शायद हमारा पुरातन समाज ही ज़्यादा समझदार और आधुनिक था.तब तो कहीं कभी “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” जैसे कार्यक्रम कर के समाज को जागृत करने का काम नहीं होता था,आज के ज़माने में हम आए दिन ऐसे कार्यक्रम देखते रहते हैं.कुछ दिनो पहले social media पे मैं देख रही थी सभी अपने whatsapp या fb के status पर “मेरी बेटी मेरा अभिमान” की pic लगा रहे थे,पहले तो ऐसा नहीं होता था,और मुझे नहीं लगता की ऐसा कुछ करने से समाज की सोच बदली जा सकती है.इस को बदलने का इक ही तरीक़ा है,और वो ये की हर व्यक्ति और हर परिवार अपनी सोच और आदतों में परिवर्तन लायें. मैं समझती हूँ की किसी भी समाज को बदलने के लिए किसी बडे कार्यक्रम से अधिक कारगर है की आप अपने आप को व अपनी सोच को बदलें,समाज स्वयं बदल जायेगा. यदि इतिहास उठा कर देखें तो चिर-पुरातन समाज में स्त्री और पुरुष को समान अधिकार थे.और वास्तविकता भी यही है की दोनों इक दूसरे के पूरक है. यदि दोनों में समानता और समागम नहीं होगी तो सृष्टि की रचना सम्भव ही नहीं है. कहने का अर्थ इतना ही है की जितनी आवश्यकता इक पुरुष की है उतनी ही इक स्त्री की भी,नहीं तो सृष्टि का विकास ही रुक जायेगा और इसे हमारे पूर्वज बहुत अच्छे से समझते थे शायद हम ही समझ नहीं पा रहे. इसी लिए वो सन्तान की उत्पत्ति को बहुत आवश्यक व शुभ मानते थे और ऐसे अवसर पर ख़ुशियाँ मानते थे.मध्यकाल तक आते आते समाज को व्यवस्थित रूप से चलाने के लिए कुछ नियम और क़ानून बनाए गए जिनका विस्तार से वर्णन यहाँ सम्भव नहीं किंतु वहाँ भी कभी स्त्री को दोयम दर्जे का या नीचा नहीं समझा गया, पर बीच में बहुत कुछ और होता गया,कभी यवनों का तो कभी मुग़लों का शासन रहा तो स्वाभाविक है की उनके रीति-रिवाजों का हमारे समाज पर भी बहुत असर हुआ और पर्दा प्रथा,स्त्रियों को बंधन में रखना, दहेज आदि बहुत सी ग़लत परम्पराओं का प्रचलन हो गया.ऐसी ही बहुत सी कुरीतियों के कारण शायद लोग पुत्र और पुत्री में भेद-भाव करने लगे. अतः जहाँ सन्तान महत्वपूर्ण थी वहीं पुत्र महत्वपूर्ण हो गया. इसी लिए हमारे लोक गीतों में अधिकतर पुत्र जन्म और उसकी बधाई का ही वर्णन होता है, शायद ही कहीं पुत्री के जन्म का संदर्भ लोक गीतों में आता है. ऐसी ही भ्रांति व्रत को ले कर भी है,जब हमारे समाज की रचना हो रही थी कुछ रीति-रिवाज व त्योहार की संकल्पना की जा रही थी तभी कुछ अवसरों पर सन्तान के लिए व्रत रखने की परम्परा बनी,लेकिन कालांतर में ये पुत्र व्रत की परम्परा तक ही सीमित हो गयी, जिसे की आज की अपने आप को बहुत आधुनिक और updated समझने वाली औरतें भी करती हैं,तो यहाँ आप को समझदारी दिखाने की आवश्यकता है,आप समझें, की व्रत सन्तान के लिए होता है ना की केवल पुत्र के लिए. लकीर का फ़क़ीर बनने की बजाय आप स्वयं समझें की सन्तान महत्वपूर्ण है चाहे वो पुत्र हो या पुत्री. यदि आप अपने बेटे के लिए व्रत रखती है तो अपनी बेटी के लिए भी रखें,समाज बदलेगा भी और विकसित भी होगा. मैं अपने blog पर लिखने के लिये कुछ पुत्री जन्म से सम्बंधित गीत ढूँढ रही थी, बड़ी मुश्किल से इक,दो गीत मिले जो आप से साझा कर रही हूँ.

“हमरे बिटिया”
हमरे भयी बिटिया
ऐ टोपी वाले हमार भयी बिटिया...२
देवरनियाँ जेठनियाँ के भैले बेटौवा
देवरनियाँ...२
हमार भयी बिटिया
ऐ टोपी वाले हमरे भयी बिटिया
ऐ टोपी...२
देवरनियाँ जेठनिया तो काम करी
करी मरिहैं
देवरनियाँ....२
हमार करी बिटिया ऐ टोपी वाले
हमार करी बिटिया...२
हमरे भयी बिटिया
ऐ टोपी....२
देवरनियाँ जेठनिया के आइहैं
पतोहिया
देवरनियाँ.....२
हमार आयी दमदा ऐ टोपी वाले
हमार आयी दमदा...२
हमरे भयी बिटिया
ऐ टोपी....२
देवरनियाँ जेठनिया के लडीहें
पतोहिया
देवरनियाँ....२
हमार हँसी दमदा ऐ टोपी वाले
हमार हँसी दमदा....२
हमरे भयी बिटिया
ऐ टोपी...२
हमरे भयी बिटिया
ऐ टोपी वाले हमार भयी बिटिया .
“काहे रोवे गुड़िया”
काहे के रोवे बिटिया
सबेरे घुनघुन वाँ मँगाई देब हो
काहे रोवे...२
दादा से कहिबे दादी से कहिबे
दादा....२
चाचा से बोले गुड़िया
सबेरे घुनघुन वाँ मँगाई देब हो...२
काहे रोवे...२
अम्माँ से कहिबे बाबा से कहिबे
अम्माँ...२
भैया से बोले रे रनिया
सबेरे घुनघुन वाँ मँगाई देब हो...२
काहे रोवे....२
मामा से कहिबे मामी से कहिबे
मामा....२
मौसी से बोले गुड़िया
सबेरे घुनघुन वाँ मँगाई देब हो...२
काहे रोवे....२
भैया से कहिबे भाभी से कहिबे
भैया...२
दीदी से बोले रे गुड़िया
सबेरे घुनघुन वाँ मँगाई देब हो...२
काहे रोवे...२
काहे के रोवे मोरी गुड़िया
सबेरे घुनघुन वाँ मँगाई देब हो
काहे के रोवे...२

“तीत लागे”
तीत लागे तीत लागे कडु लागे हो
हरिरा पिया नहीं जाये
हरिरा कडु लागे हो.....२
सास रिसीयीहें हमार का करिहे
सास...२
बहुत करिहे तो देवता ना मनाईंहैं...२
देवता मनाने मेरी अम्माँ आए हो...२
हरिरा पिया....२
तीत लागे....२
जिठनि रिसीयीहें हमार का करिहे
जिठनि.....२
बहुत करिहे तो पीपली ना पिसैहै...२
पीपली पिसाने मेरी भाभी आए हो...२
हरिरा पिया...२
तीत लागे.....२
ननद रिसीयीहें हमार का करिहे
ननद...२
बहुत करिहे तो कजला ना लगैहे...२
कजला लगाने मेरी बहना आए हो..२
हरिरा पिया...२
तीत लागे....२
तीत लागे तीत लागे कडु लागे हो
हरिरा पिया नहीं जाए
हरिरा कडु लागे हो.
वैसे तो मैं अपने blog पे केवल लोक गीत और उन से सम्बंधित बातें ही लिखती हूँ, पर समाज की दशा और दिशा देख कर कभी-कभी बहुत कष्ट होता है. सौभाग्य से हमारी पीढ़ी को जहाँ बहुत पुरानी परम्परायें,रस्म, रिवाजों के बारे में पता है वहीं दूसरी ओर technologically में हम इतने आगे बढ़ चुके हैं की कभी अंतरिक्ष में “मंगल यान” भेज रहे हैं तो कभी चाँद पर घर बसाने की भी बात करते हैं.ऐसी ही विचित्र और विभिन्न मानसिकता में हम जी रहे हैं,शायद इसीलिए समाज में संतुलन की बहुत ज़रूरत है.कुछ लोग ऐसे मिलते हैं जो सिर्फ़ आधुनिकीकरण के ही पीछे भाग रहे हैं तो कुछ पुराने संस्कारों और रीति-रिवाजों को छोड़ नहीं पा रहे हैं.मेरा मानना है कि दोनों धाराओं को साथ ले कर चलने की आवश्यकता है,तभी इक संतुलित और विकसित समाज का निर्माण हो सकता है.इस युग में सम्भव ही नहीं है की हम हर तरह से updated ना हों,समाज का विकास ही रुक जायेगा इसलिए आगे बढ़ें नए प्रयोग कर अपना व समाज का उत्थान करें. मेरे इस post में बच्चे के जन्म से सम्बंधित बातें और गाने थे.आज मैं आप को “लचारी” के बारे में बताने वाली थी,पर लिखते समय मन में आया की कुछ तथ्यों से भी आप को अवगत करा दूँ,असल में हमारे आस-पास ही ये सब होता रहता है पर हम ध्यान नहीं दे पाते हैं.जैसा सर्व विदित है की 60 और 70 के दशक में अधिकतर बच्चे घर पर ही बिना किसी Doctor की देख-रेख के ही पैदा हो जाते थे और घर वालों की देखभाल में रहते थे,पर अब ना तो परिवार है ना समय है और ना ही ऐसा होना चाहिये की जच्चा-बच्चा बिना किसी medical सुविधा के रहें.प्रसव कितना कठिन समय होता है इक स्त्री के लिए ये इक माँ ही समझ सकती है साथ ही नवजात शिशु को भी Doctor की देख-भाल चाहिये होती हैं.जो की पहले नहीं थी पर अब सबको सुविधा मिल जाती है इसका नतीजा ये है की जहाँ 1960 में IMR 245 थी वहीं अब 2018 में ये संख्या घट कर केवल 34 रह गयी है. इसका सीधा सा अर्थ है की सुविधाओं के अभाव में 1960 में पैदा होने वाले 1000 बच्चों में से 245 बच्चों की मृत्यु हो जाती थी जो अब सौभाग्य और विज्ञान की वजह से घट कर प्रत्येक 1000 बच्चों से हम केवल 34 बच्चे ही खोते हैं,और भविष्य में इस से भी अच्छा होगा.
बहुत गम्भीर बातें हो गयी चलिये पुनः आप को परम्परा और गीत-संगीत की ओर ले चलती हूँ. लचारी गीत हल्के-फुल्के और बहुत मनोरंजक होते हैं और इन में हमारी रीतियाँ,रिवाज और परिवार के लगभग सभी सदस्यों का ज़िक्र हो जाता है.कहीं जिठानि-देवरानी का नेग है तो कहीं रूठी ननद की हठ कहीं देवर का प्यार है तो कहीं सास-ससुर का आशीर्वाद. इतना ही नहीं इन गीतों में बहुत मीठे व्यंग व मीठी गालियाँ दूसरे पक्ष के लिए गायी जाती है.ऐसे ही हँसी-ठिठोलि और मनोरंजन से भरपूर हैं ये लोक गीत.इन्हि में से कुछ गीतों के रंग आप के लिए लायी हूँ.आशा है आप गीतों का आनंद लेंगे और मेरा विनम्र संदेश भी समझने का प्रयास करेंगे .

“कृष्ण अवतार”
श्री कृष्ण लिए अवतार सखी मामा के जेलों में...३
मामा के जेलों में सासु नहीं थीं
मामा के.....२
देवता कौन मनाये सखी...२
मामा के....२
श्री कृष्ण लिए अवतार सखी मामा के जेलों में...२
मामा के जेलों में जिठनि नहीं थी
मामा के....२
पीपली कौन पिसाए सखी....२
मामा के....२
श्री कृष्ण लिए अवतार सखी मामा के जेलों में...२
मामा के जेलों में नन्दी नहीं थी...२
मामा के....२
काजल कौन लगाये सखी...२
मामा के....२
श्री कृष्ण लिए अवतार सखी मामा के जेलों में...२

“गोरा लालन”
गोरा गोरा लालन खेल रहा आँगन
सिर पर घुंघर दार बाल
बाहर मत जाना....२
दादा घर जाना दादी घर जाना...२
दादी करेंगी तेरा प्यार...२
बाहर मत....२
गोरा गोरा....२
नाना घर जाना नानी घर जाना...२
नानी करेंगी तेरा प्यार....२
बाहर मत...२
गोरा गोरा...२
मामा घर जाना मामी घर जाना...२
मामी करेंगी तेरा प्यार....२
बाहर मत....२
गोरा गोरा....२
बुआ घर जाना फूफा घर जाना...२
बुआ करेंगी तेरा प्यार....२
बाहर मत...२
गोरा गोरा...२
गोरा गोरा लालन खेल रहा आँगन
सिर पे घुंघर दार बाल
बाहर मत जाना.

“ऐ हरी”
ललना के टूटे ना पलनवा
लालन बड़ा रोवे ऐ हरी....२
लालन बड़ा रोवे ऐ हरी
लालन बड़ा....२
ललना के टूटे....२
आपन अम्माँ होती तो हुलस के उठौति..२
सैयाँ जी के अम्माँ निर्मोहिया....२
दरदियो ना जाने ऐ हरी....२
ललना के टूटे ला पलनवा
लालन बड़ा...२
आपन भाभी होती तो हुलस के उठौति...२
सैयाँ जी के भाभी निर्मोहिया...२
दरदियो ना जाने ऐ हरी....२
ललना के टूटे ला पलनवा
लालन बड़ा...२
आपन बहिना होती तो हुलस के उठौति.२
सैयाँ जी के बहिना निर्मोहिया....२
दरदियो ना जाने ऐ हरी...२
ललना के टूटे ला पलनवा
लालन बड़ा रोवे ऐ हरी...२

“होवे ला ललनवा”
उठे ला दरदिया बड़ा ज़ोर हो जाला....२
होवे ला ललनवा बड़ा शोर हो जाला...२
हम तो चललीं अंगनवा
सासु देखे ली ललनवा
लालन चंदा चकोर हो....२
हम तो...२
कहँवा लुकाई ले के जाईं
का करी हो....२
सबकी नज़रिया लालन की ओर हो जाला..२
होवे ला ललनवा....२
हम तो चललीं दूवरिया
जिजी देखे ली ललनवा
लालन चंदा चकोर हो....२
हम तो...२
कहँवा लुकाई ले के जाईं
का करी हो...२
सबकी नज़रिया लालन की ओर हो
जाला...२
होवे ला ललनवा....२
हम तो चललीं बहरवा
नन्दी देखलि ललनवा
लालन चंदा चकोर हो...२
हम तो...२
कहँवा लुकाई ले के जाईं
का करी हो...२
सबकी नज़रिया लालन की ओर हो
जाला...२
होवे ला ललनवा...२
उठे ला दरदिया बड़ा ज़ोर हो जाला..२
होवे ला ललनवा बड़ा शोर हो जाला..२
“सोहर व लचारी की उमंग”
जैसे की अपने पहले पोस्ट में मैं वर्णन कर चुकी हूँ की कैसे कृष्ण जन्मोत्सव की तैयरियाँ की जाती थी. फिर जन्म के बाद आरती और प्रसाद वितरण होता था.अब बारी आती है बधाई, सोहर, लचारी गाने का.हमारी भारतीय परम्परा में तो किसी बालक का जन्म बहुत हर्षोल्लास का होता है,और इस अवसर पर बधाई गाना बहुत पुरानी रीत है. घर की सभी स्त्रियाँ व आस-पड़ोस के लोग भी मिल कर गीत-संगीत का आनंद लेते हैं. पहले आप को सोहर के बारे में बता दूँ,ये लोक गीत की वो विधा हैं जो बच्चे के जन्म अवसर,मुंडन संस्कार,यज्ञों पवीत और जन्मदिन की वर्ष गाँठ पर भी गाया जाता है इसकी एक अलग ही राग होती है और अक्सर घर की बड़ी बुज़ुर्ग स्त्रियाँ ही गाती थीं,जो की अब बहुत कम ही सुन ने को मिलता है मुझे अपनी सांस्कृतिक विरासत से बहुत लगाव है पर धीरे-धीरे ये सब कहीं पीछे छूटता जा रहा है और हमारी नयी पीढ़ी इस से दूर होती जा रही है. कुछ तो समय का अभाव है कुछ लोग जान-बुझ कर western culture के दीवाने हैं और कुछ कारण ये भी है की हम अपनी धरोहर युवा पीढ़ी को सिखाने का बहुत प्रयास भी नहीं करते. मैं समझती हूँ की नयी धारा में बहने के साथ-साथ हम अपनी विरासत को भी साथ लेते चलें,इसी लिए मेरा ये छोटा सा प्रयास है की अपने blog के माध्यम से मैं आप को अपने लोक संगीत से जोड़ सकूँ.
सोहर व लचारी में प्रायः बालक जन्म की बधाई दी जाती है साथ ही सास ननद, जेठानि,देवरानी,देवर और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ हँसी-ठिठोलि का मधुर रस होता है.अब तो अधिकतर बच्चे ceaserean या opretation से hospital में ही होते हैं,पर बहुत पहले बच्चे का जन्म घर पर ही बड़ी,बुढ़ियों की देख रेख में दाईं और नाईन की सहायता से हो जाता था. शायद इसी लिए बहुत से गीतों में दाईं,धगरिन और नाईन का बहुत बार वर्णन आता है.तो चलिये ले चलते हैं आप को सोहर की राग-रागिनियों के बीच.

“ललनवा”
जुग जुग जिय सु ललनवा
भवनवा के भाग जागल हो ललना लाल होईंहे क़ुलवा के दीपक मनवा में आस लागल हो...३
आज के दिनवा सुहावन रतिया लुभावन हो....२
ललना दिदिया के होरिला जन्मले होरिलवा बड़ा सुंदर हो...२
नकिया त हवें जैसे बाबु जी के अँखिया त माई के हो....२
ललना मुहँवा त चनवाँ सूरजवा जे सगरो अँजोर भैलें हो....३
सासु सुहागिन बड़ी भागीन अन-धन लुटावेलि हो....२
ललना दूवरा पे बाजे ला बधाइयाँ
अंगनवा उठे सोहर हो...२
नाची नाची गावेलि नन्दीया लालन के खेलावेलि हो..२
ललना हँसी-हँसी सीहुंकि चलावेलि लालन के दुलारेली हो....२
जुग जुग जिय सु ललनवा भवनवा के भाग जागल हो...२
ललना लाल होईहै क़ुलवा के दीपक मनवा में आस लागल हो.
"रूप अनूप”
अब यशुमती रूप अनूप आज कुछ अनमनी हैं.....३
दियना बारि महल बीच बैठि
दियना...२
की अब आवे लगी हो
की अब आवे लगी हो
अब आवे लगी सतरंगी पीर
आज कुछ अनमनी हैं...२
अब यशुमती रूप अनूप आज कुछ अनमनी हैं....२
जाओ जाओ नंद बुलाय लाओ धगरिन
जाओ....२
अब यशुमती हाल बेहाल आज कुछ अनमनी हैं...२
अब यशुमती रूप अनूप आज कुछ
अनमनी हैं...२
आधी रात निखंड भए पहरा
आधी रात...२
की अब जनम लियो नंद लाल आज कुछ ख़ुश दिल हैं...३
अब यशुमती रूप अनूप आज कुछ ख़ुश दिल हैं...२

“जच्चा रानी”
घर में से निकले जच्चा रानी
निकले जच्चा रानी
पियवा से बात करें
पियवा से बात करें
हो राजा हम ना सुतब गज़ओबर
की रतिया डेरा गयीलि ना...२
बारी देबों जीरवा के करसी
लवाँगिया के बोरसी
धाना बारी देबों मानि के दियना
त कैसे डेराई जाबु हो...२
बुत ज़ैहै जीरवा के करसी
लवंगियाँ के बोरसी
हो राजा बुत ज़ैहै मानि के दियना
त फिर से डेराय जाबे हो...२
खिरकि सूताएबे खिरकि वलवा
दुवारे पहरेदारवा
अरे ओबरी सुतइबै आपन मैया
त कैसे डेराय जाबु हो...२
खिरकि सुती खिरिकी वलवा
दुवरा पहरेदारवा
राजा सुत ज़ैहै राउर मैया
त फिर से डेराय जाबे हो...२
जो हम जनती धाना
इतना छछन करबू
इतना बिछन करबू
धाना दुई चार गोतनी बोलौति
नैहरवाँ पहुँचा देती हो....२
घर में से निकले जच्चा रानी
पियवा से बात करे हो...२
राजा हम ना....२

“ढोलकी”
सासु लेहू आपन ढोलकी
सजन से नाहीं बोलकी....२
हो सासु अब हम ना साँची पनवा
खाईंब
ना सेजिया जाईं सोईब हो
सासु लेहू.....२
जिजी लेहू आपन गजरा सजन से हो गैल
झगरा
सजन से....२
हो सासु अब....२
ना सेजिया.......२
बीबी लेहू आपन झलीया सजन से हो गैल गलियाँ
सजन से....२
हो सासु अब....२
ना सेजिया......२
सासु लेहू आपन ढोलकी सजन से नहीं बोलकी...२
हो सासु अब हम ना साँची पनवा खाईंब ना सेजिया जाईं सोईब हो....२
आठ ही नौ मास बीतले त ललना जनम लिहले
होरिला जनम लिहले हो...२
सासु अब हम साँची पनवा खाईब
सेजिया जाईं सोईब हो...२
जिजी देहू आपन गजरा सजन से नाहीं
झगरा
सजन से...२
हो सासु अब हम साँची पनवा खाईंब सेजिया जाईं सोईब हो...२
बीबी देहू आपन झलीया सजन हो गैल बोलियाँ
सजन से....२
हो सासु अब....२
और सेजिया जाईं सोईब हो...२
सासु देहू आपन ढोलकी सजन से हो गैल बोलकी
सजन हो गैल बोलकी
हो सासु अब हम साँची पनवा खाईब सेजिया जाईं सोईब हो...२