रेल भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रही है। मिलने बिछड़ने का शायद ही कोई क़िस्सा रेल के बिना पूरा होता है। अशोक कुमार का "रेल गाड़ी रेल गाड़ी" हो, राजेश खन्ना का "मेरे सपनों की रानी" या ट्रेन पकड़ने को प्लाट्फ़ोर्म पर दौड़ती सिमरन , हिंदी फ़िल्म जगत ने रेल को कई रूप दिए हैं.
रोचक बात है की इस श्रेणी में लोक गीत भी पीछे नहीं हैं। आज जब देश में बुलिट ट्रेन की शुरुआत हो रही है, आइए याद करते हैं भोजपुरी के इस्स लोकप्रिय गीत को जिसमें हमारी नायिका रेल को ही अपना दुश्मन मान बैठी है क्यूँकि वह उसके पति को उससे दूर ले जा रही है.
इस गीत में विरह भाव तो है ही,साथ ही रेल का हमारे पुराने समय व समाज से कितना गहरा जुड़ाव है,ये भी दर्शाता है.
रेलिया बैरन पिया को लिए जाए रे,
रेलिया बैरन.
जौने टिकटवा से पिया मोरे ज़ईहें,
पिया मोरे ज़ईहें हो पिया मोरे ज़ईहें
बरसे पनिया.
बरसे पनिया टिकट गली जाए हो,
रेलिया बैरन.
जौने शहरवा में पिया मोरे ज़ईहें,
पिया मोरे ज़ईहें हो पिया मोरे ज़ईहें
लगी जाए अगिया.
लगी जाए अगिया शहर ज़री जाए हो,
रेलिया बैरन.
जौने मलिकवा के पिया मोरे नौकर,
पिया मोरे नौकर हो पिया मोरे नौकर
पड़ी जाए छापा.
पड़ी जाए छापा पुलिस लई जाए हो,
रेलिया बैरन.
जौने सवतिया के पिया मोरे आशिक़,
पिया मोरे आशिक़ हो पिया मोरे आशिक़,
गिर जाए बिजुरी.
गिर जाए बिजुरी सवति मरी जाए हो,
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