ऐसा लगता है जैसे धरती ने फिर एक बार स्नान कर के धानी चुनरिया ओढ ली है चारों ओर हरियाली छायी हुयी है.हर पत्ता हर बूटा रिमझिम फुहार से धुल कर चमक उठे हैं.ये है सावन का महीना जब धरती अपने पूरे सौंदर्य पर होती है.पपिहा,झिंगुर मोर अपने स्वर व सौंदर्य से सब का मन मोह लेते हैं.
स्त्रियाँ सखी सहेलियों के साथ सजती सँवरती है पेड़ों पर झूले पड़ जाते है,गोरियों की कलाइयाँ हरी हरी चूड़ियों और मेहंदी से सज जाती है और फिर शुरू होती है रिमझिम फुहार के साथ लय मिलाते हुए ढोलक के साथ कजरी गाने की.......अब आप सोच रहे होंगे की कहाँ होता है ये सब बस किताबी बातें हैं,जी हाँ सच है आज की मशीनी ज़िंदगी में ये सब लोग भूलते जा रहे हैं ना तो झूले पड़ते हैं ना वो समय है ना वो लोग जो कजरी गाते है. पहले आप को कजरी के बारे में बता दूँ ,लोकगीतों में कजरी वो विधा है जो केवल सावन,भादों में गायी जाती है अपने अनूठे रंग रूप में,कजरी गाने की राग भी बहुत अलग होती है.पहले तो पूरे सावन भादों घर-घर स्त्रियाँ टोली बना कर ढोल मंजीरे के साथ सुर मिला कर कजरी,झूला गा कर समां बाँध देती थी.
अब तो किसी महोत्सव में एक दिन का स्थान मिल जाए ऐसे गीतों को यही बहुत हैं.ग़लती हमारी है हमें ही अपनी नयी पीढ़ी को अपनी विरासत से परिचित कराना चाहिये.
ये देख कर ख़ुशी होती है की कुछ-कुछ जगहों पर आज भी स्त्रियाँ चाहे तीज celebrate करने के लिए या club gathering के बहाने ही सावन,झूला और कजरी गाने का कार्यक्रम रखती हैं इसका सबूत आप लोगों के Facebook status से देख सकते हैं,पर दुविधा ये होती है की कजरी बहुत कम लोगों को आती है,तो चलिए कुछ बहुत ही लोकप्रिय और मनमोहक कजरी गीतों का गुलदस्ता आप सब के लिए इस सावन पर सप्रेम भेंट.
“जैसा कि कजरी के परिचय में आप जान चुके हैं की इन गीतों में स्त्रियों के हार-सिंगार मेहंदी-झूला प्रकृति का वर्णन और बहुत सी चुहलबाज़ी होती है तो साथ ही ये सावन का माह भगवान “शिव” की आराधना के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है,और जहाँ झूला हो गीत हो रस हो वहाँ “श्री कृष्ण” का का नाम कैसे ना हो,इसलिए अधिकतर गीतों में इन सब का वर्णन मिलता है.

“गोदना”
अरे रामा गोदना,ग़ोदावे केहु प्यारी
गोदेलि गोदनहारी ऐ हरी...२
केहु ग़ोदावे नाम पति के केहु ओम्
ग़ोदावे रामा
अरे रामा केहु
अरे रामा केहु ग़ोदावे बनवारी
गोदेलि गोदनहारी ऐ हरी
अरे रामा गोदना ग़ोदावे केहु प्यारी
गोदेलि गोदनहारी ऐ हरी...२
केहु ग़ोदावे सीता राम केहु शंकर
ग़ोदावे रामा
अरे रामा केहु
अरे रामा केहु ग़ोदावे गिरधारी
गोदेलि गोदनहारी ऐ हरी
अरे रामा गोदना ग़ोदावे केहु प्यारी
गोदेलि गोदनहारी ऐ हरी...२
केहु ग़ोदावे राधे श्याम हनुमत
केहु ग़ोदावे रामा
अरे रामा केहु
अरे रामा केहु ग़ोदावे मुरारी
गोदेलि गोदनहारी ऐ हरी....२
अरे रामा गोदना ग़ोदावे केहु प्यारी
गोदेलि गोदनहारी ऐ हरी...२

“आये सावन”
आए सावन ओ मनभावन
लखिए बरखा की बहार
आए सावन..२
गुल्म लता तरु बेल सुहावन
फूले फूल हज़ार साँवरिया
फूले फूल हज़ार...२
आए सावन ओ मनभावन
लखिए बरखा की बहार
आए....२
जूही चम्पा चमेली फूले
फूल रहे कचनार
फूल रहे कचनार साँवरिया
आए....२
आए सावन ओ मनभावन
लखिए बरखा की बहार
आए.....२
दादूर मोर पपिहा बोले
झींगूर की झनकार
झींगूर की झनकार साँवरिया
आए....२
आए सावन ओ मनभावन
लखिए बरखा की बहार
आए....२
राम लली सत की पटरी पर
झूलत बारम्बर साँवरिया
झूलत बारम्बर
आए...२
आए सावन ओ मनभावन
लखिए बरखा की बहार
आए....२

“मोती झील”
पिया मेहंदी मँगाई दा मोती झील से
जा के साइकिल से ना...२
हमके मेहंदी मँगाई दा छोटकी
नन्दी से पिसवाई दा
हमरे हाथे पे लगाई दा काँटे जीर से
जा के साइकिल से ना
पिया मेहंदी....२
ई है सावनि बहार माना बतिया हमार
कौनो फ़ायदा ना निकली दलील से
जा के साइकिल से ना....२
पिया मेहंदी मँगाई दा मोती झील से
जा के साइकिल से ना...२
पकड़ लई बाग़बान चाहे हो जाए चालान
तोहके लड़ के छुड़ा लेब अपील से
जा के साइकिल से ना....२
पिया मेहंदी मँगाई दा मोती झील से
जा के साइकिल से ना...२