश हो लेते थे."थे" मैंने इस लिए लिखा कि धीरे-धीरे ये परम्परायें कहीं खोती जा रही है. मुझे बहुत दुःख होता है जब मैं देखती हु की ऐसे गीत या परम्परायें अब केवल कुछ बडे शहरों में होने वाले आयोजनो की शोभा बन कर ही रह गयी हैं,उनका वास्तविक स्वरूप कहीं खो गया हैं.
          इसीलिए मैंने एक छोटा सा प्रयास  किया है कि ऐसे भूले-बिसरे गीत "संझा-भोर" के माध्यम से आप तक पहुँचा सकूँ.
      तो चलिये आप को चैता और चैती के बारे में कुछ रोचक बातें बता दूँ.....जैसा कि पहले ही बता चुकी हूँ मूलतः ये फ़सल की कटाई पर आधारित होता है,गाने मस्ती भरे होते हैं,अक्सर विवाहित स्त्रियाँ फागुन में मायक़े गयी होती हैं और उनके ससुराल लौटने का समय भी होता है तो,संयोग और वियोग रस का भी आनंद होता है.अधिकतर चैता या चैती समूह में ढोलक की थाप और मंजीरे की झनकार के साथ ही होता है.चैता गाने की राग बहुत अलग व मनभावन होती है,ये classical और लोकगीत दोनो रूपों में गाया और बहुत पसंद किया जाता है .तो लीजिए कुछ पारम्परिक चैता,चैती का आनंद.
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"सूतल सैयाँ"


अरे साँझ के बेर थाकल हारल
आइ के सजन सूतल परल बा,
अरे कोयल कूक से हूक उठे,
कहीं जागे ना बालम प्राण डरल बा.

सूतल सैयाँ के जगावे हो रामा
कोयल बड़ी पापी -३
कोयल बड़ी पापी कोयल बड़ी पापी 
सूतल सैंया के.......२

रोज रोज़ बोले कोयल साझँहो
बिहनवा -२
आज बोलेलू आधी रतिया 
कोयल बड़ी पापी 
ज़री से कटैबो खनी बगिया हो रामा 
कोयल बड़ी पापी -२
सूतल सैयाँ के.......२
कोयल बड़ी पापी 

होवे द सवेर कोयल खोतवा उज़रबो
होवे द.....२
अरे ज़री से कटेबो खनी बगिया हो रामा 
कोयल बड़ी पापी 
सूतल सैंया के....२
कोयल बड़ी पापी .

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"नयी झूलनी "

नयी झूलनी की छैयाँ बलम 
दूपहरिया बिताई जा हो....३

चार महीना है गरमी के दिनवा
अरे चार महीना 
तर तर चुवे पसीनवा बलम तनी
बेनिया डोलाई जा हो......२
नयी झूलनी की.......२

चार महीना बरखा के दिनवा
अरे चार महीना 
रिमझिम,अरे,रिमझिम बरसे सवनवा 
बलम तनी बंगला छवाई जा हो 
रिमझिम बरसे....२
नयी झूलनी की....२

चार महीना है जाड़ा के दिनवा
अरे चार महीना 
थर थर काँपे बदनवा बलम तनी 
गरवा लगाई ला हो 
अरे,थर थर....२
नयी झूलनी की...२


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"गोरी बहियाँ"

हो,रामा गोरी गोरी बहियाँ.....३
हरी हरी चूड़ियाँ हो रामा चैत मासे...२
हो रामा गोरी गोरी बहियाँ

चैता मासे झूलनी गढ़ाईब हो गोरी चैता मासे......३
ऐ रामा गोरी गोरी बहियाँ....२

ऐ गोरी घर से जब निकर 
ऐ गोरी...३
अरे कजरा लगाई लिहल कर गोरे गलवा
अरे कजरा....२
टोनहा बा सबके नज़रिया हो रामा 
तनी बची के....२
ऐ रामा गोरी गोरी बहियाँ...२

ऐ गोरी जुल्मी तोरी अँखियाँ
ऐ गोरी जुल्मी तोरी अँखियाँ
अरे,हमके सतावे सारी रतिया 
बाँके नैना 
अरे हमके सतावे.....२
ऐ रामा गोरी गोरी बहियाँ....२

ऐ गोरी सुतेलि हम खरिहानी
अरे ऐ गोरी सुतेलि......२
सुतेलि हम खरिहानी
अरे हमके बुलाईं लिहल कर सेजिया
हमके बुलाईं.....२
ऐ रामा गोरी गोरी बहियाँ.


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"अमवाँ"

सब बन अमवाँ बहोरब हो रामा चैत महिनवा....३

कौने मासे अमवाँ बौरन लगे
कौने मासे लागे ला टिकोरवा हो रामा चैत महिनवा 
कौने मासे......२

माघे मासे अमवाँ बौरन लागे
चैत मासे लागे ला टिकोरवा हो रामा चैत महिनवा
माघे मासे......२

सब बन अमवाँ बहोरब हो रामा चैत महिनवा....२

कौने मासे गोरीया बिरहन लागें
कौने मासे कूके कोयलीया हो रामा चैत महिनवा
फागुन मासे गोरीया बिरहन लागे
अरे चैत मासे कूके कोयलिया हो रामा चैत महिनवा.....२

सब बन अमवाँ बहोरब हो रामा चैत महिनवा.