Friday, 17 March 2023

“लोक गीतों की एक अनूठी शैली…”निर्गुण गीत”

 ✓ “लोक गीतों की एक अनूठी शैली…”निर्गुण गीत”




नमस्कार मित्रों 🙏 इस बार थोड़े लंबे अंतराल के बाद आप सब से मुखातिब हूँ,असल में सोच रही थी की इस बार हँसी,ठिठोली से हट कर भोजपुरी लोक गायन की ऐसी शैली आप तक ले आऊँ जो,जीवन नहीं वरन् मृत्यु जैसे गंभीर विषय पर आधारित होती है व इन्हें भजन भी कहते हैं. निर्गुण गीत मूलतः वो गीत है जिन में जीवात्मा परमात्मा सम्बन्धी बातें प्रतीकात्मक रूप से कहीं जाती हैं. ये निर्गुण गीत ,निर्गुण संत संप्रदाय की भावना पे ही आधारित होते हैं, किंतु संतों की गूढ़ भाषा के उलट ये सहज एवं भाव प्रवण होते हैं.ये गीत ज़्यादातर भोजपुरी, अवधी व मैथली जैसी भाषाओं में ही है, इसका कारण शायद ये होगा की कबीर, अमीर ख़ुसरो एवं अन्य भी लेखक या गाने वाले ऐसी ही भाषाओं का प्रयोग करते थे, इसलिए निर्गुण गीतों की एक सुदीर्घ परम्परा भोजपुरी में मौजूद है, इन गीतों में मृत्यु के दृश्य को प्रायः कन्या विवाह उसकी विदाई  आदि प्रतीकों से व्यक्त किया जाता है,ये गीत हमे संसार की वास्तविकता से परिचित कराते हैं. आज भी किसी किसी घर में मृत्यु होने पर “गरुण पुराण” की कथा सुनायी जाती है उस में भी स्वर्ग और नर्क के तमाम क़िस्से मौजूद हैं, जो निर्वेद उत्पन्न करने वाले ही हैं और मृतात्मा के अभाव से उत्पन्न दुःख, शोक से हमे शांति प्रदान करते हैं. निर्गुण गीत यही कठिन एवं गूढ़ बातों को सरल व ठेठ भाषा में कर देते हैं. कबीर आदि संतों ने जीवात्मा को स्त्री व परमात्मा को पुरुष रूप में दर्शाया है,ऐसे कई गीत हैं जो इस प्रारब्ध की जटिलता को आसानी से समझा देते हैं, लोक गीतों का यही तो जादू है की इतने डरावने विषय को भी ये इतनी सहजता से हमारे सामने लाते हैं की डर की भावना धीरे धीरे तिरोहित हो जाती है और लोग इन्हें बड़े मनोयोग से सुनते हैं. इन गीतों में न केवल मृत्यु का भय है वरन् जीवन रहते सदाचार पालन पर भी ज़ोर दिया जाता है ,तप, त्याग, और प्रेम की शुद्धता एवं महिमा भी बतायी जाती है,अपने इन्ही गुणों के कारण ये लोक गीत होते हुए भी उच्च साहित्य जैसा महत्व रखते हैं. व्यक्तिगत रूप से भी मुझे निर्गुण गीत बहुत पसंद है और सचमुच कोई अच्छा गाने वाला हो तो आप थोड़ी देर के लिए स्वयं को भी भूल जायेंगे. ये गीत आज भी गाँवो की चौपालों में, कुछ लोक गीत कार्यक्रमों में गाये व सुने जाते हैं व अपनी अर्थवत्ता व गुणवत्ता आज भी रखते हैं एवं भविष्य में भी रखते रहेंगे. 

                 तो लीजिये इस बार कुछ निर्गुण गीत/ भजन आप सब के लिए लायी हूँ, आशा है आप को भी पसंद आयेंगे. ये गीत ,और मेरा पोस्ट आप को कैसे लगे कृपया अपनी राय से ज़रूर अवगत करायें.जल्दी ही कुछ और लोक गीतों के साथ आप से फिर मुखातिब होऊँगी.

                             सादर आभार 🙏




 1-“ठगवा नगरिया लूटल हो”


कौनों ठगवा नगरिया लूटल हो 

लूटल लूटल, लूटल हो 

कौनों ठगवा नगरीया लूटल हो….२


चंदन काठ के बनल खटोलना 

चंदन काठ के….२

ता पर दुलहिन सुतल हो 

कौनों ठगवा नगरीया लूटल हो,

लूटल लूटल, लूटल हो 

कौनों ठगवा……२


उठो री सखी मोरी माँग सँवारो ,

उठो  री सखी….२

माँग सँवारो हाँ माँग सँवारो 

दुलहा मोसे रुठल हो,

कौनों ठगवा नगरिया लूटल हो,

लूटल लूटल, लूटल हो

कौनों ठगवा……२


आये यमराज पलंग चढ़ी बैठे 

पलंग चढ़ी बैठे….२

नयनन आँसुवा छूटल हो 

अरे नयनन आँसुवा छूटल हो,

कौनो ठगवा नगरिया लूटल हो,

लूटल लूटल, लूटल हो 

कौनों ठगवा नगरिया लूटल हो…२


चार जना मिली खाट उठाये 

चार जनी…२

चहु दिसी धुँवा उठल हो 

चहु दिसी धुवाँ उठल हो 

कौनो ठगवा नगरिया लूटल हो ,

लूटल लूटल, लूटल हो 

कौनों ठगवा नगरिया लूटल हो,


क़हत कबीर सुनो भई साधो 

क़हत कबीर….२

जग से नाता मोरा टूटल हो,

जग से नाता मोरा टूटल हो

कौनों ठगवा नगरिया लूटल हो “




2-“सुनो भई साधो “



सिखलू न एको शहूरवा,

भला कैसे जयबू गवनवा हो,


आयी गवनवा की सारी,

उमरी हमरी बारी हो…२

साज समान पिया लेई आये 

और कहँरिया चारि हो ,

आयी गवनवाँ की बारी…२


बमनाँ बेदर्दी अँचरा पकरी के ,

जोरत गाँठिया हमारी 

सखी सब गावत गारी,

सखी सब….२

आयी गवनवा की सारी….२


बिधी गति बाम कुछ समझ परत ना,

बिधी गति….२

बैरी भयी महतारी…२

रोय रोय अँखियाँ मोर पोंछत

घरवा से देत निकारी,

अरे घरवा से….२

आयी गवनवा की सारी…२


क़हत कबीर सुनो भई साधो 

क़हत कबीर….२

यह पद लेहू विचारी 

अब के गवनवा बहुरि नहीं आईहैं…२

अरे करी ले भेंट अंकवारी 

आयी गवनवा की सारी !!



बबुवा के होता बिदाई 

भँवरवा के तोहरा संग जाई…२


क़हत कबीर सुनो भई साधो 

सत गुरु सरन में जाई

क़हत कबीर…२

जे एही पद के अर्थ बताई 

जगत पार हो जाई,

भँवरवा के तोहरा संग जाई…२


4-“विरह के अगिया”


बिरह के अगिया लगेला तन में,

कौन सखी मारी देहली टोना ए राम,

बिरह के…..२



कंकड़ चुनी चुनी महल बनवली

लोग कहे घर मेरा ए राम 

कंकड़ चुनी….२

ना घर मेरा ना घर तेरा 

ना घर मेरा….२

चिड़िया रैन बसेरा ए राम,

बिरह के अगिया लागे तन में 

कौन सखी मारी देहली टोना ए राम

कौन सखी….२


अमवा के डाली पे बोलेली कोयलिया 

अमवा के..२

बन में बोलेला बन मोर ए राम 

बन में …..२ 

नदिया किनारवा बोलेला सहरसा 

नदिया किनारवा…२

एही पार बोले लें मोर पिया ए राम ,

अरे एही पार….२

बिरह के अगिया लगेला तन में 

कौन सखी मारी देहली टोना ए राम

कौन सखी…२


मोरा पीछवारवा बोले बन मोरवा 

जानी मारे कोयलिया ए राम 

मोरा पीछवारवा….२

जानी मारे…..२

रोरवा में मरला ई मोर मरी जैहैं 

मोरा बिरहिनिया के जोड़ा ए राम 

मोरा बिरहिनिया…२

बिरह के अगिया लगेला तन में 

कौन सखी मारी देहली टोना ए राम,

कौन सखी….२!!



5-“सुंदर सरिरिया”


एक दिन नदी के तीरे

जात रहनी धीरे धीरे ,

त हम आँखी देखनी 

सुंदर सरिरिया अगिया में,

जरेला ए राम,

एक दिन नदी….. 2


हीत मीत जे जे रहल 

एके मुँहे सभे रे कहल 

हित मित जे….२

बेटा के जरले हो,

ई बेटा के जरले पिता जी के,

नसवा रतनवा करेला ए राम…२

हम आँखी देखिनी….२


बांसवा के ले विमानवा 

घाट आइले चारि जना

बाँसवा के….२

घाट आइले…२

मुँहवा पर अगिया,,

अपने ही लोगवा धरेला ए राम…२

हम आँखी देखनी….२


एक दिन नदी के तीरे 

जात रहनी धीरे धीरे ,

त हम आँखी देखिनी,

सुंदर सरिरिया अगिया में,

जरेला ए राम…२


भला बुरा कर्म कमाई 

एही लगी कई ला ए भाई

भला बुरा….२

एही लगी…२

तब काहे ख़ातिर ,

ऊँच नीच मानुष देहिया 

करेला ए राम…२

हम आँखी देखनी….२


कुल रहल जेकारा लागि

ऊह धईल मुँह पर आगी 

कुल रहल….२

ऊह धईल….२

ई सोची के बाग़ी,

अँखिया से लोरिया

झर झर बहेला ए राम,

हम आँखी देखनी….२


एक दिन नदी के तीरे

जात रहनी धीरे धीरे 

हम आँखी देखनी ,

सुंदर सरिरिया अगिया में,

जरेला ए राम !!


3-“भँवरा के संग” 


भँवरवा के तोहरा संग जाईं 

भँवरवा के….२

के तोहरा संग जाईं रामा 

के तोहरा संग जाईं 

 भँवरवा के…..२


आवे के बेरिया सब केहू जाने 

दुवरा पे बाजे ला बधाई

आवे के बेरिया….२

जाये के बेरिया केहू ना जाने 

जाये के….२

हँस अकेला चली जाई

भँवरवा के तोहरा संग जाई…२


देहरी पकड़ी के माई रोये 

बाँह पकड़ी के भाई

हो बाँह पकड़ी के भाई

देहरी पकड़ी…२

बीच अंगनवा अम्मा जी रोवे

बीच अंगनवा…२