Friday, 10 December 2021

पारम्परिक विवाह का बदलता स्वरूप व गीतों की लुप्त होती प्रथा

 “नमस्कार मित्रों “🙏


पुराने समय के भारतीय विवाह, उस में भी पारम्परिक हिन्दू विवाह,एक बहुत लम्बी प्रक्रिया और बहुत सारे रीति रिवाजों से भरपूर हुआ करते थे किंतु इस आधुनिक समाज में लोगों के पास ना तो इतना समय है ना ही अपनी परम्पराओं के प्रति रुचि की वे पूरे विधि विधान से विवाह सम्पन्न करायें. ज़्यादातर लोगों को तो पता भी नहीं होता है की कितनी और किस प्रकार से रस्में करनी हैं,ऐसे में किसी बुआ,चाची,ताई को पकड़ा जाता है ,जो थोड़ी बहुत रस्में याद रखी हैं और आधी अधूरी रस्में करा कर विवाह को संक्षिप्त रूप में सम्पन्न करा दिया जाता है.कई बार मैंने खुद देखा है की समय की कमी,साधन की कमी व ज्ञान की कमी की वजह से रस्मों के नाम पर केवल खानापूरी होती है और हास्यास्पद सी स्थिति बन जाती है.पहले जितनी अलग अलग रस्में होती थीं उतने ही हर रस्म के अलग अलग गीत होते थे और सभी गीत छोटे से छोटे रीति रिवाजों के अनुसार बिल्कुल सटीक. अब तो हाल ये है कि “so called modern” लोगों से पूछ लिया जाये तो ना तो वो सारी रस्में ही बता पायेंगे ना ही रस्मों के गीत, ऐसे में एक विचार आया की क्यूँ ना एक पोस्ट ऐसी लिखूँ जिसमें विवाह के रीति रिवाजों के क्रम में कम से कम एक एक पारम्परिक व रस्म पर सटीक गीत लिख कर आप तक पहुँचा सकूँ. पुराने समय की शादियों का विस्तृत स्वरूप जो की लग्न पड़ने के साथ शुरू होता था और भिन्न -भिन्न रस्मों से गुजरता हुआ,कन्या व बारात की विदाई पर आ कर समाप्त होता था और समेटे रहता था अपने में ढेर सारे छोटे बड़े रस्मों का भंडार व उन रस्मों पर गाये जाने वाले अनूठे,चुटीले पारम्परिक लोक गीत.इन रीति-रिवाजों व गीतों की एक विशेषता ये भी होती थी की ये सब घर के सदस्यों द्वारा ही आयोजित किए जाते थे,हर रस्म पर ढोलक की थाप उठती और उससे जुड़े गीत गा कर घर की स्त्रियाँ उस विशेष रिवाज का श्रिंगार कर देतीं, व कानों में लोक गीत के रस का माधुर्य घुल जाता,इस ज़माने जैसा नहीं कि,D.J. पे कोई फ़िल्मी गाना बजा कर नाच लिए. पहले के समय में तीन दिन तक तो बारात ही रुकती थी,तो आप अनुमान लगा ही सकते है की,क्या ही माहौल बनता था.

तो चलिए एक बार फिर नवम्बर की गुनगुनी धूप के साथ पुनः विवाह का मौसम आ चुका है,चारों ओर चहल पहल है बाज़ारों में भीड़ है,लोग शादी की तैयारियों में व्यस्त हैं,आज की शादियों में मुझे ऐसा लगता है की दिखावा ज़्यादा रहता है,विधि-विधान व परम्परागत गीतों को तो लोग भूलते ही जा रहे है .ऐसे में “संझा भोर” का ये एक छोटा व विनम्र प्रयास है की हमारी नयी पीढ़ी भी हमारी संस्कृति व रीति-रिवाजों से परिचित हो सके.

इस पोस्ट में मेरा प्रयास रहेगा कि मैं विवाह के कुछ भूलते जा रहे रिवाजों से भी आप को परिचित कराती चलूँ,साथ ही उन विशेष रस्मों के कम से कम,एक एक गीत आप से साझा कर सकूँ.

तो चलिए आरम्भ करते हैं एक काल्पनिक विवाह और विभिन्न रस्मों पर उन के अनूठे,रसीले,लोकप्रिय व कर्णप्रिय गीत,जो आप को पुराने दिनों के संयुक्त परिवार के विस्तृत विवाह की याद दिलाएँगे.





1-लग्न पड़ना


विवाह तय होने के बाद वर व वधू दोनों के घर लग्न पड़ता है और गणपति वंदन के साथ शादी के सभी शुभ कार्यों का आरम्भ हो जाता है.


“लग्न गीत “


लगनी चिरैया लगन लिए जाए रे

लगनी चिरैया लगन लिए जाए रे

केरा के पत्ता हवा में लहराय रे

ओ हो केरा के पत्ता हवा में लहराय रे

लगनी चिरैया…..२

केरा के पत्ता हवा में लहराय रे


चाचा हँसलें बाबा रोवे लें

चाचा हँसलें बाबा रोवे ले

बेटी बियाह में बाप मुरझाय रे

बेटी बियाह में….२

लगनी चिरैया लगन लिए जाए रे

केरा के पत्ता हवा में लहराय रे


दादी संभारें बक्सा पिटारी

दादी संभारे …..२

चाची गोटा और चुनरी सजाय रे

चाची गोटा….२

अम्मा बियाह के लगन चढ़ाय रे

अम्मा बियाह के लगन चढ़ाय रे



लगनी चिरैया लगन लिए जाए रे

केरा के पत्ता हवा में लहराय रे

लगनी चिरैया लगन लिए जाए रे

आम के पत्ता हवा में लहराय रे

लगनी चिरैया लगन लिए जाए रे

पिपरा के पत्ता हवा में लहराय रे




2-“मट कोर”


इस रस्म में विवाह के पाँच या साथ दिन पहले घर -परिवार की स्त्रियाँ गाते,बजाते हुए घर से कुछ दूर जाकर कुछ पूजन कर मिट्टी खोद कर लाती हैं और उसी मिट्टी से शादी में प्रयोग होने वाला चूल्हा बनाया जाता था.इस पूरी रस्म के दौरान “मट कोर” गीत के अलावा और भी बहुत हँसी मज़ाक़ वाले गीत चलते रहते हैं,किन्तु मैं खोज के लायी हूँ एक पारम्परिक “मट कोर” गीत,आप आनंद लें.



“कहँवा के माटी “


कहँवा के पीयर माटी

कहाँ के कूदार रे

कहँवा के…..२

कहँवा के सात सोहागिन

माटी कोड़े जास रे

कहँवा के सात….२


पटना के पीयर माटी

सोने के कूदार रे

घरवा के सात सोहागिन

माटी कोड़े जास रे….२


कहँवा के पीयर माटी

कहाँ के कूदार रे

कहँवा के सात सोहागिन

माटी कोड़े जास रे…२



माटी कोडिरिया कोडली

भरली दौरिया रे

माटी कोडिरिया…२

से माटी चूल्हा सीझे

कोहंरत के भात रे

से माटी चूल्हा….२



कहँवा के पीयर माटी

कहाँ के कूदार रे

कहँवा के सात सोहागिन

माटी कोड़े जास रे..२


माटी कोडवनी अम्मा

का देबू दनवा रे

माटी कोडवनी…२

तोहरा के देबों बेटी

डाली भर सोनवा रे

तोहरा के देबों…२


कहँवा के पीयर माटी

कहाँ के कूदार रे

कहँवा के सात सोहागिन

माटी कोड़े जास रे.





3-“मण्डप पड़ना” (माड़ों छवाई)


पुराने समय में जब लोग अपने घर-आँगन से ही शादी-ब्याह की सभी रस्में करते थे,तो शादी से प्रायः एक दिन पहले का दिन भी बहुत व्यस्त व विविध रस्मों से भरा होता था.और आरम्भ होता था “माड़ों छवाई “ की विधिवत पूजा के साथ.मूलतः इस विधान में घर के आँगन को शादी के लिए तैयार व सुसज्जित किया जाता था,क्यू की शादी की लगभग सभी रस्में पहले आँगन में ही सम्पन्न होती थी, दोपहर को कुछ और,शाम को कुछ और यहाँ तक की आधी रात तक भी “लावा भुजाई” जैसी रस्में होती रहती थीं.आज की रफ़्तार भरी ज़िंदगी में और एक दो दिन के लिए बुक होटल या “marriage hall” में तो ये सब सम्भव भी नहीं है और इसके किए सिर्फ़ युवा पीढ़ी को दोष देना ठीक नहीं है, हम सब भी तो झंझट से बचने के लिए कम से कम समय में विवाह को निपटाने की जुगत में लगे रहते है,क्यू की एक कड़वी सच्चाई ये भी है की,समय की कमी तो हम सब के पास होती है . ख़ैर वापस आँगन में आते हैं और मण्डप की साज सज्जा के गीत पर ध्यान देते हैं.


“मड़वा सुहावन लागे”


आज जनकपुर में मड़वा

बड़ा सुहावन लगे

आज जनकपुर…..२


हरे हरे बंसवा के मड़वा

छवईलें बाबा

ऐ हो हरे हरे….२

चहुँमुख दियवा जरावे

हो मन भावन लगे

चहुँमुख दियवा…..२

आज जनकपुर में मड़वा

बड़ा सुहावन लगे…2


ऐहि मड़वा तरे बेटी के पापा

आसन लगावे…२

शुभ शुभ करिहें बियहवा

हो सुहावन लागे…२


आज जनकपुर में मड़वा

बड़ा सुहावन लागे…२


मड़वा के बिचे बिचे

कलसा धराईल…२

सखी सब गावे

मंगल गीतवा

हो मनभावन लागे…२


आज जनकपुर में मड़वा

हो मनभावन लागे

आज जनकपुर में मड़वा

बड़ा सुहावन लागे.




3-“शुभ हल्दी”


मण्डप पड़ने और पूजा हो जाने के बाद मज़ेदार रस्म होती है,हल्दी की,वर/वधू को मण्डप में बैठा कर एक एक कर घर-परिवार के सभी लोग हल्दी लगाते हैं,इस दौरान काफ़ी हँसी मज़ाक़ के साथ -साथ हल्दी के गीत भी गाये जाते है.ये एक बड़ा ही लोकप्रिय व चर्चित रिवाज भी माना जाता है. हल्दी…जो अपने नाम अनुकूल पीला ही होता है तो यथासंभव सभी ये प्रयास करते हैं की पीले परिधान में ही ये कार्यक्रम आयोजित कराया जाये.



“हरदिया सुहावन ना”


लागे लाडो के हरदिया

सुहावन ना

लागे लाडो….२

सखी देखी के लागे

मनभावन ना

मनभावन ना हो

मनभावन ना

लागे लाडो के…२


बाबा लगावत हरदी

चाचा लगावत….२

चाची मंगल गीत

मड़वा में गावत…२


मामा लगावत हरदी

भैया लगावत…२

भाभी मंगल गीत

मड़वा में गावत…२


अम्मा हँसी हँसी

करे ली चुमावन ना

अम्मा हँसी…२

लागे लाडो के…२


दीदी लगावत हरदी

सखियन के संग हो

पियर हरदिया से

दमकेला अंग हो

दीदी लगावत…२


बुआ लगावेलि हरदी

मौसी के संग हो

कई के ठिठोली

भाभी करेलि तंग हो

बरसे हँसी के फुहार

जैसे सावन ना…२


लागे लाडो के हरदिया

सुहावन ना

सखी देखी के लागे

मनभावन ना

बरसे ख़ुशी के बहार

जैसे सावन ना

हाँ लागे लाडो के हरदिया

सुहावन ना

सुहावन ना हो

मनभावन ना

लागे लाडो के हरदिया

सुहावन ना.


“हरदी के कुशवा”


कहँवा से लईला हो

बाबा हरदी के कुशवा

कहँवा से…२

काशी हम गईनी

बनारस हम गईनी

ऊँहवे से लईनी हो

बेटी इहो हरदी के कुशवा

ऊहँवे से…२


कहँवा से लईला हो

भईया हरदी के कुशवा

कहँवा से…२

आरा हम गईनी

छपरा हम गईनी

ऊँहवे से लईनी हो

बहिनी हरदी के कुशवा

ऊहँवे से…२

कहँवा से लईला हो

बाबा हरदी के कुशवा.




4-“चुमावन”


ये रस्म हल्दी के तुरंत बाद ही की जाती है,इस में वर/वधू को आँगन में बैठा कर चूमते है.एक प्रकार से कहा जाये तो सभी घर वाले ,दूल्हा/दुल्हन की बलैयाँ लेते हैं,प्रेम का प्रदर्शन करते हैं, नज़र उतरते हैं व आगामी वैवाहिक जीवन के लिये आशीर्वाद देते हैं.


“चूम चूम “


चुम चुम चुमावन

अम्मा सोहागिन चूमे

बन्नी जी के….२


चुम चुम देली आशीष

जिया हो बिटिया

लाख बरिस…२

बनिहा नगरिया के

राज दुलारी हो

बिटिया लाख बरिस


चुम चुम चुमावन

चाची सोहागिन चूमे

दुलहिन जी के….२

चुम चुम देली आशीष

जिया हो बबुनि

लाख बरिस….२

बनिहा नगरिया के

रानी महारानी हो

जिया लाख बरिस…२


चुम चुम चुमावन

भाभी सोहागिन चूमे

बन्नी जी के…२

चुम चुम देली आशीष

जिया हो ननदी

लाख बरिस…२

बनिहा नगरिया के

राज रानी हो जिया

लाख बरिस….२


चुम चुम चुमावन

दीदी सोहागिन चूमे

बन्नी जी के…२

चुम चुम देली आशीष

जिया हो बहिना

लाख बरिस…२

बनिहा नगरिया के

राज दुलारी हो जिया

लाख बरिस .


वैसे तो हल्दी के दिन,जैसा कि मैंने पहले भी बताया था,और भी बहुत सी रस्में होती रहती हैं,जैसे कोहबर बनाना,कलश गोंठना, लावा भुजाई इत्यादि. एक बात और स्पष्ट कर दूँ की,स्थान,समुदाय व अन्य कई कारणो से रीति-रिवाजों में थोड़ा बहुत अंतर तो रहता ही है .



5-“द्वारचार”


अब आते हैं विवाह के दिन पर,तो इस दिन भी छोटी बड़ी बहुत सी रस्में होती रहती हैं लेकिन पुराने समय में द्वार चार का बहुत महत्त्व होता था.मूलतः इस में शाम को बारात जब कन्या के घर पहुँचती थी तो ये एक विशेष स्वागत परम्परा होती थी,दूल्हे और अन्य सभी सम्मानित अतिथियों का,सजे सजाये द्वार पर विधिवत पूजन के और सम्मान के साथ स्वागत किया जाता था,इसी लिए इस में स्वागत गीत गाये जाते थे.


“द्वारे पे आयी बारात”


द्वारे पे आयी बारात

रंगीला बन्ना ब्याहन आया

द्वारे पे….२

बाजन बाजे दुआर

रंगीला बन्ना ब्याहन आया

द्वारे पे…२


सर पर कलश

धरे हैं गुजरिया

सर पर..२

चौमुख दियना बारे

रंगीला बन्ना ब्याहन आया

द्वारे पे…२


गंगा जल से कलश

भरे है

गंगा जल…२

पंडित वेद उचारे

रंगीला बन्ना ब्याहन आया

द्वारे पे….२


कंचन थाल कपूर

के बाती

कंचन थाल…२

लेहुँ आरती उतार

रंगीला बन्ना ब्याहन आया

द्वारे पे…२


समधी आए हैं

हमरे दुवारे

समधी आए…२

गले मोतियन के हार

रंगीला बन्ना ब्याहन आया

द्वारे पे…२


जुग जुग जीवे

सुंदर जोड़ी

जुग जुग…२

यही आशीष हमार

रंगीला बन्ना ब्याहन आया

द्वारे पे…२






6-“कन्यादान”


सब से भावुक व जग विदित रस्म है कन्यादान की,इस में मण्डप में वर-वधू व दोनों पक्षों के घर परिवार के लोग सभी बैठते हैं,कन्या अपने माता-पिता के साथ होती है और दूल्हा सामने बैठा होता है और फिर ईश्वर व उपस्थित सभी लोगों को साक्षी मानते हुए,मंत्रोचार के साथ पंडित जी कन्यादान कराते हैं. विष्णु रूपी वर कन्या के पिता को हर प्रकार से आश्वासन देता है की वह उनकी पुत्री को ख़ुश रखेगा व उस पर कोई आँच नहीं आने देगा,साथ ही अब से उस कन्या की सारी ज़िम्मेदारी उसकी हुयी.मान्यता है कि कन्यादान से बड़ा कोई दान नहीं होता है .


“आज के रतियाँ”


आज के रतियाँ

बाबा मड़वा में रोवेले

केकरा के दीं कन्यादान

आज के रतियाँ

अम्मा मड़वा में रोवे

कैसे करीं बिटिया के दान ही

आज के..२


मड़वा के भितरा से

बोल लें सुंदर दूल्हा

हमरा के दिही कन्यादान हे

मड़वा के…२


काँपे ला पोथिया

काँपे ला कितबिया हो

काँपे ला कुल परिवार हो

काँपे ला…२


धिया ले के काँपे ले

बाबा हो कवन लाल

कईसे करिहे कन्यादान हो

धिया ले..२

धियवा पोसत रामा

केतना दिन लागल

दुई पल लागी कन्यादान

कईसे करी बिटिया के दान हे


बहिन ले के काँपे ले

भईया हो कवन लाल

बहिन ले…२

कईसे करब पईयाँ दान हे

बहिनी सँवारत रामा

केतना दिन लागेला

दुई पल लागी पईयाँ दान हे


आज के रतियाँ बाबा

मड़वा में रोवेले

केकरा के दीं कन्यादान हे .


“पाणिग्रहण संस्कार का गीत”


“पनिया ऐ भैया”


धीरे धीरे पनिया

गिरईह ऐ भैया

टूटे ना सनेहिया के तार

धीरे धीरे…२


अम्मा के कोखिया

से लेहली जनमवा

अम्मा के…२

एक बहिन एक भाई

ऐ भैया

टूटे ना सनेहिया के तार


धीरे धीरे पनिया

गिरईह ऐ भैया

टूटे ना सनेहिया के तार


संग वे पढ़े गईनी

संग वे खेलत रहनी

अब छूटे हमनी के

साथ ऐ भैया

टूटे ना सनेहिया के तार


धीरे धीरे पनिया

गिरईह ऐ भैया

टूटे ना सनेहिया के तार


केतना जो भाभी तोहके

रोकिहे ऐ भैया

केतना जो…२

जोगिया के भेष धरी

आइह ऐ भैया

टूटे ना सनेहिया के तार


धीरे धीरे पनिया

गिरईह ऐ भैया

टूटे ना सनेहिया के तार.




7-“विवाह गीत”


हिंदू विवाहों में सारी रात भिन्न भिन्न रस्में होती रहती है और उन रस्मों के अनुसार गीत भी,लेकिन बीच बीच में ब्याह के पारम्परिक गीत भी होते रहते हैं जो की याद रखना और गाना दोनों ही कठिन होते हैं,इसीलिए आज कल लोग “सहाना” या जिसे “बन्ना-बन्नी” भी कहते हैं,लोग वही गा लेते है,पर मैं लायी हूँ आप के लिये ठेठ विवाह गीत.जिस में श्री राम के विवाह का प्रसंग है.


“पुरवा पच्छिमवा”


पुरवा पछीमवा से

आवे सुंदर दुलहा

पुरवा….२

जुड़ावे लगली हे

सासु अपनी नयनवा

जुड़ावे लगली…२


पुरवा पछीमवा से

आवे सुंदर दुलहा

जुड़ावे लगली…२


माथे मणि मौरिया

कुंडल सोभे कनवा

माथे मणि…२

रेशम के जोड़ा

हाथे सोने के कंगनवा

देखत नीक लागे

दुलहा सलोनवा

बाजत आवे हे

बाजत आवे हे

सतरंगिया बजनवा

बाजत आवे..२


पुरवा पछीमवा से

आवे सुंदर दुलहा

पुरवा….२

जुड़ावे लगली हे

जुड़ावे लगली हे

सासु अपनी नयनवा .





“राम जी से पूछे”


राम जी से पूछे

जनकपुर के नारी

राम जी..२

बतावा बबुवा

लोगवा देत काहे गारी

बतावा बबुवा

लोगवा….२

राम जी से पूछे

जनकपुर के नारी

बतावा…२


तोहरा से पूछूँ मैं

ओ धनुषधारी

अरे तोहरा से पूछूँ मैं

ओ…२

एक भाई गोर काहे

अरे एक भाई गोर काहे

एक क़ाहें कारी

बतावा बबुवा

लोगवा देत काहे गारी

बतावा…२

राम जी से पूछें

जनकपुर के नारी

बतावा…२


ऐ बूढ़ा बाबा के

पकल पकल दाढ़ी

ऐ बूढ़ा…२

देखन में पातर

अरे देखन में पातर

खायें भर थारी

देखन में….२

बतावा बबुवा

लोगवा देत काहे गारी

बतावा….२

राम जी से पूछें

जनकपुर के नारी

बतावा…२



कह सब सखियाँ

कह सब सखियाँ

मन में विचारी

कह सब…..२

हम सब लागती हैं

अरे हम सब लागती हैं

सरहज सारी

हम सब….२

बतावा बबुवा

लोगवा देत काहे गारी

बतावा….२

राम जी से पूछें

जनकपुर के नारी

बतावा बबुवा

लोगवा देत काहे गारी

बतावा….२





8-“सिन्दूरदान”


यह अनूठी और दिलचस्प रस्म तो पूरे विश्व में केवल भारत के हिंदू विवाह में ही होती है,सौभाग्य और सुहाग का प्रतीक माना जाने वाला सिन्दूर,पूरे विधि विधान से दूल्हा दुल्हन की माँग में भरता है और उसी के बाद से माना जाता है की बेटी परायी हो गयी और दुल्हन का पूर्ण श्रिंगार भी तभी माना जाता है जब लड़की की माँग सिन्दूर से भर जाये और तभी से वर वधू पति-पत्नी हो जाते हैं.वेदों और पुराणों में भी सिंदूर दान व कन्यादान का संस्कार बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है .



“सोने के सिंघोरवा”


कई कोस चमकेला

सोने के सिंघोरवा

कई कोस चमकेला लिलार हे

कई कोस….२


अंगना में बैठलि बेटी

हो कवन बेटी

बैठलि बाबा के जान हे


दस कोस चमकेला

सोने के सिंघोरवा

तीस कोस चमकेला लिलार हे

दस कोस…२


अंगना में बैठलि बेटी

हो रानी बेटी

बैठलि बाबा के जान हे


अंगना में रोवे भौजी

भैया दुवरिया

माई रोवेलि बैठी द्वार


घरवा में रोवे चाची

चाचा अंगनवाँ

बुआ रोवेलि बैठी द्वार

अंगना में रोवेलि बेटी हो

दुलारी बेटी

निकलेला बाबा के जान हे


दस कोस चमकेला

सोने के सिंघोरवा

कई कोस चमकेला लिलार हे.



“सिंदूरवा”



बेटी चुटकी सेनुरवा

भईल परायी

ससुरवा लोगवा आइ

गईलें ना

बेटी चुटकी….२


जो हम जनती ससुरवा

लोगवा आइहे

जो हम जनती…२

दादी के गोदिया में

जईती लुकाई

ससुरवा लोगवा

घूम जईतें ना


बेटी चुटकी सेनुरवा

भईल परायी

बरतिया लोगवा आइ

गईलें ना

बेटी चुटकी…२


जो हम जनती बरतिया

लोगवा आइहे

जो हम जनती…२

अम्मा के गोदिया में

जईती लुकाई

बरतिया लोगवा

घूम जईतें ना


बेटी चुटकी सेनुरवा

भईल परायी

ससुरवा लोगवा आइ

गईलें ना…२

जो हम जनती ससुरवा

लोगवा आइहे

जो हम जनती…२

भाभी के अँचरा में

जईती लुकाई

ससुरवा लोगवा

घूम जईतें ना…२


बेटी चुटकी सेनुरवा

भईल परायी

ससुरवा लोगवा आइ

गईलें ना.





9-“साथ फेरे” व “लावा परिछन”


क्यू की ये दोनों रस्में साथ में ही होती हैं इसीलिए मैंने दोनों रस्मों का विवरण व गीत साथ में ही लिख दिया है.अग्नि को साक्षी मान कर एक गठ-बंधन में बँध कर वर वधू अग्नि की परिक्रमा करते हुए सात फेरे लेते है.सात बार फेरे लेने का धार्मिक अर्थ ये भी माना जाता है की हम दोनों सात जन्मों के किये आज से एक हुए.इसी के साथ वर वधू आजीवन हँसी ख़ुशी एक साथ जीवन व्यापन के लिए सात वचन भी देते हैं.फेरों के दौरान ही वधू का भाई लावा परिछन की रस्म भी सम्पन्न कराता है.


“सात फेरे”


मण्डप के बीच लाडो

की पड़ रही भँवरिया

मण्डप के..२


पहली भँवर जब

घूमी लाड़ली

पहली..२

बाबा की हो आँखे नम

लाडो की पड़ रही

भँवरिया

मण्डप के..२


दूजी भँवर जब

घूमी लाड़ली

दूजी…२

मैया देवे भर भर आशीष

लाडो की पड़ रही

भँवरिया

मण्डप के….२


तीजी भँवर जब

घूमी लाड़ली

तीजी…२

भैया रोवे दिल थाम

लाडो की पड़ रही

भँवरिया

मण्डप के…२


चौथी भँवर जब

घूमी लाड़ली

चौथी….२

बहिना रही रही हार

लाडो की पड़ रही

भँवरिया

मण्डप के….२


पंचवी भँवर जब

घूमी लाड़ली

पंचवी….२

सखियाँ गावे

मंगलचार

लाडो की पड़ रही

भँवरिया

मण्डप के….२


छठवि भँवर जब

घूमी लाड़ली

छठवि….२

होवे फूलों की बौछार

लाडो की पड़ रही

भँवरिया

मण्डप के..२


सातवीं भँवर जब

घूमी लाड़ली

सातवीं….२

बेटी हो गयी अब तो परायी

लाडो की पड़ रही

भँवरिया

मण्डप के…२


“लावा परिछन गीत”


कवने सूत के बनल रुमलिया

कवने धान के लावा जी

कवने सूत….२

कवने भैया के प्यारी बहिनिया

होईहै आज परायी जी

बड़के भैया के प्यारी बहिनिया

होईहै आज परायी जी


रेशम सूत के बनल रुमलिया

बासमति धान के लावा जी

रेशम सूत…२

बासमति धान…२

कवने भैया के प्यारी बहिनिया

होईहै आज परायी जी

मँझले भैया के प्यारी बहिनिया

होईहै आज परायी जी


कवने सुत के बनल रुमलिया

कवने धान के लावा जी

रेशम सूत के बनल रुमलिया

बासमति धान के लावा जी

कवने भैया के दुलारी बहिनिया

होईहै आज परायी जी

छोटके भैया के दुलारी बहिनिया

होईहै आज परायी जी.



10-“कलेवा” या “खिचड़ी खवाई”


ब्याह सम्पन्न होने के बाद अगले दिन सुबह दूल्हा अपने भाई बहन व मित्रों के साथ आमंत्रित होता है कलेवा जिसे खिचड़ी खवाई भी कहते हैं.ये रस्म भी आँगन में होती है,पकवान परोसने व खिलाने के साथ ही घर की स्त्रियाँ कुछ ना कुछ उपहार भी दूल्हे को देती है,बड़ा रूठना मनाना चलता है इस रस्म में,पहले तो बहुत होता था,दूल्हा किसी ना किसी बात पर रूठा होता था,या किसी वस्तु की माँग करता था और घर के लोग मिन्नतें कर कर के कलेवा कराते थे ऐसे में “गारी” गायी जाती थी तो एक गारी गीत आप के लिए.


“सुनाओ गारी”


गेट बाहर करो सखियाँ

सुनाओ गारी

गेट बाहर करो….२

देखो पूड़ी पे

देखो पूड़ी पे बुनिया

दुबारा जारी

गेट बाहर….२

सुनाओ गारी…२


दुलहा के बहिनी

न पढ़े में तेज ना पढ़ावे में तेज

दुलहा के…२

ख़ाली छः छः ठो

लड़का घुमावे में तेज

गेट बाहर…२

सुनाओ गारी…२


दुलहा के बुआ के

नंदोईया से प्यार

हाँ बहनोईया से प्यार

सारे लखैरा इनके हैं यार

गेट बाहर…२

सुनाओ गारी…२


दुलहा के मौसी

न गावे में तेज न बजावे में तेज

दुलहा के…२

ख़ाली नौ नौ ठो

लडिका होखावे में तेज

गेट बाहर..२

सुनाओ गारी…२


गेट बाहर करो सखियाँ

सुनाओ गारी,हाँ सुनाओ गारी.



11-“माड़ों हिलाई” व “समधी मिलन”


अब तक विवाह की लगभग सभी रस्में हो चुकी होती हैं,ये विदाई से पूर्व की एक रस्म है जिस में वर के पिता व कुछ अन्य गणमान्य बारातियों को आँगन में बुलाया जाता है.पहले तो औपचारिक रूप से दोनों पक्षों के सगे सम्बंधियो का परिचय होता है,वधू पक्ष के लोग कुछ भेंट दे क़र सभी से गले मिलते हैं,ये तो हुआ समधी मिलन इसके बाद विदा से पूर्व,वही मण्डप जो शादी के लिए सजाया गया था,उसे खोलना भी तो है,तो इस के लिए वर के पिता से अनुरोध किया जाता है कि वो मण्डप खोल दें,जिस का अर्थ है की विवाह की सभी रस्में पूरी हुयी और आँगन पूर्ववत किया जा सके.



“रंगदार समधी”


बाँध के खोलाई समधी

माँगे समधिनिया के

बाँध के….२

अंगना में भीड़ भईल भारी

बड़ा रंगदार समधी

बाँध के..२

बड़ा रंगदार…२


बार बार मोछिया पे

ताव दे लें समधी साहब

ना चाही सोना चाँदी गाड़ी

बड़ा रंगदार….२

मड़वा में…२


बाँध के खोलाई समधी

माँगे समधिनिया के

अंगना में भीड़ भईल भारी

बड़ा रंगदार समधी


पाँचो पटीदार अईलें

अंगना के रहिया

बुआ सोहागिन

मुँहे पोत देली दहिया

बुआ सोहागिन…२


ना लीहले गईया

ना लीहले भैंसिया

ना लीहले रुपया हज़ारी

बड़ा रंगदार…२

मड़वा में….२


बड़े बड़े बतिया

करे लें बड़े शान से

माँगत बाटे मड़वा में

नेग सीना तान के

बड़े बड़े…२

ना लीहले गगरा

ना लीहले परतिया हो

ना लीहले लोटा और थारी

बड़ा रंगदार….२

मड़वा में….२


बाँध के खोलाई समधी

माँगे समधिनिया के

मड़वा में भीड़ भईल भारी

बड़ा रंगदार समधी.




12-“विदाई”


अब घड़ी आ गयी विदाई की,अभी तक तो सब बहुत अच्छा लग रहा था,हँसी मज़ाक़ हो रहा था पर लड़की की विदाई एक ऐसा पल होता है जब सब का मन दुखी व आँखे नम हो जाती हैं.एक लड़की के लिए ये एहसास ही बहुत तकलीफ़देह होता है की ये घर-आँगन जहाँ वो पली बढ़ी अब से पराया हो जाएगा,साथ ही माँ-बाप के लिए भी बहुत दुःख का समय होता है जब वो अपने कलेजे के टुकड़े को किसी पराये के साथ विदा कर रहे होते हैं.हमारी सामाजिक व्यवस्था ही ऐसी है की हर पिता को एक दिन अपनी लाड़ली को विदा करना ही होता है.


“अँचरा में”


अँचरा में बाँधी चलली

माई के पिरितिया

अँचरा में…..२

बाबुल के घर छोड़ी

चलली रे बिटिया

बाबुल…२


माई बाबू के झगड़ा

के सुलझाई

बबुआ केकरा

से करिहे लड़ाई

केकरा से मंगिहे

बाबा रोटी पनिया

बाबुल के घर छोड़ी

चलली रे बिटिया


के अब माई से

बोली बतियाई

संग संग इनरवा

से पनिया ले आयी

के अब माई…२

केकरा माई लिखाई

नैहर चिठिया

बाबुल के घर छोड़ी

चलली रे बिटिया


दुखते करेजा से

सखियाँ मेहंदी लगाई

भीजि भीजि अँखिया

भईया धोतिया भीगाई

बनउले रखिहा भौजी

हमरो पिरितिया

बाबुल के घर छोड़ी

चलली रे बिटिया


सून होई अंगना

सून डेहरियाँ

छूटी जईहैं भैया बहिना

छूटी जईहैं सखियाँ

नाहीं बोलिहैं अब

अंगना में कोयलिया

बाबुल के घर छोड़ी

चलली रे बिटिया


अँचरा में बाँधी चलली

माई के पिरितिया

बाबुल के घर छोड़ी

चलली रे बिटिया




तो चलिये बहुत सारे रीति-रिवाजों और और उन पे गाए जाने वाले अलग अलग पारम्परिक गीतों से भरपूर इस पोस्ट को यही विराम देती हूँ,इस आशा और विश्वास के साथ की मेरा ये पुरानी प्रथाओं से नयी पीढ़ी को परिचित कराने का छोटा सा प्रयास आप सभी को पसंद आया होगा.हाँलाकी अभी भी कई रस्में छूट गयी है और हर रस्म के अनगिनत गाने हैं,जो की सब लिखना सम्भव भी नहीं था,तो जो भी बच गया है,प्रयास रहेगा कि अगली बार आप तक पहुँचा सकूँ.यदि कोई त्रुटि हुयी हो तो क्षमा चाहती हूँ,जल्दी ही मिलूँगी एक नये विषय पर नयी पोस्ट के साथ. नमस्कार 🙏


1 comment:

  1. धन्यवाद प्रीति इतनी सुंदर और लुप्त होती जा रही रस्मों का ब्लॉग में जानकारी साझा करने के लिए ये बहुत जरूरी है कि आज की पीढ़ी इन रस्मों को जाने तुम्हारा प्रयास बहुत ही सराहनीय है 🌹🌹

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