Tuesday, 19 September 2017

अरे हम से बलम की ऐसी बिगड़ी


जहाँ प्यार है,मनुहार है,शृंगार है,वही पर थोड़ी  मीठी तकरार भी है.ये गीत नायक नायिका के उसी सुंदर झगड़े का बयान करता है.
         साथ ही साथ गीत स्त्री सुलभ ईर्ष्या भी बताती है. ये उसके मन का डर ही है जो उसे लगता है की यदि पुरुष उससे ख़ुश नहीं है तो निश्चय ही किसी और स्त्री के पास मन बहलाने चला जाता होगा.वो बेचारी अपनी अनदेखी सौत को मन ही मन कोसती रहती है.मन में असुरक्षा का भाव बहुत रोचक है.




अरे हम से बलम की ऐसी बिगड़ी,
ऐसी बिगड़ी,
हमरी कतरी सुपारी ना खायें,
हाय हाय,हमरी कतरी सुपारी ना खायें,
अरे हम से बलम.

सोने की थरिया में ज़्योना परोसा,
अरे हम से बलम की ऐसी बिगड़ी,
ऐसी बिगड़ी,
वो तो खावे सवत घर जायें,
अरे हम से बलम.
हाय हमरी कतरी सुपारी ना खायें,
अरे हम से बलम.

बेला चमेली का सेज बिछाया,
अरे हमसे बलम की ऐसी बिगड़ी,
ऐसी बिगड़ी,
वो तो सोवे सवत घर जाए,
अरे हम से बलम.
हाय हमरी कतरी सुपारी ना खायें,
अरे हम से बलम.

लौंग इलाइची का बीड़ा लगाया,
अरे हम से बलम की ऐसी बिगड़ी,
ऐसी बिगड़ी,
वो तो रचेबे सवत घर जायें,
अरे हम से बलम की ऐसी बिगड़ी,
ऐसी बिगड़ी,
हाय हमरी कतरी सुपारी ना खायें,
अरे हम से बलम की ऐसी बिगड़ी,
ऐसी बिगड़ी,

वो तो पीवें,घर महकाय,
वो तो रचेबे सवत घर जायें,
वो तो सोवे सवत घर जाए,
वो तो खावे सवत घर जायें,

अरे हम से बलम की ऐसी बिगड़ी,
ऐसी बिगड़ी,
हाय हमरी कतरी सुपारी ना खायें,
अरे हम से बलम की ऐसी बिगड़ी,



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