Friday, 15 June 2018

नमस्कार।  
इंटरनेट की इस विशाल दुनिया में आप "संझा -भोऱ " नाम के इस ब्लॉग तक पहुंचे , इसके लिए आप को बधाई।  आपका स्वागत है. आइये, यहीं से शुरुआत करते हैं. यदि अब भी आपको गांव या छोटे शहरों की शादियों में  जाने का,  और कुछ दिन रुकने का, मौका मिलता है तो आप समझ  पाएंगे  की कैसे सुबह की नींद गांव की औरतों के गाने से "disturb " होती है.  कुछ  बुजुर्ग औरतें हर सुबह शाम अपनी टोली सी बना के, पुरानी सी दरी बिछा के , कुछ सुने सुनाये से गीत गा  रही होती हैं.  इन गीतों की धुन आपको जानी पहचानी सी  लगती है ,  मन में दोहराते भी हैं - पर यह गीत बढ़ते वक़्त के साथ कहीं छूट गयें हैं. इसी भूली बिसरी धरोहर से आपको दोबारा  जोड़ने का प्रयास है- Sanjhaa-Bhor

हमारे गीतों  का संकलन आपके लिए पुराने लोक संगीत का आनंद उठाने की एक नयी खिड़की खोलेगा। 
पढ़िए और गांव की शादियों को, दादी की कहानियो को, घर के पुराने आँगन को याद करिये.