Wednesday, 24 July 2019

“सावन और कज़री”



एक बार फिर सावन अपनी सारी ख़ूबसूरती के साथ हमारे जीवन में प्रवेश कर चुका है.रिमझिम फुहारों से तन-मन प्रफ़्फ़ुलित है,ताल तलैया अपने यौवन पर हैं धरती ने एक बार फिर धानी चुनरिया ओढ़ ली है.वैसे तो सावन अपनी बहुत सी ख़ूबियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण मास माना जाता है,पर स्त्रियों के लिए व लोक परम्परा में तो इस का ख़ास स्थान है,पहले ज़माने में विवाहित स्त्रियाँ इस माह में मायके जाती थी और मायके जाना ही इक उत्सव होता था.हरे-भरे पेड़ों पे झूले पड़ जाते थे,कहीं कुछ सखियाँ मेहंदी के पत्ते तोड़ कर पीसने लग जाती थीं तो कहीं कोई महावर का घोल लिए बैठी होती थी,मेहंदी और महावर के नित नए नमूने से एक दूसरे को सजाने की होड़ लगी रहती थी,फिर बारी आती थी संगीत की तो जैसा आप सब जानते ही हैं इस माह में कज़री,झूला गाने की बहुत पुरानी परम्परा है.कज़री व झूला प्रायः स्त्रियों द्वारा ही ढोलक व मजीरे के साथ गाया जाता है,वैसे तो समूह में बैठ कर ही लोग इस का आनंद लेते हैं पर झूला झूलते समय भी ये गीत गाये जाते हैं.बड़ा सा झूला पड़ता था कई लोग इक साथ झूलते थे,कुछ बीच में बैठते थे और दो लोग दोनों छोरों से पींगे लगाती थी और झूला ,कज़री की स्वर लहरियों के साथ आसमान से बातें करने लगता था.इस तरह कज़री से ग्रामीण परिवेश का इक जीवंत रूप देखने को मिलता था.कज़री,आसाढ,सावन,भादो से लेकर क़्वार महीने तक पूरे ज़ोर शोर से गयी जाती थी.कज़री की इक विशेषता ये भी है की लोक रंग में होने के बावजूद भी ये क़व्वाली की तरह “सवाली-जवाबी” तरीक़े से भी गायी जाती है.U.P.के मिर्ज़ापुर की कज़री तो विश्व विख्यात है.लोक विधा में होने के साथ ही कज़री शास्त्रीय संगीत गाने वाले बड़े उस्तादों द्वारा भी बड़े शौक़ व मान से गायी जाती है.
ये सारी बातें आप लोगों को किताबी या ख़याली लगती होंगी,पर ऐसा नहीं है मैंने स्वयं ये सब देखा व इसका आनंद लिया है मुझे अच्छी तरह याद है मैं अपने ननिहाल जाती थी और वहाँ ये सब परम्परायें देखती थी.मानती हूँ कि अब ये सब छूटता जा रहा है इस तेज़ रफ़्तार दुनिया में किसी को समय ही नहीं है की वो मेहंदी,महावर का श्रिंग़ार करे व कज़री और झूला का आनंद ले,पर अभी भी कुछ लोग हैं जो अपनी परम्परा व धरोहर को बचाना चाहते हैं,मेरा blog #sanjha bhor,बस इस ओर इक छोटा सा प्रयास है.इसीलिए मैं समय-समय पर आप तक वो लोक गीत पहुचाने का प्रयास करती रहती हूँ.अब वो पहले वाली बात तो रही नहीं पर ये देख कर मन को थोड़ी तसल्ली होती है की आज के आधुनिक समाज में,जहाँ ladies की किटी party और club का culture है वह भी सावन आते ही लोगों में उत्साह भर जाता है और लोग भले ही इक दिन के लिए करें लेकिन सावन का स्वागत होता है,स्वरूप बिलकुल बदल गया है लेकिन परम्परा जीवित है इस का संतोष होता है.अब तो लगभग हर club में लोगों में तरह-तरह के compitiom होते हैं teej queen चुनी जाती हैं,टेंट हाउस से मँग़ा के झूला भी पड़ जाता है और यदि किसी को आता है तो इक आध कज़री भी हो जाती है अन्यथा DJ तो है ही,और इस तरह सावन मन जाता है.
मेरा विश्वाश है कि आगे बढ़िये किंतु अपनी परंपराओं के साथ,अपनी जड़ों से जुड़े रह कर आधुनिक बनें,समाज ज़्यादा ख़ूबसूरत बनेगा,अपने बच्चों को यदि हम ये सिखा पायें की उन की दादी,नानी क्या करती थी तो वो,प्राचीन-नवीन के मिलन की सर्वथा मौलिक अनुकृति बनेगें.
कुछ कज़री व झूला गीतों को फिर आप के बीच रख रही हूँ इस आशा के साथ की आप को पसंद आयेंगे.आप सभी को सावन की बहुत-बहुत शुभकामनायें .
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#अमीर-खुसरो का सावन गीत”

अम्माँ मेरे बाबा को भेजो री
की सावन आया री
अम्माँ मेरे....२

बेटी तेरा बाबा तो बूढ़ा री
अरे बेटी तेरा....२
की सावन आया री...२
अम्माँ मेरे...२
की सावन आया री...२

अम्मा मेरे भैया को भेजो री
की सावन आया री..२
बेटी तेरा भैया तो छोटा री
अरे बेटी...२
की सावन आया री..२

अम्माँ मेरे बाबा को भेजो री
की सावन आया री
अम्माँ मेरे....२

अम्माँ मेरे मामा को भेजो री
की सावन आया री...२
बेटी तेरा मामा परदेसी री
अरे बेटी...२
की सावन आया री...२

अम्माँ मेरे बाबा को भेजो री
की सावन आया री.
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“झिर झिर बुनिया”



घिर घिर आए बदरा ..
पडेला झिर झिर बुनिया
पडेला झिर झिर बुनिया...२

के रे लावे रेशम डोरी
के रे चंदन पटरी
पडेला झिर झिर बुनिया..२
अरे राधा लावे रेशम डोरी
रेशम डोरी हो रेशम डोरी
किशन लावे चंदन पटरी
पडेला झिर झिर बुनिया...२

अरे के रे झूले के रे झूलावे
के रे गावे ला कजरिया...२
पडेला झिर झिर बुनिया
अरे राधा झूलें,किशन
झुलावें..२
किशन झूलावें रे किशन
झूलावें...२
सखियाँ गावें ली
कजरिया...२
पडेला झिर झिर बुनिया..२

घिर घिर आए बदरा...
पडेला झिर झिर बुनिया.
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“सवनवा में नहीं जाइब”



अरे चाहे भैया रूठे चाहे जायें
सवनवा में नहीं जाइब नन्दी
अरे चाहे....२

सोने के थरिया में जेवना परोसों
जेवना परोसों हाँ जेवना परोसों
चाहे भैया जीमे चाहे जायें
सवनवा में नहीं ज़ाईब नन्दी..२

चाहे भैया रूठे चाहे जायें
सवनवा में नहीं ज़ाईब नन्दी
चाहे भैया...२

मगही पतईया के बीड़ा लगायों
बीड़ा लगायों हाँ बीड़ा लगायों
चाहे भैया राचे चाहे जायें
सवनवा में नहीं ज़ाईब नन्दी...२

चाहे भैया रूठे चाहे जायें
सवनवा में नहीं ज़ाईब नन्दी
चाहे भैया...२

चुन चुन कलियों से सेज बिछायो
सेज बिछायो हाँ सेज बिछायो
चाहे भैया सोवें चाहे जाए
सवनवा में नहीं ज़ाईब नन्दी..२

चाहे भैया रूठे चाहे जायें
सवनवा में नहीं ज़ाईब नन्दी.

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“घटा घनघोर”


अरी बहना उठी है घटा घनघोर
चमकी है बिजली ज़ोर से....२
अम्बर लरजे बादल गरजें...२
अरे रामा मोर मचाए शोर
चमकी है बिजली...२

अरे बहना उठी घटा घनघोर
चमकी है बिजली ज़ोर से...२

कौन के भीगे चुनरी
कौन के भीगे वेणी..२
चमकी है बिजली..२
चंपा कली के भीगे चुनरी
राधा के भीगे वेणी
बहना चमकी है बिजली..२

अरे बहना उठी घटा घनघोर
चमकी है बिजली...२

कौन के भावे मेहंदी महावर
कौन के भावे झूला..२
चमकी है बिजली..२
चंपा कली के भावे महावर
राधा रानी के झूला...२
चमकी है बिजली...२

अरे बहना उठी घटा घनघोर
चमकी है बिजली ज़ोर से.
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“बदरिया”


घेरी घेरी आयी सावन
की बदरिया ना...२
हो बदरिया ना हो बदरिया ना
घेरी घेरी....२

पानी बरसे बड़ी ज़ोर
सूझे नाहीं चारों ओर...२
जिया काँपे मोरा
चमके ला बिज़ूरिया ना
हो बिज़ूरिया ना हो बिज़ूरिया ना..२

घेरी घेरी आयी सावन
की बदरिया ना..२

एक तो सावन के अंधेर 
ओ पे बदरा घेर घेर...२
डर लागे
मोरी सूनी बा अटरिया ना
हो अटरिया ना हो अटरिया ना...२

घेरी घेरी आयी सावन
की बदरिया ना...२

जब से पिया परदेस
पतिया एको नहीं आए
मोहे याद आए बिसरे
साँवरिया ना...२
हो साँवरिया ना हो
सवाँरिया ना..२

घेरी घेरी आयी सावन
की बदरिया ना...२
बदरिया ना हो बदरिया ना.

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