Saturday, 30 September 2017

झाँकी सीता-राम की - Dussehra Special

दशहरा, जैसे की मैं पहले ही बता चुकी हूँ की मेरा प्रिय त्योहार होता था. मेला, रामलीला, मौज - मस्ती, चचेरे-ममेरे भाई बहनो के साथ बेफ़्रिक्री से बिताए वो दिन मुझे आज भी गुदगुदा देते हैं. उस मेले को याद करती हूँ तो बहुत खट्टी-मीठी यादें मन के दरवाज़े पे दस्तक देने लगते हैं.
              

 पहले बात करते है रामलीला में होने वाले "भरत मिलाप" की. उस दिन मंच पर रामलीला से हट कर कोई और ही प्रसंग पर नाटक का मंचन किया जाता था. बाहर से जो मंडली आयी होती थी वो तो रहते ही थे, पर हमारे परिवार के कई सदस्य भी रामलीला व अन्य मंच पर होने वाले कई कार्यक्रमों में हिस्सा लेते थे. कभी मामी जी तो कभी "जिया"( बड़ी बहन ) अपनी कोई सुंदर सी साड़ी खोज खोज के परेशान होती थीं, बाद में पता लगता था की साड़ियाँ तो भाई लोग ले गए क्यूँकी शाम को उन्हें कभी सीता, कभी मंदोदरी या कोई भी स्त्री पात्र निभाना होता था इसलिए भाई लोग बड़ों की आँखो में धूल झोंक कर सुंदर साड़ियाँ पर "डाका" डाल देते थे.
              
 एक बार भरत मिलाप के दिन महाभारत का नाटक मंच पर खेला जा रहा था. द्रौपदी के चीर हरण का दृश्य होने वाला था. जो स्थानीय पुरुष कलाकार द्रौपदी का "role" कर रहा था, उसे नौ साड़ियाँ पहनायी गयी थी और बताया गया था की आठ साड़ियाँ चीर हरण के दृश्य में दुशासन द्वारा उतारी जायेंगी, नवीं साड़ी छोड़ दी जायेगी ये दिखाने के लिए की अब श्री कृष्ण लाज बचा लेने  के लिए चीर बढ़ा देंगे. यही स्थिति दुशासन बने पात्र को भी समझा दी गयी थी, सब तैयार थे तभी किसी और कलाकार को साड़ी की कमी पड़ गयी तो वो द्रौपदी की नौ में से एक साड़ी अपने पहनने के लिए ले गया, यानी द्रौपदी ने अब आठ साड़ियाँ ही पहनी थीं. ख़ैर, नाटक शुरू हुआ और चीर हरण का दृश्य  आया, दुशासन को साड़ी की कमी वाली बात नहीं पता थी, वो चीर हरण करने लग गया सात तक तो ठीक था लेकिन आठवीं साड़ी खीचने पर द्रौपदी बना कलाकार घबरा गया और लाज बचाओ की ज़बरदस्त गुहार लगाने लगा सबको लग रहा था की आज ये कितनी उम्दा "acting" कर रहा है सारे दर्शक साँस रोके देख रहे थे, पर उसकी लाख गुहार ना मान कर दुशासन ने आठवीं साड़ी भी खींच दी तो सामने दृश्य था की द्रौपदी पटरे वाले "under wear" में खड़ी थी. नीचे से वस्त्र विहीन ऊपर ब्लाउज़,मुकुट और साज सज्जा, हँसते-हँसते मुझ समेत सभी दर्शक लोट पोट हो गए थे. बेचारा द्रौपदी बना कलाकार उसका तो सचमुच ही भरी सभा में चीर हरण हो गया. ये क़िस्सा याद कर हम आज भी ख़ूब हँसते है. ऐसे अनेक क़िस्से है, असल में कलाकार स्थानीय होते थे बजट की कमी होती थी इस लिए ऐसी कई समस्याए हो जाती थीं, पर मनोरंजन तो भरपूर होता था और यादें अभी तक मन में ताज़ा हैं.


          
मेले वाले दिन बड़ी गहमा गहमी होती थी. दिन भर मेला और शाम को रावण दहन का कार्यक्रम होता था, हम सब सुबह से ही अपने नए कपड़े और मेले में क्या क्या ख़रीदना है इस पर मिल कर गोल मेज़ जैसी "conference" में व्यस्त होते थे. फिर बारी आती थी मेला देखने के लिए पैसे मिलने की, दोनो मामा मामी और भी बड़ों से कड़क दस दस का नोट पा कर हम फूले नहीं समाते थे,"आज मैं ऊपर आस्माँ नीचे " वाली "feeling" होती थी. ख़ुश-ख़ुश मन से हम टोली बना कर मेले का आनंद लेने जाते थे. मेले में एक ओर राम जी,व दूसरी ओर रावण का दरबार भी बना रहता था,और पीछे खड़ा होता था दस मुँह वाला रावण का पुतला. अधिकतर हमारे ममेरे बड़े भाई उस दिन राम बनते थे और पूरे मेले के दौरान, सादे सरल गाँव वाले उन्हें राम जी का रूप मान कर उनके चरण स्पर्श कर कुछ चढ़ावा चढ़ा कर आशीर्वाद ले जाते थे. ये सब देख हमें मन ही मन ख़ूब मज़ा आता था, लगता था, अरे अभी कल ही तो भैया सही से नहीं पढ़ने के लिया मामा जी से डाँट खा रहे थे और आज राम जी बन कर "attitude" दिखा रहे हैं. बड़ा मज़ेदार अनुभव होता था.


             
अब शुरू होता था मेला दर्शन, बड़ा ही विचित्र और मनभावन दृश्य होता था, कहीं तेल में जलेबी छन रही है तो कहीं समोसे. कहीं चाट बिक रही है तो कहीं बुनिया, बताशा. कान फाड़ू फ़िल्मी गाने लगातार बजते रहते थे. हम सभी एक दूसरे का हाथ पकड़ हर दुकान का मुआयना करते. कपड़े, साज सिंगार का सामान, मिट्टी के खिलौने, हीरो हीरोईन के पोस्टर, नक़ली ज़ेवर से ले कर चूरन-चटनी तक का सामान मिलता था. वैसे तो हम शहर में रहते थे पर उस गँवई मेले का रस हमें बड़ा आनंदित करता था. आज के इस परिष्कृत "mall" वाले माहौल में उस धूल उड़ते मेले में चाट खाने के बारे में तो आप सोच भी नहीं पायेंगे, पर हम ने बड़ा मज़ा किया है और वो बातें याद कर बीता हुआ एक एक पल सजीव हो जाता है. घूम घूम कर हम अपनी पसंद की चीज़ें लेते, झूला झूलते मस्ती करते और अंत में आनंद लेते उस दृश्य का जब शाम को राम जी बाण चला कर रावण के पुतले को जला देते, ढोल नगाड़े ,जय सिया राम के जय कारे और जलते हुए पुतले से आती बम-पटाखों की आवाज़,और आकाश को छूती आग की लपटे सच में अद्भुत अनुभव था. इसी के साथ मेला समाप्त होता था और थके हारे हम भी अपनी ख़रीदी चीज़ें लिए घर आ कर सो जाते थे. 
लेकिन राम जी की, राम लीला की इतनी बातें हुयी हैं तो एक राम भजन तो होना ही चाहिये, तो लीजिए मेरे favourite में से एक आप के साथ share कर रही हूँ.

"झाँकी सीता-राम की"

आओ बसायें मन मंदिर में झाँकी सीता-राम की,
जिसके मन में राम नहीं वो काया है किस काम की,
आओ बसायें.

गौतम नारी अह्लिया सारी,श्राप मिला अति भारी था,
शिला रूप से मुक्ति पायी चरण राम ने डाला था,
मुक्ति मिली तब वो बोली,जय जय सीता-राम की,
जिसके मन में राम नहीं,
आओ बसायें.

जाति पाती का तोड़ के बंधन,शबरी मान बढ़ाया था,
हँस हँस खा के बेर प्रेम से,राम ने ये फ़रमाया था,
जाति पाती का.
हँस हँस .
प्रेम भाव का भूखा हूँ,चाह नहीं इस चाम की,
जिसके मन में राम नहीं.
आओ बसायें.

सागर में लिख राम नाम,नल नील ने पत्थर तैराये,
इसी नाम से हनुमान जी सीता मैया की सुध लाए,
भक्त विभीषण के मन में तब जोत जगी श्री राम की,
जिसके मन में राम नहीं.
आओ बसायें.

दयालु बन कर मेरे प्रभु ने,भक्तों का दुःख टाला था,
कृपालु बन के मेरे राम ने दुष्टों को संहारा था,
आओ मिल कर महिमा गायें,जय जय जय श्री राम की,
जिसके मन में राम नहीं,वो काया है किस काम की,
आओ बसायें मन मंदिर में झाँकी सीता-राम की,
जिसके मन में राम नहीं.
आओ बसायें.
 Listen to this song here: https://www.youtube.com/watch?v=-h1T_-C6HTQ            

Friday, 22 September 2017

नवरात्रि शृंखला

   नवरात्रि,दुर्गापूजा व दशहरा की आप सभी को हार्दिक व मंगल शुभकामनाएँ🙏


शारदीय नवरात्र के आते ही मेरा मन प्रसन्न हो जाता है,और मेरे मन के अंदर छुपी हुयी इक चंचल लड़की मेरी ऊँगली पकड़ कर ले जाती है मुझे अपने अतीत में,जहाँ शुरुआत होती है दुर्गा पूजा व व्रत से.
पर बचपन में हमें ये सब कहाँ समझ आता था.....मन तो लगा रहता था की स्कूल की छुट्टी हो और हम अपने ननिहाल जायें और ये पूरा समय उल्लास,उमंग और बेफ़िक्री से दशहरा मनायें. तब "social media" हाथ में "smart phone" तो होता नहीं था. बहुत होता तो "tv" पे कोई कार्यक्रम देख लेते थे. इसीलिए पूरे साल इंतज़ार करते थे दशहरे का पूरा आनंद उठाने के लिये. जब भी अतीत की उन गलियों में जाती हूँ तो मन इक नए उत्साह से भर जाता है. इक तो हम अपने ननिहाल में "VIP" गेस्ट होते थे तो अलग ही मज़ा था. साथ ही वहाँ होने वाले कार्यक्रम जैसे रोज़ रात को राम लीला, दिन में दुर्गा पूजा, तरह तरह के पकवान, नए कपड़े रोज़ किसी न किसी के घर माता की चौकी के नाम पर गाना बजाना अंतिम दिन "भरत मिलाप " के बाद वो गाँव का मेला.....अहा...क्या आनंद आता था.हमारी इक पूरी टोली थी जिन्हें अब "cousins" कहते है पर तब तो वो सब चचेरे,ममेरे भाई बहन सखी,सखा सब कुछ हुआ करते थे.
                 
मित्रों,यहाँ मैं बात कर रही हूँ "माता की चौकी" की या देसी भाषा में कहूँ तो स्त्रियों की टोली बना कर "देवी गीत"गाने की. जिसमें रोज़ किसी न किसी के घर जमघट लगता है,और आस -पास की औरतें जमा होती हैं और रोज़-रोज़ की चिक-चिक,झिक-झिक से निकल कर देवी की आराधना करने के लिए गाना, बजाना और नाच के आनंद का रस लेती हैं. पूजा,पाठ तो इसमें क्या ही होता है पर औरतों का मनोरंजन तो ख़ूब होता है. नित्य नये सुंदर कपड़े,"matching" चूड़ियाँ, ज़ेवर और मनभावन हार-सिंगार. इसी के साथ शुरू होती है पहले पूजा फिर ढोलक की थाप के साथ झूम के नृत्य संगीत का कार्यक्रम बीच बीच में हास परिहास भी चलता रहता है. ये नौ दिन औरतों की बहुत व्यस्त  लेकिन प्रसन्न दिनचर्या रहती है.इस में सभी बढ़ चड़ कर हिस्सा लेती है सबमे इक अनकही होड़ सी होती है अपना नया गाना सुनने की सबकी डायरियाँ खुल जाती है और खोज होती है नए नए देवी गीतों की. सब की चाह होती है की वो नए सुर ताल के साथ नए राग का कोई मोहक भजन गा कर सबके आकर्षण का केन्द्र बन जाये.

इन पावन नौ दिनो को और भी भक्तिमय बनाने के लिए आप के सामने संझा भोर के माध्यम से ९ देवी गीतों की शृंखला प्रस्तुत करने का प्रयास है. आशा है मेरी तरह आप को भी अपने बचपन की नवरात्रि-दशहरा की छुटियाँ याद आएँगी. माता की चौकियों में गा कर ख़ूब वाह वाही भी लूट सकते हैं. 


"प्रथम दिवस"- मैया मोरी

मैया मोरी अम्बे तुम ही लाज की रखैया,मैया मोरी अम्बे तुम ही लाज की रखैया,
मैया मोरी.
गईया माँगू,बछडू माँगू और माँगू दुहवैया,
एक अम्बे और माँगू,एक अम्बे और माँगू.
दूध के पीवैया,
मैया मोरी अम्बे.

शाला माँगू ,दुशाला माँगू और माँगू चुनरिया,
एक अम्बे और माँगू,एक अम्बे और माँगू,
चुनर के ओढ़वैया .
मैया मोरी अम्बे.

चूड़ियाँ माँगू,बिन्दिया माँगू और माँगू सिंदूरवा.
एक अम्बे और माँगू,एक अम्बे और माँगू,
रूप के देखवयिया.
मैया मोरी अम्बे.

बालक माँगू,साजन माँगू और माँगू 
उमरिया,
एक अम्बे और माँगू,एक अम्बे और माँगू ,
सुहाग के रखैया.
मैया मोरी अम्बे.

मैया मोरी अम्बे तुम ही लाज की रखैया,
मैया मोरी.






"दिव्तिय दिवस"-माँ से मिलन 

आज होगा माता रानी से मिलन,
जयकारा माँ का बोलते चलो,
जयकारा माँ.
बोलते चलो,बोलते चलो,
जयकारा माँ.

मैया रानी देंगी तुम्हें दर्शन,
जयकारा माँ का बोलते चलो,
जयकारा माँ.
बोलते चलो,बोलते चलो,
जयकारा माँ.

माँ साँची माँ का नाम है साँचा,
साँची माँ का धाम है साँचा,
साँचे मन से लगा के लगन,
जयकारा माँ का बोलते चलो,
जयकारा माँ.
बोलते चलो,बोलते चलो,
जयकारा माँ.

खुल गए भक्तों भाग्य हमारे,
माँ ने बुलाया अपने द्वारे,
आज होगा सफल जीवन,
जयकारा माँ का बोलते चलो,
जयकारा माँ.
बोलते चलो,बोलते चलो,
जयकारा माँ,

पूरी होगी सबकी मनौती,
आज जगेगी क़िस्मत सोती,
खोले बैठी भवानी,भवन,
जयकारा माँ का बोलते चलो,
जयकारा माँ,
बोलते चलो,बोलते चलो,
जयकारा माँ.

आज होगा माता रानी से मिलन,
जयकारा माँ का बोलते चलो,
जयकारा माँ.
बोलते चलो.


"तृतीयदिवस"-ताली बजा लेना 

आज है जगराता माई का माँ को मना लेना,
अरे ऐ,भैया जी ज़रा ताली बजा लेना,
हाथ उठा के ज़ोर लगा,जयकारा लगा लेना,
अरे ऐ बहना जी,ज़रा ताली बजा लेना,
आज है जगराता माई.
अरे ऐ.

मिलेगा जो माँगोगे तुम,कोई नहीं शंका,
सारी दुनिया में बजता है माई का डंका,
माई के दर पे जोत जली है,मेरे मैया के दर पे जोत जली है,
शेरावाली के दर पे जोत जली है,
ज़रा सर को झुका लेना,
अरे ऐ,बहना जी ज़रा ताली बजा लेना,
अरे ऐ.

ये है मेहरां वाली मैया,सबको खिलाती है,
बिछड़े हुए सभी को मैया पल में मिलाती है,
माई के दर पे जोत.
मेरे माई के दर पे.
ज़रा सर को झुका लेना,
अरे ऐ,भैया जी ज़रा ताली बजा लेना,
अरे ऐ,बहना जी.

चिंतापूरनी मैया सबकी चिंता मिटाती है,
हारे हुए सभी को मैया बाज़ी जिताती है,
अरे आज सुनायें माँ की महिमा,
तू संग में गा लेना,
माई के दर पे जोत,
मेरे माई के दर पे,
ज़रा सर को झुका लेना,
अरे ऐ,भैया जी ज़रा ताली बजा लेना,
अरे ऐ,बहना जी.

हाथ उठा के ज़ोर लगा के जयकारा लगा लेना,
अरे ऐ,भैया जी ज़रा ताली बजा लेना,
अरे ऐ,बहना जी.

आज है जगराता मैया का,माँ को मना लेना,
अरे ऐ,भैया जी,
अरे ऐ,बहना जी,ज़रा ताली बजा लेना,
अरे ऐ,भैया जी.
अरे ऐ,बहना जी.
Listen to this song here: https://www.youtube.com/watch?v=FYPB74ZIrh4





"चतुर्थ दिवस"-पवन धीरे चलो री

मोरी मैया की चुनर उड़ी जाए,
पवन धीरे धीरे चलो री,
धीरे चलो री पवन,धीरे चलो री,
मोरी मैया की.
पवन धीरे.

कैसे भवानी तोहे ध्वजा मैं चढ़ाऊँ,
कैसे भवानी.
ध्वजा मैं चढ़ाऊँ,ध्वजा मैं चढ़ाऊँ,
हो मैया,ध्वजा लहरिया खाये,
पवन धीरे धीरे चलो री,
ध्वजा लहरिया खाये,
पवन धीरे,
धीरे चलो री.

कैसे भवानी तोहे फुलवा चढ़ाऊँ,
कैसे भवानी.
फुलवा चढ़ाऊँ,मैं फुलवा चढ़ाऊँ,
फुलवा तो गिरि गिरी जाए,
पवन धीरे धीरे चलो री,
धीरे चलो री.

ओ मोरी मैया की चुनर उड़ी जाये,
पवन धीरे.
धीरे चलो री पवन धीरे चलो री,
मोरी मैया की चुनर उड़ी जाये,
पवन धीरे.
धीरे चलो री.

कैसे भवानी तोरी आरती उतारूँ,
कैसे भवानी आरती उतारूँ तोरी आरती उतारूँ,
ओ मैया,जोत ये बुझ बुझ जाये,
पवन ज़रा धीरे चलो री,
मैया जोत ये बुझ बुझ जाये,
पवन ज़रा धीरे चलो री,
पवन धीरे.
धीरे चलो री.

ओ मोरी मैया की चुनर उड़ी जाए,
पवन धीरे धीरे चलो री,
मोरी मैया.
पवन धीरे.


"पंचम दिवस"-पावँ पैजनिया 

छुम छुम छननन बाजे,मैया पावँ पैजनिया,
छुम छुम .
मैया पावँ.
छुम छुम .

कौन गढ़ाए मैया पावँ पैजनिया,
कौन उढावे चुनरिया,मैया पावँ पैजनिया,
छुम छुम छननन बाजे,मैया पावँ पैजनिया ,
छुम छुम .
मैया पावँ.

सुनरा गढावे मैया पावँ पैजनिया,
दर्ज़ी ओढ़ावे,चुनरिया,मैया पावँ पैजनिया,
छुम छुम छननन बाजे,मैया पावँ पैजनिया,
छुम छुम .
मैया पावँ.

किसे चढ़ाऊँ मैया पावँ पैजनिया,
किसे ओढ़ाऊ ओढिनिया,मैया पावँ पैजनिया,
छुम छुम छननन बाजे,मैया पावँ पैजनिया,
छुम छुम .
मैया पावँ.

दुर्गे चढ़ाऊँ मैया पावँ पैजेनिया,
अम्बे ओढ़ाऊ ओढिनिया,मैया पावँ पैजनिया,
छुम छुम छननन बाजे,मैया पावँ पैजनिया,
छुम छुम .
मैया पावँ.
Listen to this song: https://www.youtube.com/watch?v=IifUjmww7NQ





"षष्ठम् दिवस"-जगमग जगमग 

जगमग जगमग जोत जलत है,
जोत में दुर्गा मैया झूला झुलत है,
सज रहे सोलह सिंगार हो,
ओ जननी,सज रहे सोलह सिंगार हो,
जगमग जगमग.
जोत में दुर्गा मैया.
सज रहे .
ओ जननी .

काहे के दियना काहे के बाती,
काहे के तेल में जले सारी राति,
माटी के दियना रुई के बाती,
घीया के जोत जले,माँ सारी राति,
लुक छिपी ,लुक छिपी मैया खेलत है,
छोटे छोटे पावँ में घुँघरू बजत है,
घुँघरू बजत है ,हाँ घुँघरू बजत हैं,
घुँघरू के होवे झनकार हो,
हो मैया,सज रहे सोलह सिंगार हो,
जगमग जगमग.
जोत में दुर्गा मैया.
सज रहे.
ओ जननी .

काहे के घुँघरू काहे के तार हो,
काहे के बाजे पखावज,देवी के द्वार हो,
सोने के घुँघरू,चाँदी के तार हो,
चंदन के बाजे पखावज,देवी के द्वार हो,
दमदम दमदम,मानर बजत हैं,
रुनक-झुनक मोरी मैया नचत हैं,
मोहत है सारा , संसार हो,
हो मैया,सज रहे सोलह सिंगार हो,
जगमग जगमग.
जोत में दुर्गा मैया.
सज रहे.
ओ जननी .

जगमग जगमग जोत जलत हैं,
जोत में दुर्गा मैया,झूला झुलत हैं,
सज रहे सोलह सिंगार हो,
हो मैया.
हो जननी सज रहे सोलह सिंगार हो.




"सप्तम दिवस"-नदी किनारे

नदी किनारे मैया का घाट,मैया का घाट,
कर रही सखियाँ पूजा पाठ ,
नदी किनारे.
कर रही सखियाँ.

अम्बे हो तुम महारानी हो तुम,दुर्गा हो तुम महाकाली हो तुम,
अम्बे हो तुम .
गौरी हो तुम,भवानी हो तुम,शक्ति हो तुम,बलशाली हो तुम.
जिसके सर पे रख दे तूँ हाथ,
उसके तो हो जायेंगे ठाठ,
नदी किनारे .
कर रही सखियाँ.

लाल  चुनरिया,चोला है लाल,लाल माँ की बिंदिया का हीरा भी लाल,
लाल चुनरिया.
लाल लाल कलशे में ज्योति है लाल,
लाल लाल झंडे में गोटा है लाल,
हम भी ले आए पूजा का थाल,
खोलो पुजारी मंदिर का द्वार,
नदी किनारे .
कर रही सखियाँ.
हाँ नदी किनारे.

मैया भवानी है तारती,चलो सखी करें आरती,
मैया भवानी है .
संकट सारे मॉ टालती,नैया भँवर से उबारती,
भजन करू मैं दिन रात,भक्ति का मैया छूटे ना साथ.


नदी किनारे मैया का घाट,हाँ,मैया का घाट,
भवानी मैया की पूजा है आज,
भवानी मैया,
नदी किनारे मैया का घाट,मैया का घाट,
सखियाँ कर रही पूजा पाठ.
नदी किनारे.
सखियाँ कर रही.




"अष्टम दिवस"-रंगरेजिया


रंगरेजिया नौ रंग,रंग दे माँ की चुनरिया,
नौ चुनरी नौ रंग वाली,ओढ़ेगी माँ शेरावाली,
नौ भक्ति के रंग से रंग दे मेरे मन की गागरिया .
रंगरेजिया नौ रंग दे.
रंग दे माँ की चुनरिया,रंग दे माँ की चुनरिया.

पहली चुनर का रंग हो लाल,सुनो कथा भक्ति की विशाल,
दूजी चुनरी हरी हरी,सुन लो कीर्तन करे कमाल.
पहली चुनर.
याद करूँ तो पीली ओढा के,मोहे बना दे बावरिया.
रंगरेजिया नौ रंग दे.
रंग दे माँ.

माँ सेवा में मन जो रचे,चुनरी माँ को श्वेत जँचे,
माँ सेवा में.
रंग जामुनी अरचन में,वन्दना में गुलाबी सजे.
काली चुनरिया दास ओढ़ावे,नाचे छम छम जोगनिया.
रंगरेजिया नौ रंग दे.

रंग दे माँ.

भक्ति रंग है सबको चढ़ी,बैगनि हो तारों जड़ी,
भक्ति रंग है.
नारंगी रंग हो चुनरी,प्रार्थना से रहूँ मैं जुड़ी,
नौ दिन,नौ रंग,नौ भक्ति के सहारे,
नौ दिन,माँ दुर्गा की आरती उतारें.
रंगरेजिया नौ रंग,रंग दे माँ की चुनरिया.
रंग दे माँ की चुनरिया.
रंगरेजिया रंग दे.




"नवमी"-कंगना करे शोर

कंगना खनक करे शोर,गढावे कौन मैया बता दे,
मैया बता दे,मेरी मैया बता दे,
कंगना खनक.
गढावे कौन.

ऐसो में कंगना क्या ब्रह्मा जी लाये,मैया शारदा खनक सुर जमाये.
ऐसो कंगना .
वेद सूनावे चारों ओर .
गढावे कौन मैया बता दे.
कंगना खनक.
गढावे कौन.

ऐसो में कंगना क्या विष्णु जी लाए,
लक्ष्मी मैया हीरा जड़ाए.
ऐसो कंगना.
झिलमिल चमक हिलोल,झिलमिल चमक हिलोल.
गढावे कौन मैया बता दे.
कंगना खनक.
गढावे कौन.

ऐसो में कंगना क्या शंकर जी लाए,
भंगिया का रंग कैसा इसमें चड़ाये,
ऐसो कंगना.
नंदी नाचे,नाचे मोर,नंदि नाचे,नाचे मोर.
गढावे कौन मैया बता दे.
कंगना खनक.
गढावे कौन.

मैया कहें,कंगना भक्त ले आए,श्रद्धा,भक्ति,मनोहर जड़ाए.
मैया को मनायें, कर ज़ोर,हो मैया को मनायें कर ज़ोर.
मैया कहें.

कंगना खनक करे शोर,गढावे कौन मैया बता दे.
मैया बता दे,मैया बता दे.
कंगना खनक.

Listen to the song here: https://www.youtube.com/watch?v=UZAVTirS1HA&t=1270s