Thursday, 21 November 2019

निर्गुण गीत




हमारे लोक संगीत के ख़ज़ाने में ऐसे-ऐसे अनमोल रत्न हैं,ऐसी अनोखी बातें हैं जिनको जान कर सुन कर ख़ुद हैरानी होती है की हमारे पूर्वज कितने ज्ञानी व गुणी थे,जो इतने कम संसाधनो में भी अपनी बुद्धि के प्रयोग से ऐसे-ऐसे गीतों की रचना कर गए है जो आज भी प्रासंगिक हैं,सार्थक हैं और मनोरंजन के साथ साथ कुछ सीख भी दे जाते हैं.बस आवश्यकता है की हम उन की क़द्र कर सकें,उन्हें सुने समझें व किसी न किसी तरह इस पीढ़ी व आने वाली पीढ़ी तक पहुँचा सकें.
तो चलिए इस बार आप को परिचित कराते हैं “निर्गुण गीतों” से.निर्गुण गीत मूलतः वे गीत हैं जिन में जीवात्मा-परमात्मा सम्बंधी बातें प्रतीक रूप में कही जाती हैं.ये निर्गुण गीत “निर्गुण संत सम्प्रदाय” की भावना पर आधारित होते हैं लेकिन ऐसे फ़क़ीरों के ये गीत या भजन कठिन या अस्पष्ट नहीं वरन भाव-प्रवण व सहज हैं.ऐसे बहुत से गीतों की आख़री पंक्तियो में #कबीर दास जी का नाम आता है किंतु दावा नहीं किया जा सकता है की सभी उन्ही की रचना हैं.ऐसे ही अवधी में कई बार #अमीर खुसरो जी का भी नाम आता है.इन गीतों का चलन पुरातन समय से अब तक चला आ रहा है,साथ ही ऐसे गीत #भोजपुरी या #अवधी भाषा में ज़्यादा गाये जाते हैं,इस का कारण शायद ये है की इन को लिखने वाले इन्हि इलाक़ों से थे.इसीलिए निर्गुण गीतों की सुदीर्घ परम्परा भोजपुरी व अवधी में मौजूद है .ये सारे गीत संसार की असारता व अनाशक्ति के भाव को न केवल बताते हैं बल्कि हमें निर्वेद की स्थिति में पहुँचा देते हैं,ये गीत हमें संसार की वास्तविकता से परिचित कराते हैं.कबीर आदि संतो ने जीवात्मा को स्त्री व परमात्मा को ब्रम्ह रूप में वर्णित किया है,जो हर गीत में नज़र आता है,इसीलिए सुनने में ये गीत साधारण लग सकते हैं पर इन का अर्थ बहुत व्यापक व घुमावदार है.
मृत्यु पर कोई बात नहीं करना चाहता है ना ही ये गीत का विषय है किंतु निर्गुण गीत हमें मौत और उस के बाद का भाव भी समझा देते है.कर्मों का फल प्रारब्ध की जटिलता व जीवन की अन्य कड़वी सच्चाइयों को ये लोक गीत सरलता से आप तक पहुँचा देते हैं.इक वाक्य में कहें तो पूरी ज़िंदगी का फ़लसफ़ा निर्गुण गीत लोक विधा द्वारा हमें समझा देते हैं.ये गीत आज भी गाँवों-चौपालो में गाये व सुने जाते हैं,इन्हें स्त्री व पुरुष दोनों गाते है,ये निर्गुण गीत अपनी विशेष पहचान आज भी रखते हैं और हम आप थोड़ा सा प्रयास करें तो भविष्य में भी अपना स्थान बनाए रखेंगे,इसी मंगल भावना के साथ कुछ निर्गुण गीत आप के लिए प्रस्तुत हैं.



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“डोलिया कंहार”


डोलिया कंहार ले के अईले सजनवा...२
अईले सजनवा हो मोरे माँगे लें गवनवा
डोलिया कंहार.....२

डोलिया में हमके दिहैं बैठाई
सुबुकी सुबुकी रोईहैं माई बाप भाई
डोलिया में हमरा के....२
छूटी जाईं हमरे,छूटी जाईं हमरे
बाबुल के अंगनवा
सजनवा हो मोरे माँगे लें गवनवा...२

पंचरंग चुनरी न पहिने गुजरिया
कहेल साजन ओढ़ कोरी चुनरिया....२
लेइ चल थाती जवन कईलू जतनवा
सजनवा हो मोरे माँगे लें गवनवा...२

सब केहु कुछ दूर देई पहुँचाई 
लमहर राह में न केहु संग जाईं...२
इहे हवे जाने,इहे हवे रीत जाने
सगरो जहनवा
सजनवा हो मोरे माँगे लें गवनवा...२

जब देखिहै सैंया मोर सोलहो सिंगरवा
हमरा से प्रीत करीहैं दीहैं आदरवा....२
धन्य हो ज़ाईब,धन्य हो ज़ाईब हम
जुड़ा जाईं मनवा
सजनवा हो मोरे माँगे लें गवनवा....२

सोलह संस्कार दीप सोलहो सिंगरवा
पंचरंग चुनरी हो जैसे बा पियरवा....२
छिति जल पावक,छिति जल पावक
गगन पवनवा
सजनवा हो मोरे माँगे लें गवनवा...२

डोलिया कंहार ले के अईले सजनवा
सजनवा हो मोरे माँगे लें गवनवा .


                          
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“रोवे ले गुजरिया”


बैठल रोवे ले गुजरिया हो
चुनरिया में दाग़ लग गईल....३
कैसे जाईं पिया के नगरियाँ हो
चुनरिया में....२

बैठल रोवे ले गुजरिया हो
चुनरिया में दाग़ लग गईल...३


आईल बा गवना के
हमरो सनेसवा......२
जाये के बा हमरा के पिया
के देसवा.........२
काच बाटें हमरी उमरिया हो
काच बाटें........२
चुनरिया में दाग़..२

बैठल रोवे ले गुजरिया हो
चुनरिया में दाग़ लग गईल...२

नईहर में चार यार बनवली
दिन रात उनहीं से नैना लड़वली...२
उनके सूतवली हम सेजरिया हो
उनके सूतवली...२
चुनरिया में दाग...२

बैठल रोवे ले गुजरिया हो
चुनरिया में दाग़ लग गईल...२

चार बात सजना के
हम भूल गईली
पछतात बानी की इ का कईलीं...२
डोली आवत हमरो दुआरवा हो..
चुनरिया में दाग़....२

बैठल रोवे ले गुजरिया हो
चुनरिया में दाग़ लग गईल...२


चुनरी के दाग़ रामा
कैसे छोड़ाइब
कैसे हम सजना के
मुँहवाँ देखाइब....२
बरसे ला अँखिया के बदरिया हो
चुनरिया में दाग़...२

बैठल रोवे ले गुजरिया हो
चुनरिया में दाग़ लग गईल 
कैसे जाईं पिया के नगरियाँ हो
चुनरिया में दाग़ लग गईल..२

                                
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“झुलनि”

झुलनि का रंग साँचा हमार पिया
ओहि झुलनि गोरी लागा हमार जिया
झुलनि...२
ओहि....२

कौन सुनरवा बनायों रे झूलनिया
रंग पड़े नहीं काचा हमार पिया
सुघड़ सुनरवा बनायो रे झूलनिया
दई अग्नि के आँचा हमार जिया

झुलनि के रंग साँचा हमार पिया
ओहि झुलनि गोरी लागा हमार जिया

छिति जल पावक गगन समीरा
तत्व मिलाई दियो पाँचा हमार पिया
पंच रतन से बनी रे झुलिनिया
जोई पहिरा सोई नाचा हमार जिया

झुलनि के रंग साँचा हमार पिया
ओहि झुलनि गोरी लागा हमार जिया

जतन से रखीयो गोरी झुलिनिया
गूँजे चहु दिसि साँचा हमार पिया
टूटी झुलिनिया फिर नाहीं बनिहे
फिर ना मिले ऐसा ढाँचा हमार पिया

झुलनि के रंग साँचा हमार पिया
ओहि झुलनि गोरी लागा हमार जिया

सुर नर मुनि देखी रीझें झूलनिया
कोई ना जग में बाचा हमार पिया
ऐही झुलनि का सकल जग मोहे 
इतना मोहें साईं राँचा हमार पिया

झुलनि के रंग साँचा हमार पिया
ओहि झुलनि गोरी लागा हमार जिया.


                      
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“गौना नियराना”

करीं हम कौन बहाना
गौना मोरा अब नियराना...३

सब सखियन में मैली चादर
दूजे पिया घर जाना
तीजे डर मोहे सास ननद से
चौथे पिया जी से ताना
गौना मोरा...२

करी हम कौन बहाना
गौना मोरा अब नियराना...२

प्रेम नगर के राह कठिन है
वहाँ रंगरेज पुराना
ऐसी रंग रंगो मोरी चुनरी
ताकि पिया पहिचाना
गौना मोरा...२

करीं अब कौन बहाना
गौना मोरा अब नियराना...२

राह चलत मोहे जब वो
मिली गये
वा के नाम बखाना
कृपा भयी जब मोहे उनकी
तब से लगिहे ठिकाना
गौना मोरा...२

करीं अब कौन बहाना
गौना मोरा अब नियराना .

Wednesday, 24 July 2019

“सावन और कज़री”



एक बार फिर सावन अपनी सारी ख़ूबसूरती के साथ हमारे जीवन में प्रवेश कर चुका है.रिमझिम फुहारों से तन-मन प्रफ़्फ़ुलित है,ताल तलैया अपने यौवन पर हैं धरती ने एक बार फिर धानी चुनरिया ओढ़ ली है.वैसे तो सावन अपनी बहुत सी ख़ूबियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण मास माना जाता है,पर स्त्रियों के लिए व लोक परम्परा में तो इस का ख़ास स्थान है,पहले ज़माने में विवाहित स्त्रियाँ इस माह में मायके जाती थी और मायके जाना ही इक उत्सव होता था.हरे-भरे पेड़ों पे झूले पड़ जाते थे,कहीं कुछ सखियाँ मेहंदी के पत्ते तोड़ कर पीसने लग जाती थीं तो कहीं कोई महावर का घोल लिए बैठी होती थी,मेहंदी और महावर के नित नए नमूने से एक दूसरे को सजाने की होड़ लगी रहती थी,फिर बारी आती थी संगीत की तो जैसा आप सब जानते ही हैं इस माह में कज़री,झूला गाने की बहुत पुरानी परम्परा है.कज़री व झूला प्रायः स्त्रियों द्वारा ही ढोलक व मजीरे के साथ गाया जाता है,वैसे तो समूह में बैठ कर ही लोग इस का आनंद लेते हैं पर झूला झूलते समय भी ये गीत गाये जाते हैं.बड़ा सा झूला पड़ता था कई लोग इक साथ झूलते थे,कुछ बीच में बैठते थे और दो लोग दोनों छोरों से पींगे लगाती थी और झूला ,कज़री की स्वर लहरियों के साथ आसमान से बातें करने लगता था.इस तरह कज़री से ग्रामीण परिवेश का इक जीवंत रूप देखने को मिलता था.कज़री,आसाढ,सावन,भादो से लेकर क़्वार महीने तक पूरे ज़ोर शोर से गयी जाती थी.कज़री की इक विशेषता ये भी है की लोक रंग में होने के बावजूद भी ये क़व्वाली की तरह “सवाली-जवाबी” तरीक़े से भी गायी जाती है.U.P.के मिर्ज़ापुर की कज़री तो विश्व विख्यात है.लोक विधा में होने के साथ ही कज़री शास्त्रीय संगीत गाने वाले बड़े उस्तादों द्वारा भी बड़े शौक़ व मान से गायी जाती है.
ये सारी बातें आप लोगों को किताबी या ख़याली लगती होंगी,पर ऐसा नहीं है मैंने स्वयं ये सब देखा व इसका आनंद लिया है मुझे अच्छी तरह याद है मैं अपने ननिहाल जाती थी और वहाँ ये सब परम्परायें देखती थी.मानती हूँ कि अब ये सब छूटता जा रहा है इस तेज़ रफ़्तार दुनिया में किसी को समय ही नहीं है की वो मेहंदी,महावर का श्रिंग़ार करे व कज़री और झूला का आनंद ले,पर अभी भी कुछ लोग हैं जो अपनी परम्परा व धरोहर को बचाना चाहते हैं,मेरा blog #sanjha bhor,बस इस ओर इक छोटा सा प्रयास है.इसीलिए मैं समय-समय पर आप तक वो लोक गीत पहुचाने का प्रयास करती रहती हूँ.अब वो पहले वाली बात तो रही नहीं पर ये देख कर मन को थोड़ी तसल्ली होती है की आज के आधुनिक समाज में,जहाँ ladies की किटी party और club का culture है वह भी सावन आते ही लोगों में उत्साह भर जाता है और लोग भले ही इक दिन के लिए करें लेकिन सावन का स्वागत होता है,स्वरूप बिलकुल बदल गया है लेकिन परम्परा जीवित है इस का संतोष होता है.अब तो लगभग हर club में लोगों में तरह-तरह के compitiom होते हैं teej queen चुनी जाती हैं,टेंट हाउस से मँग़ा के झूला भी पड़ जाता है और यदि किसी को आता है तो इक आध कज़री भी हो जाती है अन्यथा DJ तो है ही,और इस तरह सावन मन जाता है.
मेरा विश्वाश है कि आगे बढ़िये किंतु अपनी परंपराओं के साथ,अपनी जड़ों से जुड़े रह कर आधुनिक बनें,समाज ज़्यादा ख़ूबसूरत बनेगा,अपने बच्चों को यदि हम ये सिखा पायें की उन की दादी,नानी क्या करती थी तो वो,प्राचीन-नवीन के मिलन की सर्वथा मौलिक अनुकृति बनेगें.
कुछ कज़री व झूला गीतों को फिर आप के बीच रख रही हूँ इस आशा के साथ की आप को पसंद आयेंगे.आप सभी को सावन की बहुत-बहुत शुभकामनायें .
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#अमीर-खुसरो का सावन गीत”

अम्माँ मेरे बाबा को भेजो री
की सावन आया री
अम्माँ मेरे....२

बेटी तेरा बाबा तो बूढ़ा री
अरे बेटी तेरा....२
की सावन आया री...२
अम्माँ मेरे...२
की सावन आया री...२

अम्मा मेरे भैया को भेजो री
की सावन आया री..२
बेटी तेरा भैया तो छोटा री
अरे बेटी...२
की सावन आया री..२

अम्माँ मेरे बाबा को भेजो री
की सावन आया री
अम्माँ मेरे....२

अम्माँ मेरे मामा को भेजो री
की सावन आया री...२
बेटी तेरा मामा परदेसी री
अरे बेटी...२
की सावन आया री...२

अम्माँ मेरे बाबा को भेजो री
की सावन आया री.
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“झिर झिर बुनिया”



घिर घिर आए बदरा ..
पडेला झिर झिर बुनिया
पडेला झिर झिर बुनिया...२

के रे लावे रेशम डोरी
के रे चंदन पटरी
पडेला झिर झिर बुनिया..२
अरे राधा लावे रेशम डोरी
रेशम डोरी हो रेशम डोरी
किशन लावे चंदन पटरी
पडेला झिर झिर बुनिया...२

अरे के रे झूले के रे झूलावे
के रे गावे ला कजरिया...२
पडेला झिर झिर बुनिया
अरे राधा झूलें,किशन
झुलावें..२
किशन झूलावें रे किशन
झूलावें...२
सखियाँ गावें ली
कजरिया...२
पडेला झिर झिर बुनिया..२

घिर घिर आए बदरा...
पडेला झिर झिर बुनिया.
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“सवनवा में नहीं जाइब”



अरे चाहे भैया रूठे चाहे जायें
सवनवा में नहीं जाइब नन्दी
अरे चाहे....२

सोने के थरिया में जेवना परोसों
जेवना परोसों हाँ जेवना परोसों
चाहे भैया जीमे चाहे जायें
सवनवा में नहीं ज़ाईब नन्दी..२

चाहे भैया रूठे चाहे जायें
सवनवा में नहीं ज़ाईब नन्दी
चाहे भैया...२

मगही पतईया के बीड़ा लगायों
बीड़ा लगायों हाँ बीड़ा लगायों
चाहे भैया राचे चाहे जायें
सवनवा में नहीं ज़ाईब नन्दी...२

चाहे भैया रूठे चाहे जायें
सवनवा में नहीं ज़ाईब नन्दी
चाहे भैया...२

चुन चुन कलियों से सेज बिछायो
सेज बिछायो हाँ सेज बिछायो
चाहे भैया सोवें चाहे जाए
सवनवा में नहीं ज़ाईब नन्दी..२

चाहे भैया रूठे चाहे जायें
सवनवा में नहीं ज़ाईब नन्दी.

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“घटा घनघोर”


अरी बहना उठी है घटा घनघोर
चमकी है बिजली ज़ोर से....२
अम्बर लरजे बादल गरजें...२
अरे रामा मोर मचाए शोर
चमकी है बिजली...२

अरे बहना उठी घटा घनघोर
चमकी है बिजली ज़ोर से...२

कौन के भीगे चुनरी
कौन के भीगे वेणी..२
चमकी है बिजली..२
चंपा कली के भीगे चुनरी
राधा के भीगे वेणी
बहना चमकी है बिजली..२

अरे बहना उठी घटा घनघोर
चमकी है बिजली...२

कौन के भावे मेहंदी महावर
कौन के भावे झूला..२
चमकी है बिजली..२
चंपा कली के भावे महावर
राधा रानी के झूला...२
चमकी है बिजली...२

अरे बहना उठी घटा घनघोर
चमकी है बिजली ज़ोर से.
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“बदरिया”


घेरी घेरी आयी सावन
की बदरिया ना...२
हो बदरिया ना हो बदरिया ना
घेरी घेरी....२

पानी बरसे बड़ी ज़ोर
सूझे नाहीं चारों ओर...२
जिया काँपे मोरा
चमके ला बिज़ूरिया ना
हो बिज़ूरिया ना हो बिज़ूरिया ना..२

घेरी घेरी आयी सावन
की बदरिया ना..२

एक तो सावन के अंधेर 
ओ पे बदरा घेर घेर...२
डर लागे
मोरी सूनी बा अटरिया ना
हो अटरिया ना हो अटरिया ना...२

घेरी घेरी आयी सावन
की बदरिया ना...२

जब से पिया परदेस
पतिया एको नहीं आए
मोहे याद आए बिसरे
साँवरिया ना...२
हो साँवरिया ना हो
सवाँरिया ना..२

घेरी घेरी आयी सावन
की बदरिया ना...२
बदरिया ना हो बदरिया ना.

Saturday, 6 April 2019

“नवरात्रि विशेष” ◦ “संगीत व भक्ति”

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वैसे तो संगीत किसी भी रूप में हो,किसी भी विधा में हो,हमेशा सुखद ही लगता है,लेकिन जब संगीत में भक्ति का रस जुड़ जाये तो वो अभूतपूर्वआनंददायक होता है.यदि श्रद्धा  मन से भक्ति के गीत या भजन गाये जा रहे हैं तो सुनने वालों का मन स्वयं ही ईश्वर से सीधे जुड़ने की कल्पना सेअभिभूत हो जाता है.निश्चय ही जीवन में आप ने भी कभी  कभी ये एहसास किया होगा.यहाँ एक interesting बात और बताती चलूँ की भक्ति मेंसंगीत ना सिर्फ़ हमारे हिन्दु धर्म में बल्कि सभी धर्मों में उतनी ही लोकप्रिय है चाहे वो मुस्लिम हो,सिख हों या ईसाई हो.गा बजा कर ईश्वर कीआराधना करना बहुत प्राचीन और लोकप्रिय विधा है.विषेस कर हिंदू समाज में तो कोई भी मौक़ा हो नाच-गाने का कार्यक्रम शुरू करने से पहलेहमेशा ही,प्रथम पूज्य गणेश जी या देवी गीत गा कर ही आगे का कार्यक्रम किया जाता है
                  संगीत  भक्ति का ऐसा ही सुंदर संगम हमें नवरात्रि में देखने को मिलता है,और हमारा सौभाग्य है की हमें ये अवसर वर्ष में दो बारमिलता है.तो लीजिए एक बार पुनः चैत्र नवरात्रि आपके जीवन में दस्तक दे रहा है,घर-घर में भजन होंगे,गीत-संगीत  मिलना-मिलाना होगा और ऐसेमें सभी चाहते हैं की वो कुछ अलग या बढ़ियाँ देवी गीत गा सकें.प्रयास कर रही हूँ की आप तक कुछ अच्छे देवी गीत पहुँचा सकूँ.साथ ही इस बारप्रयास रहेगा की शुभारम्भ के लिए गणेश वंदना  समाप्ति पर गाया जाने वाला “लांगूरिया” गीत भी इस में जोड़ सकूँ.
                     धन्यवाद सहित सभी को नवरात्रि की बहुत शुभकामनायें.

                               
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श्री गणेश “

पहले ध्यान श्री गणेश का...
भक्ति मन से कर लो भक्तों
गणपति के गुण गाओ
पहले ध्यान...

द्वार द्वार हर घर के आसन पर 
शुभ प्रभु की है प्रतिमा...
देवों में जो देव पूज्य हैं
गणपति की है गरिमा 
मंगल अति सुमंगल हैं जो 
उन को नयन बसाओ 
पहले ध्यान श्री गणेश का
मोदक भोग लगाओ..

पहले ध्यान...
भक्ति मन.....

आरती प्रभु की भोग पूजा 
शंख नाद भी गूँजे...
मंगल जल बरसन से गणपति
तन मन सबका भीजे
सब त्योहार उन्ही से शुभ हैं
गणपति का त्योहारा..
मूषक वाहन श्री गणेश का 
ऐसा देव हमारा...

पहले ध्यान...
भक्ति मन....

कीर्तन भजन नारायण करते 
नर मुनि देव सब के मन हरशे..
गणपति का दर्शन कर के 
जीवन सफल बनाओ
उत्सव आज मनाओ...

पहले ध्यान श्री गणेश का...
भक्ति मन से कर लो भक्तों
गणपति के गुण गाओ...
पहले ध्यान..............


                                
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बाजे ढोलक

बाजे ला ढोलक 
झूमे नगर नगर
लहरे ला मैया के लाली चुनर
बाजे....
सातों बहिनिया लागेलि सुंदर
सब के पे चढल भक्ति के लहर 
बाजे...
लहरे...

बाजे ताली देख देख के 
मैया जी मुसकाली
जयकारा गूँजेला
अरे गूँजे हाली हाली
हटले ना हटे मैया से नज़र 
लहरे मैया...
सातों बहिनिया..

बाजे ला...
सातों बहिनिया..

आपों आएँ हाज़िरी लगाईं
जय माता की बोलीं...
उन से आसिस पा के अपने
भाग्य के ताला खोलीं...
लागल दरबार बा आठों पहर 
लहरे मैया...
सातों बहिनिया..

बाजे ला..
सातों बहिनिया..

दीन दुखिया नर नारी 
सब कोई दर्शन पावे
मैया के दरबार में सब झूमें
नाचे गावे...
सारे सखियन के लचके कमर
लहरे मैया...
सातों बहिनिया..

बाजे ला ढोलक 
झूमे नगर नगर 
लहरे मैया के लाली चुनर.




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हे मात मेरी

कैसी ये देर लगाई माँ दुर्गे
हे मात मेरी हे मात मेरी 
कैसी ये...
हे मात...

भव सागर में गिरी पड़ी हूँ
माया मोह में घीरि पड़ी हूँ
जंजाल जाल में जकड़ी पड़ी हूँ
हे मात मेरी हे मात मेरी 
कैसी ये देर...
हे मात...

ना मुझ में बल है ना मुझ में विद्या
ना मुझ में भक्ति ना मुझ में शक्ती 
चरण तुम्हारे आन पड़ी हूँ
हे मात मेरी हे मात मेरी 
कैसी ये देर...
हे मात...

ना कोई मेरा कूटुंब साथी
ना ही मेरा शरीर साथी 
आप ही उबारो पकड़ के बाँहें
हे मात मेरी हे मात मेरी 
कैसी ये देर..
हे मात...

चरण कमल को नौका बना कर 
मैं पार जाऊँ ख़ुशी मना कर 
यमदूतों को दूर भगा कर
हे मात मेरी हे मात मेरी 
कैसी ये देर..
हे मात..

ना मैं किसी की ना ही कोई मेरा 
छाया है चारों ओर अंधेरा
जला के ज्योति दिखा दो रास्ता 
हे मात मेरी हे मात मेरी 
कैसी ये देर...
हे मात मेरी हे मात मेरी.


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तेरा दर्शन

मैंने सब कुछ पाया दाती 
तेरा दर्शन पाना बाक़ी है
मेरे घर में कोई कमी नहीं 
बस तेरा आना बाक़ी है
मैंने...

जो मेरे घर में आओ माँ
मेरा घर तीरथ बन जायेगा
मैं भी तर जाऊँगा मैया 
जो आयेगा तर जायेगा
इज्जत शोहरत दौलत तो मिली 
मेहरों का ख़ज़ाना बाक़ी है
मैंने सब...

हर मुराद पुरी होती है
माँ तेरे दरबार में
तेरे दर जैसा नहीं दिखा
कोई दर संसार में 
दर दर की ठोकर खाई है
बस तेरा ठिकाना बाक़ी है
मैंने सब...

भक्त तेरे भोले भाले
माँ तेरे शुक्र गुज़ार हैं
तेरी कृपा से सब को मिली
ख़ुशियाँ अपरंपार हैं
तर गए माँ लाखों भक्त तेरे
सेवादार दीवाना बाक़ी है
मैंने सब...

मैंने सब कुछ पाया दाती 
तेरा दर्शन पाना बाक़ी है
मेरे घर में कोई कमी नहीं 
बस तेरा आना बाक़ी है.


लंगूरिया

आप में से शायद बहुत से लोग जानते भी नहीं होंगे की लंगूरिया गीत होता क्या है,तो सोचा क्यूँ ना इस का थोड़ा परिचय आप को दे दूँ.ये गीत मूलतःकरोलि की कैला देवी की स्तुति में गाये जाते हैं.लंगूरिया लोकगीत काल-भैरव जो कैला देवी का गण है,को सम्बोधित करते हुए गाये जाते हैं.लंगूरियानटखट प्रेमी के रूप में भक्ति काव्य में श्री कृष्ण का वाचक हो जाता है इसी लिए ये गीत बडे रसीले  मनोरंजक होते हैं.भारतीय लोक संस्कृति मेंलंगूरिया का विशेष स्थान रहा है,देवी के इन गीतों में नर-नारियों के मनोभावों के दर्शन होते हैं  श्रद्धा  भक्ति के साथ भरपूर मनोरंजन भीछलकता है.तो लीजिए प्रस्तुत है इक लंगूरिया गीत.


                                         Image result for indian bhajan painting


दर्शन कर आवे

हे रे कैला मैया को जूरो है
दरबार 
लंगूरिया चलो तो दर्शन कर आवे

हे रे झूला डालो है करोलि के 
महल 
लंगूरिया चलो तो दर्शन कर आवे

काहे को याको बनो है पलनो
काहे की या की डोर 
लंगूरिया चलो तो दर्शन कर आवे

सोने को याको बनो पलनो 
रेशमी या की डोर 
लंगूरिया चलो तो दर्शन कर आवे

लगा है मेला 
लगा है कैला मैया का दरबार 
लंगूरिया चलो तो दर्शन कर आवे.