श्री कृष्ण जन्मोत्सव”
अभी कानों में कजरी और झूला के गीतों की गूँज बसी है,पर विदा लेता सावन और दस्तक देता हुआ भादो ये याद करा रहा है की तैयारी कर लो नटवर नागर “श्री कृष्ण” के पावन जन्मदिवस की.पूरे भारत में जन्माष्टमी बहुत हर्षोंउल्लास के साथ मनायी जाती है.मेरे स्वयं बचपन की बहुत सी यादें जुड़ी है,जब हम छोटे थे महीने भर पहले से ही जन्माष्टमी की तैयारी में जुट जाते थे.असल में घर-घर में कृष्ण झाँकी सजाने की परम्परा थी,जिस में घर के बडे से ले कर बच्चे तक उत्साह से भाग लेते थे. अब याद करती हूँ तो कभी-कभी हँसी भी आती है की क्या क्या बेवक़ूफ़ियाँ करते थे हम भी,कभी मित्रों के साथ घर वालों से छुप कर railway line के किनारे से पत्थर चुनने जाते थे क्यूँ की उसी पत्थर से झाँकी का पहाड़ बनता था, धूप में पसीने से लथपथ वो पत्थर चुराने का मज़ा ही कुछ और था.फिर बारी आती थी लकड़ी का बुरादा लाने और उसको अनेक रंगो में रंगने का,बुरादा भी कोई aunty या पड़ोसन मुफ़्त दे दे तो और ख़ुशी होती थी,उस रंगीन बुरादे से ज़मीन पर भिन्न-भिन्न आकृतियाँ बनायी जाती थीं जो की अक्सर मैं ही बनाती थी.अब बारी आती थी इक typical शंकर जी की मूर्ति की जिनकी जटा से pipe से गंगा जी निकाली जा सके ख़ैर अग़ल-बग़ल कहीं मूर्ति भी मिल जाती थी. ये था कि सहयोग सब लोग ख़ुशी-ख़ुशी करते थे. अब प्रबंध करना होता था कुछ plastic और metal के खिलोनों का साथ ही कुछ कृष्ण परिवार के चित्र और मूर्तियों का भी जो झाँकी में सजायी जाती थी.सबसे कठिन और मनोरंजक होता था कंस का कारागार और पहरेदार बनाना group का सबसे creative व्यक्ति ये ज़िम्मेदारी लेता था और थरमाकोल और दफ़्ती से शानदार जेल बन जाती थी,बाक़ी रह गया झूला तो बाज़ार से ले आते थे.जो पालना बना कृष्ण को हौले-हौले झुलाते रहता था. सब से ज़रूरी होता था इक “खीरा” जो उस दिन बहुत महंगा मिलता था क्यूँ की श्री कृष्ण का जन्म उसी खीरे के भीतर से करवाया जाता था.....ये तो आज तक समझ नहीं आया ऐसा क्यूँ......क्या तर्क था इस के पीछे.ख़ैर अब सारी तैयारियाँ पूरी थीं और बारी थी सजावट की तो फिर mummy या aunty की बनारसी साड़ियों पर डाका पड़ता था,जिनसे भव्य location बनती थी पत्थर के पहाड़ और उन पेट रुई की बर्फ़,पहाड़ के ऊपर शंकर जी की प्रतिमा जो जटा से गंगा जी की धारा निकालते थे जो पहाड़ से नीचे आ कर झाँकी की शोभा बढ़ाती थी.ज़मीन पर रंगे बुरादे की design के बीच-बीच में कहीं जेल तो कही पालने में कृष्ण कही यमुना में सूप में कृष्ण को उठाए वासुदेव जी तो कहीं माँ यशोदा माखन की मटकी के साथ कही गोवर्धन पर्वत के नीचे पूरा गोकुल तो कहीं गैया और गोपियों के साथ रास रचाते कन्हैया. कुछ रंग बिरंगी झंडिया,कुछ हरे-भरे गमले और कुछ light की लड़ियाँ,वाह.....क्या सज-धज होती थी.वास्तव में बड़ा मनोहारी दृश्य होता था हमारी झाँकी का,और हम अपनी मेहनत और कलाकारी पर ख़ुद ही बलिहारी जाते थे. शाम होते-होते आस-पड़ोस के लोग,परिवार और ईस्ठ-मित्र सब आ जाते थे,special भूनी धनिया और माखन मिश्री का भोग अपनी मोहक सुगंध बिखेर रहे होते थे.अब कार्यक्रम शुरू होता था गीत-संगीत का,जहाँ कृष्ण की चर्चा हो वहाँ नृत्य-गीत तो निश्चित ही रहता है,सब ढोल मंजीरा ले कर बैठ जाते और सुर से सुर मिला कर भजनों से समाँ गुंजा देते थे और फिर परम्परा अनुसार रात्रि १२ बजे पंडित जी या घर का कोई बड़ा पूरे विधि-विधान से कान्हा का जन्म करा देता, शंख नाद, घंटे और मंत्रो के शोर में नवजात क्रिशन को पालना झुला कर प्रसाद वितरण होता था,जिसका इंतज़ार हम सुबह से कर रहे होते थे. कृष्ण जन्म के बाद बधाई,सोहर और लचारी गीतों की धूम मचती थी.
कुछ ऐसे ही मनोहारी गीतों के साथ जन्माष्टमी पर आप सभी को बहुत बहुत शुभकामनायें.
“नाग नथैया”
रस रस बीन बजैया काले नाग के नथइया
रस रस ......२
केकर गेंद केकर के जी बल्ला
केकर लाल खेलैया
काले नाग के.......
सोने की गेंद चंदन के रि बल्ला
यशोदा के लाल खेलैया
काले नाग के.....२
रस रस बीन बजैया काले नाग के नथैया
रस रस बीन....२
गेंदवा खेलत कान्हा यमुना के तट पे
कूद पड़े यदुरैया
काले नाग के.....२
रस रस बीन बजैया काले नाग के नथैया
रस रस बीन.....२
नाग नाथ कान्हा बाहर आये
फ़न पर नाचत कन्हाईया
काले नाग के.....२
रस रस बीन बजैया काले नाग के नथैया
रस रस बीन....२

“दहिया पी गये”
रात श्याम सपने में आए
रात श्याम....४
दहिया पी गए सा र र र र...२
रात श्याम.....२
जबहीं श्याम मोरी बैयां पकड़ी
जबहीं श्याम......२
चूड़ियाँ कर गयी कर र र र र...२
रात श्याम....२
जबहीं श्याम ने खिड़की खोली
जबहीं श्याम....२
खिड़की कर गयी चर र र र र...२
रात श्याम.....२
जबहीं श्याम मोरी चुनरी पकड़ी
जबहीं श्याम....२
चुनरी उड़ गयी फ़र र र र र....२
रात श्याम....२
रात श्याम सपने में आए
दहिया पी गये सर र र र र....२

“साँवली सूरत”
साँवली सूरत पे मोहन दिल दीवाना हो गया....२
दिल दीवाना हो गया मेरा दिल दीवाना हो गया....२
साँवली सूरत....२
एक तो तेरे नैन तिरछे दूसरा काजल लगाना
तीसरे नज़रें मिलाना
दिल दीवाना.....२
साँवली सूरत.....२
एक तो तेरे होंठ पतले दूसरा लाली लगी
तीसरे मुस्कुराना
दिल दीवाना....२
साँवली सूरत.....२
एक तो तेरे हाथ कोमल दूसरे मेहंदी लगी
तीसरे मुरली बजाना
दिल दीवाना....२
साँवली सूरत.....२
एक तो तेरे पावँ गोरे दूसरे पायल सजी
तीसरे घुँघरू बजाना
दिल दीवाना....२
साँवली सूरत.....२
एक तो तेरे साथ राधा दूसरे रुकमन खड़ी
तीसरे मीरा का आना
दिल दीवाना...२
साँवली सूरत....२
एक तो तेरे भोग छप्पन दूसरे माखन भरा
तीसरे खिचड़े का खाना
दिल दीवान....२
साँवली सूरत...२
एक तो तुम देवता दूसरे प्रियतम मेरे
तीसरे सपनों में आना
दिल दीवाना....२
साँवली सूरत....२
साँवली सूरत पे मोहन दिल दीवाना हो गया
दिल दीवाना हो गया मेरा दिल दीवाना हो गया .

“ओ कान्हा”
ओ कान्हा अब तो मुरली की मधुर सुना दो तान...२
मैं हूँ तेरी प्रेम दीवानी मुझको तू पहचान
ओ कान्हा...२
जब से तुम संग मैंने अपने नैना जोड़ लिये हैं...२
क्या बाबुल क्या भैया बहना सबसे नाते तोड़ लिए हैं...२
तेरे मिलन को व्याकुल हैं कब से मेरे प्राण
मधुर सुना दो....२
ओ कान्हा.....२
सागर से भी गहरी मेरी प्रेम की गहराई...२
लोक लाज की सारी मर्यादा आज तोड़ के मैं आयी..२
मेरी प्रीत से ओ निर्मोही अब ना बनो अनजान
मधुर सुना दो...२
ओ कान्हा......२
मैया रूठी बाबुल रूठा कोई न सुनत हमारी
तेरी प्रीत के कारण हो गया सगरा जग बैरी...२
किसकी शरण में जाऊँ दुखिया तू ही बता भगवान
मधुर सुना दो...२
ओ कान्हा....२
ओ कान्हा अब तो मुरली की मधुर सुना दो तान
मैं हूँ तेरी प्रेम दीवानी मुझको तू पहचान
मधुर सुना दो तान...२

“नज़र नहीं आते”
नज़र में रहते हो मगर नज़र नहीं आते...२
ये दिल बुलाए श्याम तुम्हें मगर तुम नहीं आते
नज़र में रहते....२
साँसो की हर डोर पुकारे साँवरिया
नैना तुझको ही खोजे साँवरिया
तू जो नैनों में आ जाए मेरे
नैनों को बंद कर लूँ साँवरिया
इधर नहीं आते साँवरे इधर नहीं आते...२
ये दिल बुलाए श्याम.....२
नज़र में रहते हो.....२
होता है आभास तुम्हारा साँवरिया
लगता है तू पास खड़ा साँवरिया...२
गिरने के पहले ही संभालोगे
हमको ये यक़ीन है साँवरिया
मेहर नहीं करते साँवरे तुम मेहर नहीं करते...२
ये दिल बुलाए श्याम.....२
नज़र में रहते हो....२
हर कोई तेरा नाम जपे है साँवरिया
हर पल तेरी राह तके है साँवरिया...२
तेरे आने की आस लिए दिल में
तक तक नैन तके है साँवरिया
ख़बर नहीं लेते हमारी ख़बर नहीं लेते...२
ये दिल बुलाए श्याम.....२
नज़र में रहते हो.....२-
नज़र में रहते हो मगर तुम नज़र नहीं आते...२
ये दिल बुलाए श्याम मगर तुम नहीं आते
नज़र में रहते हो....२

“प्यारा श्रींगार”
कितना प्यारा है श्रींगार की तेरी लाऊँ नज़र उतार...२
लाऊँ नज़र उतार की तेरी लाऊँ नज़र उतार
साँवरिया तुमको किसने सजाया है
तुझे सुंदर सा गजरा पहनाया है
कितना प्यारा है...२
तेरी लाऊँ नज़र....२
ओ हो कितना प्यारा है...२
केसर चंदन तिलक लगा कर सज धज कर बैठे हो..२
लग गए तेरे चार चाँद की तूने पहना है जो हार..२
कितना प्यारा है...२
की तेरी लाऊँ नज़र...२
साँवरिया तेरा चेहरा चमकता है...२
तेरा कीर्तन बहुत बड़ा, दरबार महकता है
कितना प्यार है....२
की तेरी लाऊँ नज़र...२
ओ हो कितना प्यारा है....२
किसी भगत से कह कर कान्हा काली टीकी लगवा ले...२
या बोले तो तेरी राई मिर्ची दूँ उतार
कितना प्यारा है....२
की तेरी लाऊँ नज़र...२
पता नहीं तू किस रंग का है आज तक ना जान सकी
बनवारी तेरे रंग देखे हैं,बनवारी तेरे रंग देखे हैं हज़ार.....२
कितना प्यारा है....२
की तेरी लाऊँ नज़र...२
ओ हो कितना प्यारा....२
साँवरिया थोड़ा बच बच के रहना जी...२
थोड़ा मान भी लो अपने भक्तों का कहना जी..२
कितना प्यारा है...२
की तेरी लाऊँ नज़र....२
साँवरिया तेरा रोज करूँ श्रींगार....२
कभी कुटिया में मेरी आ जाओ एक बार.२
कितना प्यारा है....२
की तेरी लाऊँ नज़र...२
कितना प्यारा है श्रींगार की तेरी लाऊँ नज़र उतार...२
लाऊँ नज़र उतार की तेरी लाऊँ नज़र उतार..२
ओ हो कितना प्यारा है श्रींगार.
पूर्वांचल की महक के दो गीत “

“टेर के बाँसुरिया”
टेर के बाँसुरिया टेर के बाँसुरिया
मोहन भयिलें रसिया
रसायी गयीले ना
टेर टेर के बाँसुरिया रसाई गयीले ना
टेर के.....३
हाथों में व्रज सोहे कानन में कुण्डल...२
होंठवा पे सोहेला,होंठोवा पे सोहेला
बाँस के मुरलियाँ....२
रसाई गयीले ना....२
टेर के....२
इनके बाँसुरिया पे नाचें राधा रानी...२
इनके बाँसुरिया पे नाचें गोप गोपियाँ...२
रसाई गयीले ना....२
टेर के....२
टेर के बाँसुरिया मोहन भयिलें रसिया
रसाई गयीले ना
टेर टेर के बाँसुरिया रसाई गयीले ना
टेर के....२

“मोहन”
आ जाओ मेरे मोहन भैया
अब लाज उतरने वाली है....२
आ जाओ हे यशोदा के छईया
अब लाज....२
आ जाओ....२
दुशासन अत्याचारी है
वो कर से खींचत सारी है...२
आ जाओ हे लाज के रखवैया
अब लाज...२
आ जाओ...२
मेरे पाँचो पती सब मौन हुए
कौरव भी सभासद घेरे हुए...२
आ जाओ हे चीर के रखवैया
अब लाज....२
आ जाओ....२
जब मोहन तुमको चोट लगी
और ख़ून की धारा बह निकली...२
जिस चीर से बाँधा था भैया
वो चीर उतरने वाली है...२
आ जाओ हे चीर के रखवैया
अब लाज...२
आ जाओ...२
आ जाओ मेरे मोहन भैया
अब लाज उतरने वाली है..२
आ जाओ हे यशोदा के छईया
अब लाज उतरने वाली है.
अभी कानों में कजरी और झूला के गीतों की गूँज बसी है,पर विदा लेता सावन और दस्तक देता हुआ भादो ये याद करा रहा है की तैयारी कर लो नटवर नागर “श्री कृष्ण” के पावन जन्मदिवस की.पूरे भारत में जन्माष्टमी बहुत हर्षोंउल्लास के साथ मनायी जाती है.मेरे स्वयं बचपन की बहुत सी यादें जुड़ी है,जब हम छोटे थे महीने भर पहले से ही जन्माष्टमी की तैयारी में जुट जाते थे.असल में घर-घर में कृष्ण झाँकी सजाने की परम्परा थी,जिस में घर के बडे से ले कर बच्चे तक उत्साह से भाग लेते थे. अब याद करती हूँ तो कभी-कभी हँसी भी आती है की क्या क्या बेवक़ूफ़ियाँ करते थे हम भी,कभी मित्रों के साथ घर वालों से छुप कर railway line के किनारे से पत्थर चुनने जाते थे क्यूँ की उसी पत्थर से झाँकी का पहाड़ बनता था, धूप में पसीने से लथपथ वो पत्थर चुराने का मज़ा ही कुछ और था.फिर बारी आती थी लकड़ी का बुरादा लाने और उसको अनेक रंगो में रंगने का,बुरादा भी कोई aunty या पड़ोसन मुफ़्त दे दे तो और ख़ुशी होती थी,उस रंगीन बुरादे से ज़मीन पर भिन्न-भिन्न आकृतियाँ बनायी जाती थीं जो की अक्सर मैं ही बनाती थी.अब बारी आती थी इक typical शंकर जी की मूर्ति की जिनकी जटा से pipe से गंगा जी निकाली जा सके ख़ैर अग़ल-बग़ल कहीं मूर्ति भी मिल जाती थी. ये था कि सहयोग सब लोग ख़ुशी-ख़ुशी करते थे. अब प्रबंध करना होता था कुछ plastic और metal के खिलोनों का साथ ही कुछ कृष्ण परिवार के चित्र और मूर्तियों का भी जो झाँकी में सजायी जाती थी.सबसे कठिन और मनोरंजक होता था कंस का कारागार और पहरेदार बनाना group का सबसे creative व्यक्ति ये ज़िम्मेदारी लेता था और थरमाकोल और दफ़्ती से शानदार जेल बन जाती थी,बाक़ी रह गया झूला तो बाज़ार से ले आते थे.जो पालना बना कृष्ण को हौले-हौले झुलाते रहता था. सब से ज़रूरी होता था इक “खीरा” जो उस दिन बहुत महंगा मिलता था क्यूँ की श्री कृष्ण का जन्म उसी खीरे के भीतर से करवाया जाता था.....ये तो आज तक समझ नहीं आया ऐसा क्यूँ......क्या तर्क था इस के पीछे.ख़ैर अब सारी तैयारियाँ पूरी थीं और बारी थी सजावट की तो फिर mummy या aunty की बनारसी साड़ियों पर डाका पड़ता था,जिनसे भव्य location बनती थी पत्थर के पहाड़ और उन पेट रुई की बर्फ़,पहाड़ के ऊपर शंकर जी की प्रतिमा जो जटा से गंगा जी की धारा निकालते थे जो पहाड़ से नीचे आ कर झाँकी की शोभा बढ़ाती थी.ज़मीन पर रंगे बुरादे की design के बीच-बीच में कहीं जेल तो कही पालने में कृष्ण कही यमुना में सूप में कृष्ण को उठाए वासुदेव जी तो कहीं माँ यशोदा माखन की मटकी के साथ कही गोवर्धन पर्वत के नीचे पूरा गोकुल तो कहीं गैया और गोपियों के साथ रास रचाते कन्हैया. कुछ रंग बिरंगी झंडिया,कुछ हरे-भरे गमले और कुछ light की लड़ियाँ,वाह.....क्या सज-धज होती थी.वास्तव में बड़ा मनोहारी दृश्य होता था हमारी झाँकी का,और हम अपनी मेहनत और कलाकारी पर ख़ुद ही बलिहारी जाते थे. शाम होते-होते आस-पड़ोस के लोग,परिवार और ईस्ठ-मित्र सब आ जाते थे,special भूनी धनिया और माखन मिश्री का भोग अपनी मोहक सुगंध बिखेर रहे होते थे.अब कार्यक्रम शुरू होता था गीत-संगीत का,जहाँ कृष्ण की चर्चा हो वहाँ नृत्य-गीत तो निश्चित ही रहता है,सब ढोल मंजीरा ले कर बैठ जाते और सुर से सुर मिला कर भजनों से समाँ गुंजा देते थे और फिर परम्परा अनुसार रात्रि १२ बजे पंडित जी या घर का कोई बड़ा पूरे विधि-विधान से कान्हा का जन्म करा देता, शंख नाद, घंटे और मंत्रो के शोर में नवजात क्रिशन को पालना झुला कर प्रसाद वितरण होता था,जिसका इंतज़ार हम सुबह से कर रहे होते थे. कृष्ण जन्म के बाद बधाई,सोहर और लचारी गीतों की धूम मचती थी.
कुछ ऐसे ही मनोहारी गीतों के साथ जन्माष्टमी पर आप सभी को बहुत बहुत शुभकामनायें.

“नाग नथैया”
रस रस बीन बजैया काले नाग के नथइया
रस रस ......२
केकर गेंद केकर के जी बल्ला
केकर लाल खेलैया
काले नाग के.......
सोने की गेंद चंदन के रि बल्ला
यशोदा के लाल खेलैया
काले नाग के.....२
रस रस बीन बजैया काले नाग के नथैया
रस रस बीन....२
गेंदवा खेलत कान्हा यमुना के तट पे
कूद पड़े यदुरैया
काले नाग के.....२
रस रस बीन बजैया काले नाग के नथैया
रस रस बीन.....२
नाग नाथ कान्हा बाहर आये
फ़न पर नाचत कन्हाईया
काले नाग के.....२
रस रस बीन बजैया काले नाग के नथैया
रस रस बीन....२

“दहिया पी गये”
रात श्याम सपने में आए
रात श्याम....४
दहिया पी गए सा र र र र...२
रात श्याम.....२
जबहीं श्याम मोरी बैयां पकड़ी
जबहीं श्याम......२
चूड़ियाँ कर गयी कर र र र र...२
रात श्याम....२
जबहीं श्याम ने खिड़की खोली
जबहीं श्याम....२
खिड़की कर गयी चर र र र र...२
रात श्याम.....२
जबहीं श्याम मोरी चुनरी पकड़ी
जबहीं श्याम....२
चुनरी उड़ गयी फ़र र र र र....२
रात श्याम....२
रात श्याम सपने में आए
दहिया पी गये सर र र र र....२

“साँवली सूरत”
साँवली सूरत पे मोहन दिल दीवाना हो गया....२
दिल दीवाना हो गया मेरा दिल दीवाना हो गया....२
साँवली सूरत....२
एक तो तेरे नैन तिरछे दूसरा काजल लगाना
तीसरे नज़रें मिलाना
दिल दीवाना.....२
साँवली सूरत.....२
एक तो तेरे होंठ पतले दूसरा लाली लगी
तीसरे मुस्कुराना
दिल दीवाना....२
साँवली सूरत.....२
एक तो तेरे हाथ कोमल दूसरे मेहंदी लगी
तीसरे मुरली बजाना
दिल दीवाना....२
साँवली सूरत.....२
एक तो तेरे पावँ गोरे दूसरे पायल सजी
तीसरे घुँघरू बजाना
दिल दीवाना....२
साँवली सूरत.....२
एक तो तेरे साथ राधा दूसरे रुकमन खड़ी
तीसरे मीरा का आना
दिल दीवाना...२
साँवली सूरत....२
एक तो तेरे भोग छप्पन दूसरे माखन भरा
तीसरे खिचड़े का खाना
दिल दीवान....२
साँवली सूरत...२
एक तो तुम देवता दूसरे प्रियतम मेरे
तीसरे सपनों में आना
दिल दीवाना....२
साँवली सूरत....२
साँवली सूरत पे मोहन दिल दीवाना हो गया
दिल दीवाना हो गया मेरा दिल दीवाना हो गया .

“ओ कान्हा”
ओ कान्हा अब तो मुरली की मधुर सुना दो तान...२
मैं हूँ तेरी प्रेम दीवानी मुझको तू पहचान
ओ कान्हा...२
जब से तुम संग मैंने अपने नैना जोड़ लिये हैं...२
क्या बाबुल क्या भैया बहना सबसे नाते तोड़ लिए हैं...२
तेरे मिलन को व्याकुल हैं कब से मेरे प्राण
मधुर सुना दो....२
ओ कान्हा.....२
सागर से भी गहरी मेरी प्रेम की गहराई...२
लोक लाज की सारी मर्यादा आज तोड़ के मैं आयी..२
मेरी प्रीत से ओ निर्मोही अब ना बनो अनजान
मधुर सुना दो...२
ओ कान्हा......२
मैया रूठी बाबुल रूठा कोई न सुनत हमारी
तेरी प्रीत के कारण हो गया सगरा जग बैरी...२
किसकी शरण में जाऊँ दुखिया तू ही बता भगवान
मधुर सुना दो...२
ओ कान्हा....२
ओ कान्हा अब तो मुरली की मधुर सुना दो तान
मैं हूँ तेरी प्रेम दीवानी मुझको तू पहचान
मधुर सुना दो तान...२

“नज़र नहीं आते”
नज़र में रहते हो मगर नज़र नहीं आते...२
ये दिल बुलाए श्याम तुम्हें मगर तुम नहीं आते
नज़र में रहते....२
साँसो की हर डोर पुकारे साँवरिया
नैना तुझको ही खोजे साँवरिया
तू जो नैनों में आ जाए मेरे
नैनों को बंद कर लूँ साँवरिया
इधर नहीं आते साँवरे इधर नहीं आते...२
ये दिल बुलाए श्याम.....२
नज़र में रहते हो.....२
होता है आभास तुम्हारा साँवरिया
लगता है तू पास खड़ा साँवरिया...२
गिरने के पहले ही संभालोगे
हमको ये यक़ीन है साँवरिया
मेहर नहीं करते साँवरे तुम मेहर नहीं करते...२
ये दिल बुलाए श्याम.....२
नज़र में रहते हो....२
हर कोई तेरा नाम जपे है साँवरिया
हर पल तेरी राह तके है साँवरिया...२
तेरे आने की आस लिए दिल में
तक तक नैन तके है साँवरिया
ख़बर नहीं लेते हमारी ख़बर नहीं लेते...२
ये दिल बुलाए श्याम.....२
नज़र में रहते हो.....२-
नज़र में रहते हो मगर तुम नज़र नहीं आते...२
ये दिल बुलाए श्याम मगर तुम नहीं आते
नज़र में रहते हो....२

“प्यारा श्रींगार”
कितना प्यारा है श्रींगार की तेरी लाऊँ नज़र उतार...२
लाऊँ नज़र उतार की तेरी लाऊँ नज़र उतार
साँवरिया तुमको किसने सजाया है
तुझे सुंदर सा गजरा पहनाया है
कितना प्यारा है...२
तेरी लाऊँ नज़र....२
ओ हो कितना प्यारा है...२
केसर चंदन तिलक लगा कर सज धज कर बैठे हो..२
लग गए तेरे चार चाँद की तूने पहना है जो हार..२
कितना प्यारा है...२
की तेरी लाऊँ नज़र...२
साँवरिया तेरा चेहरा चमकता है...२
तेरा कीर्तन बहुत बड़ा, दरबार महकता है
कितना प्यार है....२
की तेरी लाऊँ नज़र...२
ओ हो कितना प्यारा है....२
किसी भगत से कह कर कान्हा काली टीकी लगवा ले...२
या बोले तो तेरी राई मिर्ची दूँ उतार
कितना प्यारा है....२
की तेरी लाऊँ नज़र...२
पता नहीं तू किस रंग का है आज तक ना जान सकी
बनवारी तेरे रंग देखे हैं,बनवारी तेरे रंग देखे हैं हज़ार.....२
कितना प्यारा है....२
की तेरी लाऊँ नज़र...२
ओ हो कितना प्यारा....२
साँवरिया थोड़ा बच बच के रहना जी...२
थोड़ा मान भी लो अपने भक्तों का कहना जी..२
कितना प्यारा है...२
की तेरी लाऊँ नज़र....२
साँवरिया तेरा रोज करूँ श्रींगार....२
कभी कुटिया में मेरी आ जाओ एक बार.२
कितना प्यारा है....२
की तेरी लाऊँ नज़र...२
कितना प्यारा है श्रींगार की तेरी लाऊँ नज़र उतार...२
लाऊँ नज़र उतार की तेरी लाऊँ नज़र उतार..२
ओ हो कितना प्यारा है श्रींगार.
पूर्वांचल की महक के दो गीत “
“टेर के बाँसुरिया”
टेर के बाँसुरिया टेर के बाँसुरिया
मोहन भयिलें रसिया
रसायी गयीले ना
टेर टेर के बाँसुरिया रसाई गयीले ना
टेर के.....३
हाथों में व्रज सोहे कानन में कुण्डल...२
होंठवा पे सोहेला,होंठोवा पे सोहेला
बाँस के मुरलियाँ....२
रसाई गयीले ना....२
टेर के....२
इनके बाँसुरिया पे नाचें राधा रानी...२
इनके बाँसुरिया पे नाचें गोप गोपियाँ...२
रसाई गयीले ना....२
टेर के....२
टेर के बाँसुरिया मोहन भयिलें रसिया
रसाई गयीले ना
टेर टेर के बाँसुरिया रसाई गयीले ना
टेर के....२
“मोहन”
आ जाओ मेरे मोहन भैया
अब लाज उतरने वाली है....२
आ जाओ हे यशोदा के छईया
अब लाज....२
आ जाओ....२
दुशासन अत्याचारी है
वो कर से खींचत सारी है...२
आ जाओ हे लाज के रखवैया
अब लाज...२
आ जाओ...२
मेरे पाँचो पती सब मौन हुए
कौरव भी सभासद घेरे हुए...२
आ जाओ हे चीर के रखवैया
अब लाज....२
आ जाओ....२
जब मोहन तुमको चोट लगी
और ख़ून की धारा बह निकली...२
जिस चीर से बाँधा था भैया
वो चीर उतरने वाली है...२
आ जाओ हे चीर के रखवैया
अब लाज...२
आ जाओ...२
आ जाओ मेरे मोहन भैया
अब लाज उतरने वाली है..२
आ जाओ हे यशोदा के छईया
अब लाज उतरने वाली है.
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