Monday, 18 September 2017

मैं ज़ालिम चोर बजनी बिछिया लायी



"थोड़ा धीरे हँसा करो.
  दबे पाँव चलो.
 अरे घूँघट तो ले लो." 
हर दिन ऐसी बातें सुनने वाली लड़की जब ढोलक ले के गाना गाने बैठती है तो मन की पूरी भड़ास निकालने का ठान के बैठती है. लोक गीत उसे कुछ पलों के लिए अपनी वास्तविक चंचलता दिखाने का अवसर देते हैं. जो वो छोटी सी उम्र में बहु का लबादा ओढ़े नहीं कह पाती, शायद ऐसे गीतों से व्यंग के रूप में कह जाती है.

ये सामान्य रूप से "दादरा" ताल पे आधारित एक लोक गीत है.जिसमें नायक नायिका के हास -परिहास का वर्णन है.



मैं ज़ालिम चोर बजनी बिछिया लायी,
मैं ज़ालिम चोर.

अरे राजा कहें,गोरी अकेले में आना,
अरे राजा.
मैं ज़ालिम चोर.
मैं ज़ालिम चोर नन्दि ले के आयी,
मैं ज़ालिम चोर.

अरे राजा कहें,गोरी अन्धेरे में आना,
अरे राजा.
मैं ज़ालिम चोर.
मैं ज़ालिम चोर,दियना ले के आयी,
मैं ज़ालिम चोर.

अरे राजा कहे,गोरी चुपके से आना,
अरे राजा.
मैं ज़ालिम चोर.
मैं ज़ालिम चोर,ठुमका दई के आयी,
मैं ज़ालिम चोर,बजनी बिछिया लायी.

Listen to this song here:https://www.youtube.com/watch?v=Rc57Osz3-54

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