"स्वछाग्रही" ,सत्याग्रही के बाद ये शब्द नए चलन में आया है.मित्रों,हमारे देश,समाज,में सफ़ाई का ना तो चलन नया है ना ही सफ़ाई रखने में कोई कोताही की जाती है,हाँ स्वच्छाग्रही शब्द ज़रूर नया है. जो स्पष्ट रूप से सफ़ाई अभियान में कार्य करने वालों के लिए प्रयोग किया जाता है.
माननीय प्रधान मंत्री जी भी सफ़ाई अभियान को काफ़ी महत्व देते है,कई योजनायें चलती रहती है.जो की इक बहुत अच्छा प्रयास है. क्यूँ की मेरे पति इक प्रशासनिक अधिकारी है तो बहुत क़रीब से मुझे भी ऐसे कई कार्यक्रम देखने को मिलते है. कभी रैली, कभी सभा तो कभी कोई अन्य कार्यक्रम. पर इनसे होता क्या है? लोग सफ़ाई से ज़्यादा अपनी सेल्फ़ी लेने में लगे रहते है.सबको लगता है की अगले दिन अख़बार में झाड़ू के साथ मेरी फ़ोटो छप जाए,और कार्यक्रम को सफल मान लिया जाये.जैसे इक फ़ैशन सा बन गया है की सफ़ाई अभियान से जुड़ जाओ.चाहे वो कोई N.G.O. हो या सरकारी अभियान या वालंटियर्स.
कुछ लोग वास्तव में अच्छा काम कर रहे हैं तो कुछ 'सेल्फ़ी' से ही ख़ुश हैं.
जन्म लेने के साथ ही हमें घर,स्कूल हर जगह सफ़ाई का महत्व समझाया जाता है,किंतु प्रश्न ये है की हम समझते कितना है.देखा जाए तो हर आदमी अपनी स्वच्छता तो पूरी करता है लेकिन ये सजगता सिर्फ़ अपने तक ही सीमित रहती है. अपना शरीर,अपना घर साफ़ और अच्छा दिखे क्या इतना ही काफ़ी है?...नहीं,पर करते हम ऐसा ही है.
हम क्यूँ अपने से आगे की बात नहीं सोचते हैं? अपनी सफ़ाई,अपना घर,इससे बाहर निकलना होगा और अपने आस पास की जगह, कार्यस्थल,पार्क,सड़क इस तरह की सभी सार्वजनिक स्थलों के प्रति हमें सोचना होगा.
देखिए लोक संगीत कैसे सदियों से सफ़ाई का पाठ पढ़ाता आ रहा है. आमतौर पर स्वच्छता पे दिया जाने वाला जो ज्ञान उपदेशात्मक लगता है यानी की 'boring' गाने हँसी ठिठोलि में बता जाते हैं. मिसाल के तौर पर अपने दो पसंदीदा भोजपुरी गीतों को पेश कर रही हूँ.
तो सफ़ाई करते करते मनोरंजन का भी रस लीजिए.
पहला गीत दादरा धुन पे रचा गया है:
निमिया पतैया झरी जाए हो, अगनवा बहारू क़यिसे
अगनवा बहारू क़यिसे
अगनवा बहारू कयिसे,
निमिया पतैया झरी जाए हो,अगनवा बहारू क़यिसे
ओहि रे नगरियाँ ससुर जी के डेरा,
ससुर जी के.
पगड़ी देखत जिया जाए रे,अगनवा बहारू कयिसे.
निमिया पतैया झरी जाए हो,अगनवा बहारू क़यिसे.
अगनवा बहारू.
ओहि रे नगरियाँ जेठ जी के डेरा,
जेठ जी के डेरा.
तनिको छुवत जिया जाए हो,अगनवा बहारू कयिसे.
निमिया पतैया झरी जाए हो,अगनवा बहारू क़यिसे.
अगनवा बहारू.
ओहि रे नगरियाँ देवर जी के डेरा,
देवर जी के डेरा.
अँखियाँ लड़त जिया जाए हो,अगनवा बहारू क़यिसे.
निमिया पतैया झरी जाए हो,अगनवा बहारू कयिसे.
अगनवा बहारू.
निमिया पतैया झरी जाए हो,अगनवा बहारू क़यिसे.
अगनवा बहारू कयिसे.
दूसरा गीत कहरवा ताल पर है. यह एक बहुत पारम्परिक गीत है. ख़ास तौर पे पूर्वी उत्तर प्रदेश में गया जाने वाला यह गाना थेठ भोजपुरी में है. हो सकता है कुछ शब्दों का अर्थ आपको समझ ना आए, उनके मतलब मैंने नीचे दिए हैं.
होत भिनसहरा सासु हमके जगावेली,
हमके जगावेली,
की उठु बहुवर ना,उठी के अँगना बहारू,
की उठु बहुवर ना,
होत भिनसहरा सासु हमके जगावेली,
हमले जगावेली.
अँगना बहरली दुवरवा घुरवा डरली,
दुवरवा घुरवा डरली,
अँगना बहरली.
की ताके लागी ना,की ताके लागी ना,
परदेसिया के रहियाँ,की ताके लागी ना,
परदेसिया.
कौने ही रंगवा बाटें,तोहरे हो सजनवा,
तोहरे हो सजनवा,
कौने ही रंगवा बाटें, तोहरे हो सजनवा,
तोहरे हो सजनवा.
कवन रंगवा ना,कवन रंगवा ना,
बाँधे सिरवा के पगड़ियाँ,कवन रंगवा ना,
सँवरे ही रंगवा बाँटे,हमरे हो सजनवा,
हमरे हो सजनवा,सबुज रंगवा ना,
सबुज रंगवा ना,
बाँधे सिरवा के पगड़ियाँ सबुज रंगवा ना,
बाँधे सिरवा के.
होत भिनसहरा सासु हमके जगावेली,
हमके जगावेली.
की उठु बहुवर ना,उठी के अँगना बहारू,
की उठु बहुवर ना.
होत भिनसहरा सासु हमके बोलावेलि,
हमके बोलाबेली ,
की आउ बहुवर ना,की आउ बहुवर ना,
आये के सेजिया बीछाऊ,की आउ बहुवर ना,
सेजिया बिछौली,रूपवॉ सँवरली,
रूपवा सँवरली,की जोहे लागी ना,
की जोहे लागी ना,
परदेसिया के रहियाँ की जोहे लागी ना,
होत भिनसहरा सासु हमके जगावेली,
हमके जगावेली,हमके जगावेली,
की उठु बहुवर ना,
उठी के अँगना बहारू.
ये गीत बहु प्रचलित "कँहरवा" ताल पे रचित है.इस में प्रयुक्त कुछ शब्द बहुत कठिन हैं,इसलिए नीचे मैं कुछ शब्दों का अर्थ भी बता दे रही हूँ.
"भिनसहरा" अर्थ भोर का समय.
"दुवरवा" अर्थ द्वार पर.
"घुरवा" अर्थ कूडा/कचरा.
"सबुज" अर्थ हरा रंग.
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