Monday, 15 October 2018

“नवरात्रि श्रिंखला”- भक्ति के रंग गरबा और डांडिया के संग !



एक बार पुनः शारदीय नवरात्रि के आगमन पर आप सभी को असीम शुभकामनायें.

ये नवरात्रि अपने साथ जीवन में ख़ुशियों के अनेक रंग व साधन ले कर आती है.
जहाँ एक ओर मौसम में ख़ुशनुमा ठंड होती है वहीं जगह-जगह दुर्गा पूजा की धूम 
मची रहती है.उत्तर भारत में तो छोटे-बडे हर शहर में और हर स्तर की रामलीला का
 भी आयोजन होता है और इन सभी कार्यक्रमों को और भी रंगीला बनाता है 
जगह-जगह मेले का मौज और शोरगुल.घर-घर में कलश स्थापना और स्त्रियों की 
टोली का मस्ती में देवी गीत गाना एक अलग ही समा बाँधता है,इन सब के अलावा
 नवरात्रि का एक और अनूठा बहुत लोकप्रिय व मोहक रंग है “गरबा” नृत्य व संगीत.
गरबा मूलरूप से गुजरात प्रांत का लोक संगीत है किन्तु ये गीत और नृत्य इतने 
मनमोहक होते हैं कि अब तो लगभग पूरे देश में बहुत उत्साह से लोग इसका 
आनंद लेते हैं.नवरात्रि पर विशेष तौर पर गरबा गीत व नृत्य का आयोजन किया 
जता है,स्त्री व पुरुष जोड़ियाँ बना कर पुरे group के साथ नाचते-गाते हैं.
इस में डांडिया भी होता है और ये भी बहुत लोकप्रिय है अब तो मैं देखती हूँ प्रायः 
हर शहर में डांडिया और गरबा का आयोजन किया जाता है अक्सर competition
 भी होता है और प्रदर्शन के आधार पर विजेता घोषित किया जाता है.इस गीत 
संगीत का इक और आकर्षक पहलू है इसका परिधान.स्त्री पुरुष दोनों के परिधान
 बहुत ही रंगीन और सुंदर कढ़ाई से शोभित होते हैं,उस पे antique ज़ेवर गहने 
चार चाँद लगाते हैं.हाथों में डांडिया लिए सजे धजे लोग जब शाम को गोला बना 
कर ढोल-ताशे की धुन पर इक साथ थिरकते हैं तो ऐसा समा बँधता है की शब्दों 
में वर्णन करना कठिन है.गरबा में प्रचलित लोक गीत इतने आकर्षक होते हैं कि 
आप के पैर ख़ुद ही मचलने लगते हैं,नाच के लिये.समय के अनुसार इस के रूप में 
भी बहुत परिवर्तन आया है.पहले लोग स्वयं गाते बजाते थे और अब पहले से 
recorded गाने speakers पर बजा कर इसका आनंद लेते हैं.सामान्य तौर पर 
गरबा और डांडिया में बजने वाले गीत गुजराती भाषा में होते हैं पर इस बार मैं आप
 सब के लिये कुछ हिन्दी गरबा के लोक गीत लायी हूँ जिससे आप सब इस 
नवरात्रि में enjoy कर सकते हैं.

                
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“मैया के रंग”

मैं तो गरबा रचाऊँगी
मैया के रंग,रंग जाऊँगी...२
मेरी अम्बा का प्यार मेरी माँ 
का दुलार
अर्ज़ी सुनेंगी माँ जगदम्बे
मैं तो मंदिर में जाऊँगी
माँ की जोत जलाऊँगी
मैं तो गरबा रचाऊँगी
मैया के रंग....२

आँगन बहारूँगी जोत सवाँरूँगी
माता को मैं तन मन से पुकारूँगी 
चुन चुन कलियाँ हार बनाऊँगी 
मात भवानी को हार चढ़ाऊँगी 
माँ को माला पहनाऊँगी
दीपक जोत जलाऊँगी 
मैं तो गरबा रचाऊँगी
मैया के रंग....२

कष्ट निवारेंगी माँ जगदम्बे
विनती सुनेगी अपनी भी अम्बे 
माता के हाथों में मेहंदी रचाऊँगी
लाल चुनरिया मैं माँ को ओढ़ाऊँगी 
माँ को चूड़ी पहनाऊँगी
मैं तो गरबा रचाऊँगी
मैया के रंग....२

हलवा बनाऊँगी भोग लगाऊँगी 
लँगर में भक्तों को भोज कराऊँगी 
नाचूँगी गाऊँगी सबको नचाऊँगी 
नाच नाच मैं तो मैया को रिझाऊँगी 
वर अम्बे का पाऊँगी 
भव से मैं तर जाऊँगी मैं तो गरबा रचाऊँगी 
मैया के रंग,रंग जाऊँगी...२


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“ओढ़नी उड़ी जाय”

ओढ़नी ओढ़ूँ तो उड़ी उड़ी जाय
अरे ये के हुयो अरे काये हुयो....२
ओढ़नी ओढ़ो जी गोरी संभाल
ओढ़नी सर सर सरकी जाय....२

थारो गोरा सा तन हुए तपती किरन
थारो नाज़ुक बदन कुम्हलाय...२
ओढ़नी ओढ़ूँ तो उड़ी उड़ी जाय
अरे ये के हुयो....२
ओढ़नी ओढ़ो जी गोरी सम्भाल
ओढ़नी सर....२

ऊँची नीची तेरी डगरिया
थक जाय माँ पावँ रे
पहली बार चली हूँ माँ
ले के थारो नाम रे...२
ऊँची नीची.....२
ओढ़नी ओढ़ूँ तो उड़ी उड़ी जाय
अरे ये के हुयो...२
ओढ़नी ओढ़ो जी गोरी सम्भाल
ओढ़नी सर...२

कोई सपना में आवे मेरी नीदे उडावे
कोई सपना में...२
दिल धक धक धड़को जाय
दिल धक...२
ओढ़नी ओढ़ूँ तो उड़ी उड़ी जाय
अरे ये के हुयो....२
ओढ़नी ओढ़ो जी गोरी सम्भाल
ओढ़नी सर...२

उड़तो उड़तो मन को पंछी
थारे गाँव में आयो...२
चाँद सरीखा मुखड़ा थारो
नैन मन में समायो...२
या साँची है बात ये जुग जुग
रो साथ...२
अब क़ुणे थारो समझाय
ओढ़नी ओढ़ूँ तो उड़ी उड़ी जाय
अरे ये के हुयो...२
ओढ़नी ओढ़ो जी गोरी सम्भाल
ओढ़नी सर सर सरकी जा ओढ़नी ओढ़ूँ तो....।

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“पीहर चोखो”

ओ माने पीहर भालो लागे
मैं नहीं जाऊँ सासरियो...२
नहीं जाऊँ सासरियो मैं नहीं
जाऊँ सासरियो
ओ माने पीहर....२

सासरे में मेरी सासु जी खोटी....२
ओ माने रोज़ रोज़ पीसड़ पीसावे
मैं नहीं जाऊँ...२
ओ माने पीहर...२

सासरे में मेरा ससुरा जी खोटा...२
ओ माने रोज़ रोज़ घूँघट कढावे
मैं नहीं जाऊँ...२
ओ माने पीहर...२

सासरे में मेरी नंदूलि खोटी...२
ओ माने रोज़ रोज़ पाणि भरावे
मैं नहीं जाऊँ...२
ओ माने पीहर...२

सासरे में मेरी जेठनी खोटी...२
ओ मा पे घड़ी घड़ी हुकुम चलावे
मैं नहीं जाऊँ....२
ओ माने पीहर...२

Monday, 17 September 2018

सन्तान या पुत्र-पुत्री?


शायद हमारा पुरातन समाज ही ज़्यादा समझदार और आधुनिक था.तब तो कहीं कभी “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” जैसे कार्यक्रम कर के समाज को जागृत करने का काम नहीं होता था,आज के ज़माने में हम आए दिन ऐसे कार्यक्रम देखते रहते हैं.कुछ दिनो पहले social media पे मैं देख रही थी सभी अपने whatsapp या fb के status पर “मेरी बेटी मेरा अभिमान” की pic लगा रहे थे,पहले तो ऐसा नहीं होता था,और मुझे नहीं लगता की ऐसा कुछ करने से समाज की सोच बदली जा सकती है.इस को बदलने का इक ही तरीक़ा है,और वो ये की हर व्यक्ति और हर परिवार अपनी सोच और आदतों में परिवर्तन लायें. मैं समझती हूँ की किसी भी समाज को बदलने के लिए किसी बडे कार्यक्रम से अधिक कारगर है की आप अपने आप को व अपनी सोच को बदलें,समाज स्वयं बदल जायेगा. यदि इतिहास उठा कर देखें तो चिर-पुरातन समाज में स्त्री और पुरुष को समान अधिकार थे.और वास्तविकता भी यही है की दोनों इक दूसरे के पूरक है. यदि दोनों में समानता और समागम नहीं होगी तो सृष्टि की रचना सम्भव ही नहीं है. कहने का अर्थ इतना ही है की जितनी आवश्यकता इक पुरुष की है उतनी ही इक स्त्री की भी,नहीं तो सृष्टि का विकास ही रुक जायेगा और इसे हमारे पूर्वज बहुत अच्छे से समझते थे शायद हम ही समझ नहीं पा रहे. इसी लिए वो सन्तान की उत्पत्ति को बहुत आवश्यक व शुभ मानते थे और ऐसे अवसर पर ख़ुशियाँ मानते थे.मध्यकाल तक आते आते समाज को व्यवस्थित रूप से चलाने के लिए कुछ नियम और क़ानून बनाए गए जिनका विस्तार से वर्णन यहाँ सम्भव नहीं किंतु वहाँ भी कभी स्त्री को दोयम दर्जे का या नीचा नहीं समझा गया, पर बीच में बहुत कुछ और होता गया,कभी यवनों का तो कभी मुग़लों का शासन रहा तो स्वाभाविक है की उनके रीति-रिवाजों का हमारे समाज पर भी बहुत असर हुआ और पर्दा प्रथा,स्त्रियों को बंधन में रखना, दहेज आदि बहुत सी ग़लत परम्पराओं का प्रचलन हो गया.ऐसी ही बहुत सी कुरीतियों के कारण शायद लोग पुत्र और पुत्री में भेद-भाव करने लगे. अतः जहाँ सन्तान महत्वपूर्ण थी वहीं पुत्र महत्वपूर्ण हो गया. इसी लिए हमारे लोक गीतों में अधिकतर पुत्र जन्म और उसकी बधाई का ही वर्णन होता है, शायद ही कहीं पुत्री के जन्म का संदर्भ लोक गीतों में आता है. ऐसी ही भ्रांति व्रत को ले कर भी है,जब हमारे समाज की रचना हो रही थी कुछ रीति-रिवाज व त्योहार की संकल्पना की जा रही थी तभी कुछ अवसरों पर सन्तान के लिए व्रत रखने की परम्परा बनी,लेकिन कालांतर में ये पुत्र व्रत की परम्परा तक ही सीमित हो गयी, जिसे की आज की अपने आप को बहुत आधुनिक और updated समझने वाली औरतें भी करती हैं,तो यहाँ आप को समझदारी दिखाने की आवश्यकता है,आप समझें, की व्रत सन्तान के लिए होता है ना की केवल पुत्र के लिए. लकीर का फ़क़ीर बनने की बजाय आप स्वयं समझें की सन्तान महत्वपूर्ण है चाहे वो पुत्र हो या पुत्री. यदि आप अपने बेटे के लिए व्रत रखती है तो अपनी बेटी के लिए भी रखें,समाज बदलेगा भी और विकसित भी होगा. मैं अपने blog पर लिखने के लिये कुछ पुत्री जन्म से सम्बंधित गीत ढूँढ रही थी, बड़ी मुश्किल से इक,दो गीत मिले जो आप से साझा कर रही हूँ.

                                 
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“हमरे बिटिया”

हमरे भयी बिटिया
ऐ टोपी वाले हमार भयी बिटिया...२

देवरनियाँ जेठनियाँ के भैले बेटौवा
देवरनियाँ...२
हमार भयी बिटिया
ऐ टोपी वाले हमरे भयी बिटिया
ऐ टोपी...२

देवरनियाँ जेठनिया तो काम करी
करी मरिहैं
देवरनियाँ....२
हमार करी बिटिया ऐ टोपी वाले
हमार करी बिटिया...२
हमरे भयी बिटिया
ऐ टोपी....२

देवरनियाँ जेठनिया के आइहैं
पतोहिया
देवरनियाँ.....२
हमार आयी दमदा ऐ टोपी वाले
हमार आयी दमदा...२
हमरे भयी बिटिया
ऐ टोपी....२

देवरनियाँ जेठनिया के लडीहें
पतोहिया
देवरनियाँ....२
हमार हँसी दमदा ऐ टोपी वाले
हमार हँसी दमदा....२
हमरे भयी बिटिया
ऐ टोपी...२

हमरे भयी बिटिया
ऐ टोपी वाले हमार भयी बिटिया .

                           
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“काहे रोवे गुड़िया”

काहे के रोवे बिटिया
सबेरे घुनघुन वाँ मँगाई देब हो
काहे रोवे...२

दादा से कहिबे दादी से कहिबे
दादा....२
चाचा से बोले गुड़िया
सबेरे घुनघुन वाँ मँगाई देब हो...२
काहे रोवे...२

अम्माँ से कहिबे बाबा से कहिबे
अम्माँ...२
भैया से बोले रे रनिया
सबेरे घुनघुन वाँ मँगाई देब हो...२
काहे रोवे....२

मामा से कहिबे मामी से कहिबे
मामा....२
मौसी से बोले गुड़िया
सबेरे घुनघुन वाँ मँगाई देब हो...२
काहे रोवे....२

भैया से कहिबे भाभी से कहिबे
भैया...२
दीदी से बोले रे गुड़िया
सबेरे घुनघुन वाँ मँगाई देब हो...२
काहे रोवे...२

काहे के रोवे मोरी गुड़िया
सबेरे घुनघुन वाँ मँगाई देब हो
काहे के रोवे...२

                             
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“तीत लागे”

तीत लागे तीत लागे कडु लागे हो
हरिरा पिया नहीं जाये
हरिरा कडु लागे हो.....२

सास रिसीयीहें हमार का करिहे
सास...२
बहुत करिहे तो देवता ना मनाईंहैं...२
देवता मनाने मेरी अम्माँ आए हो...२
हरिरा पिया....२
तीत लागे....२

जिठनि रिसीयीहें हमार का करिहे
जिठनि.....२
बहुत करिहे तो पीपली ना पिसैहै...२
पीपली पिसाने मेरी भाभी आए हो...२
हरिरा पिया...२
तीत लागे.....२

ननद रिसीयीहें हमार का करिहे
ननद...२
बहुत करिहे तो कजला ना लगैहे...२
कजला लगाने मेरी बहना आए हो..२
हरिरा पिया...२
तीत लागे....२

तीत लागे तीत लागे कडु लागे हो
हरिरा पिया नहीं जाए
हरिरा कडु लागे हो.

Saturday, 8 September 2018

“परम्परिकता की डोर आधुनिकता की ओर”


वैसे तो मैं अपने blog पे केवल लोक गीत और उन से सम्बंधित बातें ही लिखती हूँ, पर समाज की दशा और दिशा देख कर कभी-कभी बहुत कष्ट होता है. सौभाग्य से हमारी पीढ़ी को जहाँ बहुत पुरानी परम्परायें,रस्म, रिवाजों के बारे में पता है वहीं दूसरी ओर technologically में हम इतने आगे बढ़ चुके हैं की कभी अंतरिक्ष में “मंगल यान” भेज रहे हैं तो कभी चाँद पर घर बसाने की भी बात करते हैं.ऐसी ही विचित्र और विभिन्न मानसिकता में हम जी रहे हैं,शायद इसीलिए समाज में संतुलन की बहुत ज़रूरत है.कुछ लोग ऐसे मिलते हैं जो सिर्फ़ आधुनिकीकरण के ही पीछे भाग रहे हैं तो कुछ पुराने संस्कारों और रीति-रिवाजों को छोड़ नहीं पा रहे हैं.मेरा मानना है कि दोनों धाराओं को साथ ले कर चलने की आवश्यकता है,तभी इक संतुलित और विकसित समाज का निर्माण हो सकता है.इस युग में सम्भव ही नहीं है की हम हर तरह से updated ना हों,समाज का विकास ही रुक जायेगा इसलिए आगे बढ़ें नए प्रयोग कर अपना व समाज का उत्थान करें. मेरे इस post में बच्चे के जन्म से सम्बंधित बातें और गाने थे.आज मैं आप को “लचारी” के बारे में बताने वाली थी,पर लिखते समय मन में आया की कुछ तथ्यों से भी आप को अवगत करा दूँ,असल में हमारे आस-पास ही ये सब होता रहता है पर हम ध्यान नहीं दे पाते हैं.जैसा सर्व विदित है की 60 और 70 के दशक में अधिकतर बच्चे घर पर ही बिना किसी Doctor की देख-रेख के ही पैदा हो जाते थे और घर वालों की देखभाल में रहते थे,पर अब ना तो परिवार है ना समय है और ना ही ऐसा होना चाहिये की जच्चा-बच्चा बिना किसी medical सुविधा के रहें.प्रसव कितना कठिन समय होता है इक स्त्री के लिए ये इक माँ ही समझ सकती है साथ ही नवजात शिशु को भी Doctor की देख-भाल चाहिये होती हैं.जो की पहले नहीं थी पर अब सबको सुविधा मिल जाती है इसका नतीजा ये है की जहाँ 1960 में IMR 245 थी वहीं अब 2018 में ये संख्या घट कर केवल 34 रह गयी है. इसका सीधा सा अर्थ है की सुविधाओं के अभाव में 1960 में पैदा होने वाले 1000 बच्चों में से 245 बच्चों की मृत्यु हो जाती थी जो अब सौभाग्य और विज्ञान की वजह से घट कर प्रत्येक 1000 बच्चों से हम केवल 34 बच्चे ही खोते हैं,और भविष्य में इस से भी अच्छा होगा.
बहुत गम्भीर बातें हो गयी चलिये पुनः आप को परम्परा और गीत-संगीत की ओर ले चलती हूँ. लचारी गीत हल्के-फुल्के और बहुत मनोरंजक होते हैं और इन में हमारी रीतियाँ,रिवाज और परिवार के लगभग सभी सदस्यों का ज़िक्र हो जाता है.कहीं जिठानि-देवरानी का नेग है तो कहीं रूठी ननद की हठ कहीं देवर का प्यार है तो कहीं सास-ससुर का आशीर्वाद. इतना ही नहीं इन गीतों में बहुत मीठे व्यंग व मीठी गालियाँ दूसरे पक्ष के लिए गायी जाती है.ऐसे ही हँसी-ठिठोलि और मनोरंजन से भरपूर हैं ये लोक गीत.इन्हि में से कुछ गीतों के रंग आप के लिए लायी हूँ.आशा है आप गीतों का आनंद लेंगे और मेरा विनम्र संदेश भी समझने का प्रयास करेंगे .

                         
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“कृष्ण अवतार”

श्री कृष्ण लिए अवतार सखी मामा के जेलों में...३

मामा के जेलों में सासु नहीं थीं
मामा के.....२
देवता कौन मनाये सखी...२
मामा के....२

श्री कृष्ण लिए अवतार सखी मामा के जेलों में...२

मामा के जेलों में जिठनि नहीं थी
मामा के....२
पीपली कौन पिसाए सखी....२
मामा के....२

श्री कृष्ण लिए अवतार सखी मामा के जेलों में...२

मामा के जेलों में नन्दी नहीं थी...२
मामा के....२
काजल कौन लगाये सखी...२
मामा के....२

श्री कृष्ण लिए अवतार सखी मामा के जेलों में...२

                          
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“गोरा लालन”

गोरा गोरा लालन खेल रहा आँगन
सिर पर घुंघर दार बाल
बाहर मत जाना....२

दादा घर जाना दादी घर जाना...२
दादी करेंगी तेरा प्यार...२
बाहर मत....२
गोरा गोरा....२

नाना घर जाना नानी घर जाना...२
नानी करेंगी तेरा प्यार....२
बाहर मत...२
गोरा गोरा...२

मामा घर जाना मामी घर जाना...२
मामी करेंगी तेरा प्यार....२
बाहर मत....२
गोरा गोरा....२

बुआ घर जाना फूफा घर जाना...२
बुआ करेंगी तेरा प्यार....२
बाहर मत...२
गोरा गोरा...२

गोरा गोरा लालन खेल रहा आँगन
सिर पे घुंघर दार बाल
बाहर मत जाना.

                              
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“ऐ हरी”

ललना के टूटे ना पलनवा
लालन बड़ा रोवे ऐ हरी....२
लालन बड़ा रोवे ऐ हरी
लालन बड़ा....२
ललना के टूटे....२

आपन अम्माँ होती तो हुलस के उठौति..२
सैयाँ जी के अम्माँ निर्मोहिया....२

दरदियो ना जाने ऐ हरी....२

ललना के टूटे ला पलनवा
लालन बड़ा...२

आपन भाभी होती तो हुलस के उठौति...२
सैयाँ जी के भाभी निर्मोहिया...२
दरदियो ना जाने ऐ हरी....२

ललना के टूटे ला पलनवा
लालन बड़ा...२

आपन बहिना होती तो हुलस के उठौति.२
सैयाँ जी के बहिना निर्मोहिया....२
दरदियो ना जाने ऐ हरी...२

ललना के टूटे ला पलनवा
लालन बड़ा रोवे ऐ हरी...२

                              
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“होवे ला ललनवा”

उठे ला दरदिया बड़ा ज़ोर हो जाला....२
होवे ला ललनवा बड़ा शोर हो जाला...२

हम तो चललीं अंगनवा
सासु देखे ली ललनवा
लालन चंदा चकोर हो....२
हम तो...२
कहँवा लुकाई ले के जाईं
का करी हो....२
सबकी नज़रिया लालन की ओर हो जाला..२
होवे ला ललनवा....२

हम तो चललीं दूवरिया
जिजी देखे ली ललनवा
लालन चंदा चकोर हो....२
हम तो...२
कहँवा लुकाई ले के जाईं
का करी हो...२
सबकी नज़रिया लालन की ओर हो
जाला...२
होवे ला ललनवा....२

हम तो चललीं बहरवा
नन्दी देखलि ललनवा
लालन चंदा चकोर हो...२
हम तो...२
कहँवा लुकाई ले के जाईं
का करी हो...२
सबकी नज़रिया लालन की ओर हो
जाला...२
होवे ला ललनवा...२

उठे ला दरदिया बड़ा ज़ोर हो जाला..२
होवे ला ललनवा बड़ा शोर हो जाला..२

Sunday, 2 September 2018

“सोहर व लचारी की उमंग”- Krishna Janam Ke Geet

“सोहर व लचारी की उमंग”

जैसे की अपने पहले पोस्ट में मैं वर्णन कर चुकी हूँ की कैसे कृष्ण जन्मोत्सव की तैयरियाँ की जाती थी. फिर जन्म के बाद आरती और प्रसाद वितरण होता था.अब बारी आती है बधाई, सोहर, लचारी गाने का.हमारी भारतीय परम्परा में तो किसी बालक का जन्म बहुत हर्षोल्लास का होता है,और इस अवसर पर बधाई गाना बहुत पुरानी रीत है. घर की सभी स्त्रियाँ व आस-पड़ोस के लोग भी मिल कर गीत-संगीत का आनंद लेते हैं. पहले आप को सोहर के बारे में बता दूँ,ये लोक गीत की वो विधा हैं जो बच्चे के जन्म अवसर,मुंडन संस्कार,यज्ञों पवीत और जन्मदिन की वर्ष गाँठ पर भी गाया जाता है इसकी एक अलग ही राग होती है और अक्सर घर की बड़ी बुज़ुर्ग स्त्रियाँ ही गाती थीं,जो की अब बहुत कम ही सुन ने को मिलता है मुझे अपनी सांस्कृतिक विरासत से बहुत लगाव है पर धीरे-धीरे ये सब कहीं पीछे छूटता जा रहा है और हमारी नयी पीढ़ी इस से दूर होती जा रही है. कुछ तो समय का अभाव है कुछ लोग जान-बुझ कर western culture के दीवाने हैं और कुछ कारण ये भी है की हम अपनी धरोहर युवा पीढ़ी को सिखाने का बहुत प्रयास भी नहीं करते. मैं समझती हूँ की नयी धारा में बहने के साथ-साथ हम अपनी विरासत को भी साथ लेते चलें,इसी लिए मेरा ये छोटा सा प्रयास है की अपने blog के माध्यम से मैं आप को अपने लोक संगीत से जोड़ सकूँ.
सोहर व लचारी में प्रायः बालक जन्म की बधाई दी जाती है साथ ही सास ननद, जेठानि,देवरानी,देवर और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ हँसी-ठिठोलि का मधुर रस होता है.अब तो अधिकतर बच्चे ceaserean या opretation से hospital में ही होते हैं,पर बहुत पहले बच्चे का जन्म घर पर ही बड़ी,बुढ़ियों की देख रेख में दाईं और नाईन की सहायता से हो जाता था. शायद इसी लिए बहुत से गीतों में दाईं,धगरिन और नाईन का बहुत बार वर्णन आता है.तो चलिये ले चलते हैं आप को सोहर की राग-रागिनियों के बीच.


                      
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“ललनवा”

जुग जुग जिय सु ललनवा
भवनवा के भाग जागल हो ललना लाल होईंहे क़ुलवा के दीपक मनवा में आस लागल हो...३

आज के दिनवा सुहावन रतिया लुभावन हो....२
ललना दिदिया के होरिला जन्मले होरिलवा बड़ा सुंदर हो...२

नकिया त हवें जैसे बाबु जी के अँखिया त माई के हो....२
ललना मुहँवा त चनवाँ सूरजवा जे सगरो अँजोर भैलें हो....३

सासु सुहागिन बड़ी भागीन अन-धन लुटावेलि हो....२
ललना दूवरा पे बाजे ला बधाइयाँ
अंगनवा उठे सोहर हो...२

नाची नाची गावेलि नन्दीया लालन के खेलावेलि हो..२
ललना हँसी-हँसी सीहुंकि चलावेलि लालन के दुलारेली हो....२

जुग जुग जिय सु ललनवा भवनवा के भाग जागल हो...२
ललना लाल होईहै क़ुलवा के दीपक मनवा में आस लागल हो.


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"रूप अनूप”

अब यशुमती रूप अनूप आज कुछ अनमनी हैं.....३

दियना बारि महल बीच बैठि
दियना...२
की अब आवे लगी हो 
की अब आवे लगी हो 
अब आवे लगी सतरंगी पीर 
आज कुछ अनमनी हैं...२

अब यशुमती रूप अनूप आज कुछ अनमनी हैं....२

जाओ जाओ नंद बुलाय लाओ धगरिन
जाओ....२
अब यशुमती हाल बेहाल आज कुछ अनमनी हैं...२

अब यशुमती रूप अनूप आज कुछ
अनमनी हैं...२

आधी रात निखंड भए पहरा 
आधी रात...२
की अब जनम लियो नंद लाल आज कुछ ख़ुश दिल हैं...३

अब यशुमती रूप अनूप आज कुछ ख़ुश दिल हैं...२

                          
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“जच्चा रानी”

घर में से निकले जच्चा रानी
निकले जच्चा रानी
पियवा से बात करें
पियवा से बात करें
हो राजा हम ना सुतब गज़ओबर
की रतिया डेरा गयीलि ना...२

बारी देबों जीरवा के करसी
लवाँगिया के बोरसी
धाना बारी देबों मानि के दियना
त कैसे डेराई जाबु हो...२

बुत ज़ैहै जीरवा के करसी
लवंगियाँ के बोरसी
हो राजा बुत ज़ैहै मानि के दियना
त फिर से डेराय जाबे हो...२

खिरकि सूताएबे खिरकि वलवा
दुवारे पहरेदारवा
अरे ओबरी सुतइबै आपन मैया
त कैसे डेराय जाबु हो...२

खिरकि सुती खिरिकी वलवा
दुवरा पहरेदारवा
राजा सुत ज़ैहै राउर मैया
त फिर से डेराय जाबे हो...२

जो हम जनती धाना
इतना छछन करबू
इतना बिछन करबू
धाना दुई चार गोतनी बोलौति
नैहरवाँ पहुँचा देती हो....२

घर में से निकले जच्चा रानी
पियवा से बात करे हो...२
राजा हम ना....२

                      
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“ढोलकी”

सासु लेहू आपन ढोलकी
सजन से नाहीं बोलकी....२
हो सासु अब हम ना साँची पनवा
खाईंब
ना सेजिया जाईं सोईब हो
सासु लेहू.....२

जिजी लेहू आपन गजरा सजन से हो गैल
झगरा
सजन से....२
हो सासु अब....२
ना सेजिया.......२

बीबी लेहू आपन झलीया सजन से हो गैल गलियाँ
सजन से....२
हो सासु अब....२
ना सेजिया......२

सासु लेहू आपन ढोलकी सजन से नहीं बोलकी...२
हो सासु अब हम ना साँची पनवा खाईंब ना सेजिया जाईं सोईब हो....२

आठ ही नौ मास बीतले त ललना जनम लिहले
होरिला जनम लिहले हो...२
सासु अब हम साँची पनवा खाईब
सेजिया जाईं सोईब हो...२

जिजी देहू आपन गजरा सजन से नाहीं
झगरा
सजन से...२
हो सासु अब हम साँची पनवा खाईंब सेजिया जाईं सोईब हो...२

बीबी देहू आपन झलीया सजन हो गैल बोलियाँ
सजन से....२
हो सासु अब....२
और सेजिया जाईं सोईब हो...२

सासु देहू आपन ढोलकी सजन से हो गैल बोलकी
सजन हो गैल बोलकी
हो सासु अब हम साँची पनवा खाईब सेजिया जाईं सोईब हो...२


Sunday, 26 August 2018

श्री कृष्ण जन्मोत्सव- Songs of Krishna

श्री कृष्ण जन्मोत्सव”

अभी कानों में कजरी और झूला के गीतों की गूँज बसी है,पर विदा लेता सावन और दस्तक देता हुआ भादो ये याद करा रहा है की तैयारी कर लो नटवर नागर “श्री कृष्ण” के पावन जन्मदिवस की.पूरे भारत में जन्माष्टमी बहुत हर्षोंउल्लास के साथ मनायी जाती है.मेरे स्वयं बचपन की बहुत सी यादें जुड़ी है,जब हम छोटे थे महीने भर पहले से ही जन्माष्टमी की तैयारी में जुट जाते थे.असल में घर-घर में कृष्ण झाँकी सजाने की परम्परा थी,जिस में घर के बडे से ले कर बच्चे तक उत्साह से भाग लेते थे. अब याद करती हूँ तो कभी-कभी हँसी भी आती है की क्या क्या बेवक़ूफ़ियाँ करते थे हम भी,कभी मित्रों के साथ घर वालों से छुप कर railway line के किनारे से पत्थर चुनने जाते थे क्यूँ की उसी पत्थर से झाँकी का पहाड़ बनता था, धूप में पसीने से लथपथ वो पत्थर चुराने का मज़ा ही कुछ और था.फिर बारी आती थी लकड़ी का बुरादा लाने और उसको अनेक रंगो में रंगने का,बुरादा भी कोई aunty या पड़ोसन मुफ़्त दे दे तो और ख़ुशी होती थी,उस रंगीन बुरादे से ज़मीन पर भिन्न-भिन्न आकृतियाँ बनायी जाती थीं जो की अक्सर मैं ही बनाती थी.अब बारी आती थी इक typical शंकर जी की मूर्ति की जिनकी जटा से pipe से गंगा जी निकाली जा सके ख़ैर अग़ल-बग़ल कहीं मूर्ति भी मिल जाती थी. ये था कि सहयोग सब लोग ख़ुशी-ख़ुशी करते थे. अब प्रबंध करना होता था कुछ plastic और metal के खिलोनों का साथ ही कुछ कृष्ण परिवार के चित्र और मूर्तियों का भी जो झाँकी में सजायी जाती थी.सबसे कठिन और मनोरंजक होता था कंस का कारागार और पहरेदार बनाना group का सबसे creative व्यक्ति ये ज़िम्मेदारी लेता था और थरमाकोल और दफ़्ती से शानदार जेल बन जाती थी,बाक़ी रह गया झूला तो बाज़ार से ले आते थे.जो पालना बना कृष्ण को हौले-हौले झुलाते रहता था. सब से ज़रूरी होता था इक “खीरा” जो उस दिन बहुत महंगा मिलता था क्यूँ की श्री कृष्ण का जन्म उसी खीरे के भीतर से करवाया जाता था.....ये तो आज तक समझ नहीं आया ऐसा क्यूँ......क्या तर्क था इस के पीछे.ख़ैर अब सारी तैयारियाँ पूरी थीं और बारी थी सजावट की तो फिर mummy या aunty की बनारसी साड़ियों पर डाका पड़ता था,जिनसे भव्य location बनती थी पत्थर के पहाड़ और उन पेट रुई की बर्फ़,पहाड़ के ऊपर शंकर जी की प्रतिमा जो जटा से गंगा जी की धारा निकालते थे जो पहाड़ से नीचे आ कर झाँकी की शोभा बढ़ाती थी.ज़मीन पर रंगे बुरादे की design के बीच-बीच में कहीं जेल तो कही पालने में कृष्ण कही यमुना में सूप में कृष्ण को उठाए वासुदेव जी तो कहीं माँ यशोदा माखन की मटकी के साथ कही गोवर्धन पर्वत के नीचे पूरा गोकुल तो कहीं गैया और गोपियों के साथ रास रचाते कन्हैया. कुछ रंग बिरंगी झंडिया,कुछ हरे-भरे गमले और कुछ light की लड़ियाँ,वाह.....क्या सज-धज होती थी.वास्तव में बड़ा मनोहारी दृश्य होता था हमारी झाँकी का,और हम अपनी मेहनत और कलाकारी पर ख़ुद ही बलिहारी जाते थे. शाम होते-होते आस-पड़ोस के लोग,परिवार और ईस्ठ-मित्र सब आ जाते थे,special भूनी धनिया और माखन मिश्री का भोग अपनी मोहक सुगंध बिखेर रहे होते थे.अब कार्यक्रम शुरू होता था गीत-संगीत का,जहाँ कृष्ण की चर्चा हो वहाँ नृत्य-गीत तो निश्चित ही रहता है,सब ढोल मंजीरा ले कर बैठ जाते और सुर से सुर मिला कर भजनों से समाँ गुंजा देते थे और फिर परम्परा अनुसार रात्रि १२ बजे पंडित जी या घर का कोई बड़ा पूरे विधि-विधान से कान्हा का जन्म करा देता, शंख नाद, घंटे और मंत्रो के शोर में नवजात क्रिशन को पालना झुला कर प्रसाद वितरण होता था,जिसका इंतज़ार हम सुबह से कर रहे होते थे. कृष्ण जन्म के बाद बधाई,सोहर और लचारी गीतों की धूम मचती थी.
कुछ ऐसे ही मनोहारी गीतों के साथ जन्माष्टमी पर आप सभी को बहुत बहुत शुभकामनायें.

                         
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“नाग नथैया”

रस रस बीन बजैया काले नाग के नथइया 
रस रस ......२

केकर गेंद केकर के जी बल्ला
केकर लाल खेलैया
काले नाग के.......
सोने की गेंद चंदन के रि बल्ला 
यशोदा के लाल खेलैया
काले नाग के.....२

रस रस बीन बजैया काले नाग के नथैया
रस रस बीन....२

गेंदवा खेलत कान्हा यमुना के तट पे 
कूद पड़े यदुरैया 
काले नाग के.....२

रस रस बीन बजैया काले नाग के नथैया
रस रस बीन.....२

नाग नाथ कान्हा बाहर आये
फ़न पर नाचत कन्हाईया
काले नाग के.....२

रस रस बीन बजैया काले नाग के नथैया
रस रस बीन....२

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“दहिया पी गये”

रात श्याम सपने में आए
रात श्याम....४
दहिया पी गए सा र र र र...२

रात श्याम.....२

जबहीं श्याम मोरी बैयां पकड़ी
जबहीं श्याम......२
चूड़ियाँ कर गयी कर र र र र...२
रात श्याम....२

जबहीं श्याम ने खिड़की खोली
जबहीं श्याम....२
खिड़की कर गयी चर र र र र...२
रात श्याम.....२

जबहीं श्याम मोरी चुनरी पकड़ी
जबहीं श्याम....२
चुनरी उड़ गयी फ़र र र र र....२
रात श्याम....२

रात श्याम सपने में आए
दहिया पी गये सर र र र र....२

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“साँवली सूरत”

साँवली सूरत पे मोहन दिल दीवाना हो गया....२
दिल दीवाना हो गया मेरा दिल दीवाना हो गया....२
साँवली सूरत....२

एक तो तेरे नैन तिरछे दूसरा काजल लगाना
तीसरे नज़रें मिलाना
दिल दीवाना.....२
साँवली सूरत.....२

एक तो तेरे होंठ पतले दूसरा लाली लगी
तीसरे मुस्कुराना
दिल दीवाना....२
साँवली सूरत.....२

एक तो तेरे हाथ कोमल दूसरे मेहंदी लगी
तीसरे मुरली बजाना
दिल दीवाना....२
साँवली सूरत.....२

एक तो तेरे पावँ गोरे दूसरे पायल सजी
तीसरे घुँघरू बजाना
दिल दीवाना....२
साँवली सूरत.....२

एक तो तेरे साथ राधा दूसरे रुकमन खड़ी
तीसरे मीरा का आना
दिल दीवाना...२
साँवली सूरत....२

एक तो तेरे भोग छप्पन दूसरे माखन भरा
तीसरे खिचड़े का खाना
दिल दीवान....२
साँवली सूरत...२

एक तो तुम देवता दूसरे प्रियतम मेरे
तीसरे सपनों में आना
दिल दीवाना....२
साँवली सूरत....२

साँवली सूरत पे मोहन दिल दीवाना हो गया
दिल दीवाना हो गया मेरा दिल दीवाना हो गया .

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“ओ कान्हा”

ओ कान्हा अब तो मुरली की मधुर सुना दो तान...२
मैं हूँ तेरी प्रेम दीवानी मुझको तू पहचान
ओ कान्हा...२

जब से तुम संग मैंने अपने नैना जोड़ लिये हैं...२
क्या बाबुल क्या भैया बहना सबसे नाते तोड़ लिए हैं...२
तेरे मिलन को व्याकुल हैं कब से मेरे प्राण
मधुर सुना दो....२
ओ कान्हा.....२

सागर से भी गहरी मेरी प्रेम की गहराई...२
लोक लाज की सारी मर्यादा आज तोड़ के मैं आयी..२
मेरी प्रीत से ओ निर्मोही अब ना बनो अनजान
मधुर सुना दो...२
ओ कान्हा......२

मैया रूठी बाबुल रूठा कोई न सुनत हमारी
तेरी प्रीत के कारण हो गया सगरा जग बैरी...२
किसकी शरण में जाऊँ दुखिया तू ही बता भगवान
मधुर सुना दो...२
ओ कान्हा....२

ओ कान्हा अब तो मुरली की मधुर सुना दो तान
मैं हूँ तेरी प्रेम दीवानी मुझको तू पहचान
मधुर सुना दो तान...२

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“नज़र नहीं आते”

नज़र में रहते हो मगर नज़र नहीं आते...२
ये दिल बुलाए श्याम तुम्हें मगर तुम नहीं आते
नज़र में रहते....२

साँसो की हर डोर पुकारे साँवरिया
नैना तुझको ही खोजे साँवरिया
तू जो नैनों में आ जाए मेरे
नैनों को बंद कर लूँ साँवरिया
इधर नहीं आते साँवरे इधर नहीं आते...२
ये दिल बुलाए श्याम.....२
नज़र में रहते हो.....२

होता है आभास तुम्हारा साँवरिया
लगता है तू पास खड़ा साँवरिया...२
गिरने के पहले ही संभालोगे
हमको ये यक़ीन है साँवरिया
मेहर नहीं करते साँवरे तुम मेहर नहीं करते...२
ये दिल बुलाए श्याम.....२
नज़र में रहते हो....२

हर कोई तेरा नाम जपे है साँवरिया
हर पल तेरी राह तके है साँवरिया...२
तेरे आने की आस लिए दिल में
तक तक नैन तके है साँवरिया
ख़बर नहीं लेते हमारी ख़बर नहीं लेते...२
ये दिल बुलाए श्याम.....२
नज़र में रहते हो.....२-


नज़र में रहते हो मगर तुम नज़र नहीं आते...२
ये दिल बुलाए श्याम मगर तुम नहीं आते
नज़र में रहते हो....२

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“प्यारा श्रींगार”

कितना प्यारा है श्रींगार की तेरी लाऊँ नज़र उतार...२
लाऊँ नज़र उतार की तेरी लाऊँ नज़र उतार

साँवरिया तुमको किसने सजाया है
तुझे सुंदर सा गजरा पहनाया है
कितना प्यारा है...२
तेरी लाऊँ नज़र....२
ओ हो कितना प्यारा है...२

केसर चंदन तिलक लगा कर सज धज कर बैठे हो..२
लग गए तेरे चार चाँद की तूने पहना है जो हार..२
कितना प्यारा है...२
की तेरी लाऊँ नज़र...२

साँवरिया तेरा चेहरा चमकता है...२
तेरा कीर्तन बहुत बड़ा, दरबार महकता है
कितना प्यार है....२
की तेरी लाऊँ नज़र...२
ओ हो कितना प्यारा है....२

किसी भगत से कह कर कान्हा काली टीकी लगवा ले...२
या बोले तो तेरी राई मिर्ची दूँ उतार
कितना प्यारा है....२
की तेरी लाऊँ नज़र...२

पता नहीं तू किस रंग का है आज तक ना जान सकी
बनवारी तेरे रंग देखे हैं,बनवारी तेरे रंग देखे हैं हज़ार.....२
कितना प्यारा है....२
की तेरी लाऊँ नज़र...२
ओ हो कितना प्यारा....२

साँवरिया थोड़ा बच बच के रहना जी...२
थोड़ा मान भी लो अपने भक्तों का कहना जी..२
कितना प्यारा है...२
की तेरी लाऊँ नज़र....२

साँवरिया तेरा रोज करूँ श्रींगार....२
कभी कुटिया में मेरी आ जाओ एक बार.२
कितना प्यारा है....२
की तेरी लाऊँ नज़र...२

कितना प्यारा है श्रींगार की तेरी लाऊँ नज़र उतार...२
लाऊँ नज़र उतार की तेरी लाऊँ नज़र उतार..२
ओ हो कितना प्यारा है श्रींगार.



पूर्वांचल की महक के दो गीत “

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“टेर के बाँसुरिया”

टेर के बाँसुरिया टेर के बाँसुरिया 
मोहन भयिलें रसिया 
रसायी गयीले ना 
टेर टेर के बाँसुरिया रसाई गयीले ना 
टेर के.....३

हाथों में व्रज सोहे कानन में कुण्डल...२
होंठवा पे सोहेला,होंठोवा पे सोहेला
बाँस के मुरलियाँ....२
रसाई गयीले ना....२
टेर के....२

इनके बाँसुरिया पे नाचें राधा रानी...२
इनके बाँसुरिया पे नाचें गोप गोपियाँ...२
रसाई गयीले ना....२
टेर के....२

टेर के बाँसुरिया मोहन भयिलें रसिया 
रसाई गयीले ना 
टेर टेर के बाँसुरिया रसाई गयीले ना 
टेर के....२

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“मोहन”

आ जाओ मेरे मोहन भैया 
अब लाज उतरने वाली है....२
आ जाओ हे यशोदा के छईया
अब लाज....२
आ जाओ....२

दुशासन अत्याचारी है
वो कर से खींचत सारी है...२
आ जाओ हे लाज के रखवैया
अब लाज...२
आ जाओ...२

मेरे पाँचो पती सब मौन हुए 
कौरव भी सभासद घेरे हुए...२
आ जाओ हे चीर के रखवैया
अब लाज....२
आ जाओ....२

जब मोहन तुमको चोट लगी
और ख़ून की धारा बह निकली...२
जिस चीर से बाँधा था भैया
वो चीर उतरने वाली है...२
आ जाओ हे चीर के रखवैया
अब लाज...२
आ जाओ...२

आ जाओ मेरे मोहन भैया 
अब लाज उतरने वाली है..२
आ जाओ हे यशोदा के छईया
अब लाज उतरने वाली है.