एक बार पुनः शारदीय नवरात्रि के आगमन पर आप सभी को असीम शुभकामनायें.
ये नवरात्रि अपने साथ जीवन में ख़ुशियों के अनेक रंग व साधन ले कर आती है.
जहाँ एक ओर मौसम में ख़ुशनुमा ठंड होती है वहीं जगह-जगह दुर्गा पूजा की धूम
मची रहती है.उत्तर भारत में तो छोटे-बडे हर शहर में और हर स्तर की रामलीला का
भी आयोजन होता है और इन सभी कार्यक्रमों को और भी रंगीला बनाता है
जगह-जगह मेले का मौज और शोरगुल.घर-घर में कलश स्थापना और स्त्रियों की
टोली का मस्ती में देवी गीत गाना एक अलग ही समा बाँधता है,इन सब के अलावा
नवरात्रि का एक और अनूठा बहुत लोकप्रिय व मोहक रंग है “गरबा” नृत्य व संगीत.
गरबा मूलरूप से गुजरात प्रांत का लोक संगीत है किन्तु ये गीत और नृत्य इतने
मनमोहक होते हैं कि अब तो लगभग पूरे देश में बहुत उत्साह से लोग इसका
आनंद लेते हैं.नवरात्रि पर विशेष तौर पर गरबा गीत व नृत्य का आयोजन किया
जता है,स्त्री व पुरुष जोड़ियाँ बना कर पुरे group के साथ नाचते-गाते हैं.
इस में डांडिया भी होता है और ये भी बहुत लोकप्रिय है अब तो मैं देखती हूँ प्रायः
हर शहर में डांडिया और गरबा का आयोजन किया जाता है अक्सर competition
भी होता है और प्रदर्शन के आधार पर विजेता घोषित किया जाता है.इस गीत
संगीत का इक और आकर्षक पहलू है इसका परिधान.स्त्री पुरुष दोनों के परिधान
बहुत ही रंगीन और सुंदर कढ़ाई से शोभित होते हैं,उस पे antique ज़ेवर गहने
चार चाँद लगाते हैं.हाथों में डांडिया लिए सजे धजे लोग जब शाम को गोला बना
कर ढोल-ताशे की धुन पर इक साथ थिरकते हैं तो ऐसा समा बँधता है की शब्दों
में वर्णन करना कठिन है.गरबा में प्रचलित लोक गीत इतने आकर्षक होते हैं कि
आप के पैर ख़ुद ही मचलने लगते हैं,नाच के लिये.समय के अनुसार इस के रूप में
भी बहुत परिवर्तन आया है.पहले लोग स्वयं गाते बजाते थे और अब पहले से
recorded गाने speakers पर बजा कर इसका आनंद लेते हैं.सामान्य तौर पर
गरबा और डांडिया में बजने वाले गीत गुजराती भाषा में होते हैं पर इस बार मैं आप
सब के लिये कुछ हिन्दी गरबा के लोक गीत लायी हूँ जिससे आप सब इस
नवरात्रि में enjoy कर सकते हैं.

“मैया के रंग”
मैं तो गरबा रचाऊँगी
मैया के रंग,रंग जाऊँगी...२
मेरी अम्बा का प्यार मेरी माँ
का दुलार
अर्ज़ी सुनेंगी माँ जगदम्बे
मैं तो मंदिर में जाऊँगी
माँ की जोत जलाऊँगी
मैं तो गरबा रचाऊँगी
मैया के रंग....२
आँगन बहारूँगी जोत सवाँरूँगी
माता को मैं तन मन से पुकारूँगी
चुन चुन कलियाँ हार बनाऊँगी
मात भवानी को हार चढ़ाऊँगी
माँ को माला पहनाऊँगी
दीपक जोत जलाऊँगी
मैं तो गरबा रचाऊँगी
मैया के रंग....२
कष्ट निवारेंगी माँ जगदम्बे
विनती सुनेगी अपनी भी अम्बे
माता के हाथों में मेहंदी रचाऊँगी
लाल चुनरिया मैं माँ को ओढ़ाऊँगी
माँ को चूड़ी पहनाऊँगी
मैं तो गरबा रचाऊँगी
मैया के रंग....२
हलवा बनाऊँगी भोग लगाऊँगी
लँगर में भक्तों को भोज कराऊँगी
नाचूँगी गाऊँगी सबको नचाऊँगी
नाच नाच मैं तो मैया को रिझाऊँगी
वर अम्बे का पाऊँगी
भव से मैं तर जाऊँगी मैं तो गरबा रचाऊँगी मैया के रंग,रंग जाऊँगी...२

“ओढ़नी उड़ी जाय”
ओढ़नी ओढ़ूँ तो उड़ी उड़ी जाय
अरे ये के हुयो अरे काये हुयो....२
ओढ़नी ओढ़ो जी गोरी संभाल
ओढ़नी सर सर सरकी जाय....२
थारो गोरा सा तन हुए तपती किरन
थारो नाज़ुक बदन कुम्हलाय...२
ओढ़नी ओढ़ूँ तो उड़ी उड़ी जाय
अरे ये के हुयो....२
ओढ़नी ओढ़ो जी गोरी सम्भाल
ओढ़नी सर....२
ऊँची नीची तेरी डगरिया
थक जाय माँ पावँ रे
पहली बार चली हूँ माँ
ले के थारो नाम रे...२
ऊँची नीची.....२
ओढ़नी ओढ़ूँ तो उड़ी उड़ी जाय
अरे ये के हुयो...२
ओढ़नी ओढ़ो जी गोरी सम्भाल
ओढ़नी सर...२
कोई सपना में आवे मेरी नीदे उडावे
कोई सपना में...२
दिल धक धक धड़को जाय
दिल धक...२
ओढ़नी ओढ़ूँ तो उड़ी उड़ी जाय
अरे ये के हुयो....२
ओढ़नी ओढ़ो जी गोरी सम्भाल
ओढ़नी सर...२
उड़तो उड़तो मन को पंछी
थारे गाँव में आयो...२
चाँद सरीखा मुखड़ा थारो
नैन मन में समायो...२
या साँची है बात ये जुग जुग
रो साथ...२
अब क़ुणे थारो समझाय
ओढ़नी ओढ़ूँ तो उड़ी उड़ी जाय
अरे ये के हुयो...२
ओढ़नी ओढ़ो जी गोरी सम्भाल
ओढ़नी सर सर सरकी जा ओढ़नी ओढ़ूँ तो....।

“पीहर चोखो”
ओ माने पीहर भालो लागे
मैं नहीं जाऊँ सासरियो...२
नहीं जाऊँ सासरियो मैं नहीं
जाऊँ सासरियो
ओ माने पीहर....२
सासरे में मेरी सासु जी खोटी....२
ओ माने रोज़ रोज़ पीसड़ पीसावे
मैं नहीं जाऊँ...२
ओ माने पीहर...२
सासरे में मेरा ससुरा जी खोटा...२
ओ माने रोज़ रोज़ घूँघट कढावे
मैं नहीं जाऊँ...२
ओ माने पीहर...२
सासरे में मेरी नंदूलि खोटी...२
ओ माने रोज़ रोज़ पाणि भरावे
मैं नहीं जाऊँ...२
ओ माने पीहर...२
सासरे में मेरी जेठनी खोटी...२
ओ मा पे घड़ी घड़ी हुकुम चलावे
मैं नहीं जाऊँ....२
ओ माने पीहर...२