Monday, 2 October 2017

चाँद शरद का गा रहा है

पूरे विश्व में मुझे लगता है, भारत ही एक मात्र ऐसा देश है जहाँ एक त्योहार समाप्त नहीं होता है की दूसरे की तैयारी शुरू हो जाती है. अभी नवरात्र और दशहरा की धूम-धाम कानों में गूँज ही रही है कि, चुपके से आँगन में करवाचौथ अपनी दस्तक देने लगा है. पुनः स्त्रियाँ व्यस्त हो जायेंगी अपनी-अपनी तैयारियों में. ये सब तो हमारे समाज में,हमरी परम्पराओं में पुरातन समय से चला रहा है, लेकिन करवाचौथ का नवीनीकरण या ऐसा भी कह सकते है की इसको "glamourise" करने में फ़िल्मी जगत का भी बड़ा योगदान है . पहले फ़िल्म जगत ने होली को ख़ूब भुनाया फिर करवाचौथ पे गए . फ़िल्म "baghban" का वो दृश्य बड़ा ही मार्मिक लगता है, जब पत्नी से दूर हो कर    भी पति भी अपनी पत्नी के लिए व्रत करता है,और फ़ोन पर आशीर्वाद लेने के लिए पत्नी को अपने व्रत और खाने के बारे में बताता है.




  सिनेमा, या "T.V. के दृष्टि कोण से देखा जाए तो ये पंजाबी संस्कृति का बड़ा ही लोक प्रिय और रंगीला सा त्योहार लगता है,लेकिन ऐसा नहीं है.भारत के कई अन्य प्रदेशों में भी थोड़ी-बहुत फेर बदल के साथ ये त्योहार हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है.




 मैं उत्तर प्रदेश से हूँ,हमारे रिवाजों में ना तो सास द्वारा भेजी सरगी होती है ना ही हम लोग छलनी से चाँद या पति को देखते है. और कोई पति व्रत रख रहा हो ऐसा तो सिर्फ़ फ़िल्मों में ही होता है.मुझे तो लगता है अब स्त्रियों के लिए ही बड़ा कठिन होता जा रहा है ये पुरातन निर्जला व्रत और रीति-रिवाजों को संभालना,पर मैं ये भी चाहती हूँ की हमारी लोक परम्परायें रीति-रिवाज सुरक्षित रहें और पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहें. इसके लिए चाहिए की हम अपने रीति-रिवाजों में थोड़ा समझौता करें और उन्हें "update" करते रहें.
             आज की नारी जो हर छेत्र में पुरुषों के कंधे से कंधा मिला कर चल रही है, दिन भर नौकरी,व्यापार या किसी अन्य काम के लिए बाहर रहती है, क्या उसके लिए सम्भव है की वो सूर्योदय से ले कर चाँद निकलने तक निर्जला व्रत रख सके. इसी तरह गर्भवती स्त्रियों या कोई बीमार है तो उसके लिए भी बहुत समस्या हो जाती है. पुरानी पीढ़ी से मेरा करबद्ध निवेदन है, और नयी पीढ़ी को सलाह की वो रीति-रिवाजों में थोड़ी ढील दें अपनी अपनी सुविधा के अनुसार कुछ फलाहार खा कर व्रत करें, बाक़ी सारी विधियाँ,साज-सिंगार, गाना-बजाना जो चाहे करे. मुझे लगता है की इस तरह आप ज़्यादा अच्छी तरह और ज़्यादा उत्साह से त्योहार का लुत्फ़ उठा सकेंगे.वरना मैंने अपने आस-पास ऐसे बहुत से लोगों को देखा है जो चाँद के इंतज़ार में दिन भर भूकी प्यासी रह कर निढ़ाल हो जाती है, उमंग और उत्साह, मस्ती करना सब भूल जाता है. बस लगता है चाँद निकले सारी खानापूर्ति हो और आराम से सोने को मिले

मेरा क़तई इरादा नहीं है कि मैं किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाऊँ.
मेरा ये सब लिखने का आशय बस इतना है की इस आधुनिक आपा-धापि वाले समाज में हमारे कट्टर विचारों की वजह से हम अपना कोई त्योहार या परम्परा खो ना दें, बल्कि उसमें थोड़ा सुधार कर उसे बड़े ही उत्साह से मनायें.
 धर्म हमें डराने या दबाव में कोई काम करने के लिए नहीं है, बल्कि अनुशासन में रह कर ख़ुशियाँ मनाने ख़ुशियाँ बाँटने के लिए है.
 करवाचौथ से जुड़े गीत, कहानियाँ तो आप ने बहुत सुने होंगे पर "कविता बैरागी" जी की इक कविता जो मुझे बहुत प्रिय है, आप से "share" कर रही हूँ.



"चाँद शरद का गा रहा है "

मन आँगन आज,
रोशनी से नहा रहा है
चाँद शरद का गा रहा है,सुनो ना,

झर रही हैं अमृत बूँदे,
सो गयी मैं आँखें मूँदे
तुम नहीं क्यूँ अब तक आए,
चाँद शरद का तुम्हें बुलाए, सुनो ना,

केसरी चंदन घुला है,
आस्माँ भी धुला-धुला है
नर्म रेशम का हिंडोला है, सुनो ना,

चाँद से गप-शप करो ना,
आँचल में तारे भरो ना
हवा का हर सुर गुनो ना,
मेरे लिए,

चाँद और चाँदनी को बस,
कुछ देर सुनो ना,


चाँद शरद का गा रहा है, सुनो ना.

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