हमारे लोक संगीत के ख़ज़ाने में ऐसे-ऐसे अनमोल रत्न हैं,ऐसी अनोखी बातें हैं जिनको जान कर सुन कर ख़ुद हैरानी होती है की हमारे पूर्वज कितने ज्ञानी व गुणी थे,जो इतने कम संसाधनो में भी अपनी बुद्धि के प्रयोग से ऐसे-ऐसे गीतों की रचना कर गए है जो आज भी प्रासंगिक हैं,सार्थक हैं और मनोरंजन के साथ साथ कुछ सीख भी दे जाते हैं.बस आवश्यकता है की हम उन की क़द्र कर सकें,उन्हें सुने समझें व किसी न किसी तरह इस पीढ़ी व आने वाली पीढ़ी तक पहुँचा सकें.
तो चलिए इस बार आप को परिचित कराते हैं “निर्गुण गीतों” से.निर्गुण गीत मूलतः वे गीत हैं जिन में जीवात्मा-परमात्मा सम्बंधी बातें प्रतीक रूप में कही जाती हैं.ये निर्गुण गीत “निर्गुण संत सम्प्रदाय” की भावना पर आधारित होते हैं लेकिन ऐसे फ़क़ीरों के ये गीत या भजन कठिन या अस्पष्ट नहीं वरन भाव-प्रवण व सहज हैं.ऐसे बहुत से गीतों की आख़री पंक्तियो में #कबीर दास जी का नाम आता है किंतु दावा नहीं किया जा सकता है की सभी उन्ही की रचना हैं.ऐसे ही अवधी में कई बार #अमीर खुसरो जी का भी नाम आता है.इन गीतों का चलन पुरातन समय से अब तक चला आ रहा है,साथ ही ऐसे गीत #भोजपुरी या #अवधी भाषा में ज़्यादा गाये जाते हैं,इस का कारण शायद ये है की इन को लिखने वाले इन्हि इलाक़ों से थे.इसीलिए निर्गुण गीतों की सुदीर्घ परम्परा भोजपुरी व अवधी में मौजूद है .ये सारे गीत संसार की असारता व अनाशक्ति के भाव को न केवल बताते हैं बल्कि हमें निर्वेद की स्थिति में पहुँचा देते हैं,ये गीत हमें संसार की वास्तविकता से परिचित कराते हैं.कबीर आदि संतो ने जीवात्मा को स्त्री व परमात्मा को ब्रम्ह रूप में वर्णित किया है,जो हर गीत में नज़र आता है,इसीलिए सुनने में ये गीत साधारण लग सकते हैं पर इन का अर्थ बहुत व्यापक व घुमावदार है.
मृत्यु पर कोई बात नहीं करना चाहता है ना ही ये गीत का विषय है किंतु निर्गुण गीत हमें मौत और उस के बाद का भाव भी समझा देते है.कर्मों का फल प्रारब्ध की जटिलता व जीवन की अन्य कड़वी सच्चाइयों को ये लोक गीत सरलता से आप तक पहुँचा देते हैं.इक वाक्य में कहें तो पूरी ज़िंदगी का फ़लसफ़ा निर्गुण गीत लोक विधा द्वारा हमें समझा देते हैं.ये गीत आज भी गाँवों-चौपालो में गाये व सुने जाते हैं,इन्हें स्त्री व पुरुष दोनों गाते है,ये निर्गुण गीत अपनी विशेष पहचान आज भी रखते हैं और हम आप थोड़ा सा प्रयास करें तो भविष्य में भी अपना स्थान बनाए रखेंगे,इसी मंगल भावना के साथ कुछ निर्गुण गीत आप के लिए प्रस्तुत हैं.
“डोलिया कंहार”
डोलिया कंहार ले के अईले सजनवा...२
अईले सजनवा हो मोरे माँगे लें गवनवा
डोलिया कंहार.....२
डोलिया में हमके दिहैं बैठाई
सुबुकी सुबुकी रोईहैं माई बाप भाई
डोलिया में हमरा के....२
छूटी जाईं हमरे,छूटी जाईं हमरे
बाबुल के अंगनवा
सजनवा हो मोरे माँगे लें गवनवा...२
पंचरंग चुनरी न पहिने गुजरिया
कहेल साजन ओढ़ कोरी चुनरिया....२
लेइ चल थाती जवन कईलू जतनवा
सजनवा हो मोरे माँगे लें गवनवा...२
सब केहु कुछ दूर देई पहुँचाई
लमहर राह में न केहु संग जाईं...२
इहे हवे जाने,इहे हवे रीत जाने
सगरो जहनवा
सजनवा हो मोरे माँगे लें गवनवा...२
जब देखिहै सैंया मोर सोलहो सिंगरवा
हमरा से प्रीत करीहैं दीहैं आदरवा....२
धन्य हो ज़ाईब,धन्य हो ज़ाईब हम
जुड़ा जाईं मनवा
सजनवा हो मोरे माँगे लें गवनवा....२
सोलह संस्कार दीप सोलहो सिंगरवा
पंचरंग चुनरी हो जैसे बा पियरवा....२
छिति जल पावक,छिति जल पावक
गगन पवनवा
सजनवा हो मोरे माँगे लें गवनवा...२
डोलिया कंहार ले के अईले सजनवा
सजनवा हो मोरे माँगे लें गवनवा .

“रोवे ले गुजरिया”
बैठल रोवे ले गुजरिया हो
चुनरिया में दाग़ लग गईल....३
कैसे जाईं पिया के नगरियाँ हो
चुनरिया में....२
बैठल रोवे ले गुजरिया हो
चुनरिया में दाग़ लग गईल...३
आईल बा गवना के
हमरो सनेसवा......२
जाये के बा हमरा के पिया
के देसवा.........२
काच बाटें हमरी उमरिया हो
काच बाटें........२
चुनरिया में दाग़..२
बैठल रोवे ले गुजरिया हो
चुनरिया में दाग़ लग गईल...२
नईहर में चार यार बनवली
दिन रात उनहीं से नैना लड़वली...२
उनके सूतवली हम सेजरिया हो
उनके सूतवली...२
चुनरिया में दाग...२
बैठल रोवे ले गुजरिया हो
चुनरिया में दाग़ लग गईल...२
चार बात सजना के
हम भूल गईली
पछतात बानी की इ का कईलीं...२
डोली आवत हमरो दुआरवा हो..
चुनरिया में दाग़....२
बैठल रोवे ले गुजरिया हो
चुनरिया में दाग़ लग गईल...२
चुनरी के दाग़ रामा
कैसे छोड़ाइब
कैसे हम सजना के
मुँहवाँ देखाइब....२
बरसे ला अँखिया के बदरिया हो
चुनरिया में दाग़...२
बैठल रोवे ले गुजरिया हो
चुनरिया में दाग़ लग गईल
कैसे जाईं पिया के नगरियाँ हो
चुनरिया में दाग़ लग गईल..२

“झुलनि”
झुलनि का रंग साँचा हमार पिया
ओहि झुलनि गोरी लागा हमार जिया
झुलनि...२
ओहि....२
कौन सुनरवा बनायों रे झूलनिया
रंग पड़े नहीं काचा हमार पिया
सुघड़ सुनरवा बनायो रे झूलनिया
दई अग्नि के आँचा हमार जिया
झुलनि के रंग साँचा हमार पिया
ओहि झुलनि गोरी लागा हमार जिया
छिति जल पावक गगन समीरा
तत्व मिलाई दियो पाँचा हमार पिया
पंच रतन से बनी रे झुलिनिया
जोई पहिरा सोई नाचा हमार जिया
झुलनि के रंग साँचा हमार पिया
ओहि झुलनि गोरी लागा हमार जिया
जतन से रखीयो गोरी झुलिनिया
गूँजे चहु दिसि साँचा हमार पिया
टूटी झुलिनिया फिर नाहीं बनिहे
फिर ना मिले ऐसा ढाँचा हमार पिया
झुलनि के रंग साँचा हमार पिया
ओहि झुलनि गोरी लागा हमार जिया
सुर नर मुनि देखी रीझें झूलनिया
कोई ना जग में बाचा हमार पिया
ऐही झुलनि का सकल जग मोहे
इतना मोहें साईं राँचा हमार पिया
झुलनि के रंग साँचा हमार पिया
ओहि झुलनि गोरी लागा हमार जिया.
“गौना नियराना”
करीं हम कौन बहाना
गौना मोरा अब नियराना...३
सब सखियन में मैली चादर
दूजे पिया घर जाना
तीजे डर मोहे सास ननद से
चौथे पिया जी से ताना
गौना मोरा...२
करी हम कौन बहाना
गौना मोरा अब नियराना...२
प्रेम नगर के राह कठिन है
वहाँ रंगरेज पुराना
ऐसी रंग रंगो मोरी चुनरी
ताकि पिया पहिचाना
गौना मोरा...२
करीं अब कौन बहाना
गौना मोरा अब नियराना...२
राह चलत मोहे जब वो
मिली गये
वा के नाम बखाना
कृपा भयी जब मोहे उनकी
तब से लगिहे ठिकाना
गौना मोरा...२
करीं अब कौन बहाना
गौना मोरा अब नियराना .
बहुत सुंदर निर्गुण और भेजिए
ReplyDeleteChhodi ke par aaila ye sawaru
DeleteNew shook nirgun lyrics
ReplyDeleteVhjj
ReplyDeleteAor nirgun Bhajan
ReplyDelete