"सखी वे मुझ से कह कर जाते"- ये पंक्तिया महाकवि मैथिली शरण गुप्त जी द्वारा लिखी गयी है, संदर्भ ये है की गौतम बुद्ध के चुपचाप घर छोड़ कर चले जाने पर व्यथित यशोधरा अपने मन की पीड़ा सखी से कह रही हैं. बचपन में पढ़ी इस कविता का पूरा अर्थ या कहें की यशोधरा का दर्द अब पूरी तरह समझ आता है. तब तो हिंदी में पढ़ाये जाने वाला इक chapter लगता था, शब्द/अर्थ याद कर, exam की कापी में लिख कर अच्छे नम्बर बटोरने का माध्यम मात्र. लेकिन अब लगता है की कितना कुछ कह जाती है ये इक मात्र पंक्ति, इसमें विरह है, अकेलापन है, और स्त्री की पुरुष पर निर्भरता भी दिख जाती है.यशोधरा ही नहीं ऐसे और बहुत से पौराणिक और ऐतिहासिक पात्र मिल जायेंगे जिनकी चर्चा बहुत कम हुयी है, उनके त्याग, तपस्या और वेदना को इतिहास में बहुत कम स्थान मिला है.
आज हम अपने आप को बहुत विकसित और उदारवादी मानते है, हर ओर महिला सशक्तिकरण की बातें हो रही है, पर सोचने वाली बात है की क्या सचमुच ऐसा हो रहा है. हम औरतें ख़ुद ही अपने को बेचारी, लाचार और पुरुष पर निर्भर बताने में लगी रहती है, जब तक हम अपनी इज़्ज़त ख़ुद नहीं करेंगे, दूसरा भी नहीं करेगा.
मैं तो लोकगीतो की बात करती हूँ, जो पुरातन है, जब औरतें ना तो सबल ही थी ना ही आत्मनिर्भर, पर आज के युग में जब मैं अपने आस-पास "चींटियाँ कलाईयाँ वे" जैसे गाने सुनती हूँ, जिसमें लड़की अपने boyfriend से पिक्चर दिखाने या shoping कराने की बात करती है तो लगता है कुछ भी नहीं बदला. केवल शब्द और धुन का फ़र्क़ है, भावना वही है. उसे क्यूँ चाहिए कोई जो उसका सहारा बना सारे काम करवा दे, वो ख़ुद क्यूँ नहीं कर सकती. आप स्वयं सोचिए कि पुराने ज़माने की बनारस, पटना, या किसी और शहर में अकेली बैठी औरत अगर ऐसे गीत गाती है तो इस ज़माने की metro शहर की लड़की जो वेश/भूषा , भाषा से आधुनिक है पढ़ी लिखी है दोनों में कितना अंतर है?वो क्यूँ निर्भरता की बात करती है,उसे किसी के सहारे की ज़रूरत बार बार क्यूँ पड़ती है.पहले अपने आत्मविश्वास को जगायें, निर्भर बने, अपने मन व दूसरों के मन से भी निकालें की हर काम करने के लिए आप को किसी का सहारा लेने की ज़रूरत है. ऐसा नहीं है की परिवर्तन बिलकुल ही नहीं हुआ है, हाँ, ये कहना सही होगा कि बहुत कम हुआ है.
जो बातें लोक भाषा में लोक गीतों में कही जाती थीं, वही फ़िल्मी गीतों में भी है. चलिए हम अपने लोक गीतों पर ही लौट आते हैं लोक गीतों की इक और विशेषता होती है की उनमे किसी बात को सरलता से कह देने का गुण होता है,पहले ज़माने में कुछ ही शहर और उनकी कुछ ख़ास चीज़ें बड़ी प्रसिद्ध होती थी जो बहुत लोक प्रिय हो जाती थी, जाने अनजाने बहुत बार आप ने भी आगरे का पेठा,अलीगढ़ का ताला,बरेली का सुरमा ऐसी बहुत सी प्रसिद्ध चीज़ों के बारे में सुना होगा, जैसे बनारस की कचौड़ी गली की बड़ी धूम है. आज इस internet के ज़माने में जब आप olline shoping कर के कुछ भी कहीं भी मँगा सकते हैं आप को ये बातें उतनी समझ नहीं आ रही होंगी लेकिन किसी बुजुर्ग से पूछ कर देखिए कितना craze होता था, की भैया,आगरा जा रहे हो तो पेठा ज़रूर ले आना,और फ़िरोज़ाबाद से भाभी की चूड़ियाँ भी ले आना. तब लौटा हुआ आदमी जब अपना पिटारा खोलता था तो पूरे मोहल्ले में, रिश्तेदारी में लोग प्रसिद्ध चीज़ों का आनंद उठाते थे. ऐसे ही बीमार व्यक्ति के लिए वैद्य भी दूर शहर से बुलाए जाते थे.
आज मैं जो दो लोक गीत आप के सामने रख रही हूँ, उनमे ऐसे ही शहरों के नाम, पकवान और पटना के वैद्य की बात आएगी, जो आप को ख़ुद ही उन जगहों की सैर करा देंगे और पकवानों का रसास्वादन भी आप भावनात्मक रूप से कर पायेंगे.
"पटना से वैदा बुलाई दा"
पटना से वैदा बुलाई दा,हो नज़रा गईलीं गुइयाँ,
हो नज़रा गईंलीं गुइयाँ.
पटना से .
नज़रा गईलीं गुइयाँ,नज़रा गईली गुइयाँ,
बारे बलम गईलें पूरबी बसनिया,
बारे बलम.
पूरबी बसनिया हो पूरबी बसनिया,
कोई सनेसा पहुँचाई दा,
नज़रा गईलीं गुइयाँ.
पटना से .
हो नज़रा.
छोटकी नन्दीया बड़ी सौतिनिया,
छोटकी.
बड़ी सौतिनिया बड़ी पापीनिया,
छोटकी.
उन्हों के ग़ौना कराई दा,
हो नज़रा गईलीं गुइयाँ,
पटना से.
हो नज़रा.
लहूरा देवरवा करेला छेड़खानी,
लहूरा देवरवा.
करेला छेड़खानी,करेला मनमानी,
ऐ सासु जी समझाईं दा,
नज़रा गईलीं गुइयाँ,
पटना से .
हो नज़रा.
पटना से वैदा बुलाई दा,
हो नज़रा गईलीं गुइयाँ,
पटना से.
नज़रा गईलीं गुइयाँ,नज़रा गईली गुइयाँ.
पटना से .
हो नज़रा.
Listen to this song here: https://www.youtube.com/watch?v=2l3FhqICVhU
"कचौड़ी गली "
सेजिया पे लोटे काला नाग हो,
कचौड़ी गली सून कईला बलमू ,
सेजिया पे.
कचौड़ी गली.
मिर्ज़ापुर कईला गुलज़ार हो,
कचौड़ी गली.
मिर्ज़ापुर कईला .
एही मिर्ज़ापुर से उड़ले जहजवा,
उड़ले जहजवा हो सखी उड़ले जहजवा,
उड़ले जहजवा.
सैयाँ चली गईलें रंगून हो,
कचौड़ी गली.
सेजिया पे.
पनवा से पातर भईलें तोहार धनिया,
भईलें तोहार धनिया हो सखी भईलें,
तोहार धनिया.
पनवा से .
देहिया गलेला जैसे नून हो,
कचौड़ी गली.
सेजिया पे.
हथवा में होत जो हमरे कटरिया,
हमरे कटरिया हो रामा हमरे कटरिया,
हथवा में.
तो बहा देतीं गोरवन के ख़ून हो,
कचौड़ी गली.
सेजिया पे.
सेजिया पे लोटे काला नाग हो,
कचौड़ी गली सून कईले बलमू,
मिर्ज़ापुर कईले गुलज़ार हो,
कचौड़ी गली.
सेजिया पे.
Listen to this song here: https://www.youtube.com/watch?v=fsRi3bBRluk
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