Wednesday, 20 September 2017

अँगूठी जड़ल मोर नगिनवा

मैं मध्यम वर्गीय परिवार से हूँ,लेकिन वर्ग कोई भी हो हमारे देश में,हमारे समाज में स्त्री का ज़ेवर गहने से लगाव सदियों से चला आ रहा है. शायद ही कोई स्त्री होगी जो ज़ेवर देख कर ललच ना जाती हो,और इस कमज़ोरी का फ़ायदा सुनार भी ख़ूब उठाते है. जैसे किसी को दुकान पे कुछ पसंद आ गया पर रक़म पूरी नहीं है तो ख़रीदूँ या ना ख़रीदूँ इस कश्मकश में सुनार की वो आवाज बहुत प्रिय लगती है की, "अरे ले जायिये पैसे कहीं भागे थोड़ी जा रहे है धीरे धीरे दे दीजियेगा", और इस तरह एक न एक ज़ेवर बन जाते है. ज़ेवर-गहने से स्त्री के लगाव के उदाहरण तो हर तरह से हर जगह देखने को मिलते है. 
मुझे बचपन में देखी movie-"साहब बीवी और ग़ुलाम" का एक दृश्य याद आता है,मीना कुमारी को रहमान कहते हैं "तुम्हें परेशानी क्या है, जितने चाहो रोज गहने तुड़वाओ और बनवाओ". मतलब उसका जीवन ही यही तक सीमित कर देते हैं. ऐसे तो अनेक उदाहरण हैं जिनका ज़िक्र फ़िलहाल तो सम्भव भी नहीं,ये सब बताने का मतलब सिर्फ़ इतना था की औरत और ज़ेवर को अलग करना लगभग असंभव सा ही है. 

तो भैया, लोक गीत क्यूँ पीछे रहें, इन गीतों में भी ज़ेवर-गहने का ज़िक्र अनगिनत बार होता रहता है. इसी लिए हमारी बेचारी नायिका एक नगीना खो जाने पर इतनी परेशान है. देवी-देवताओं से भी विनती कर रही है की उसकी अँगूठी मिल जाये.

लोक गीत में हमारे समाज का ही प्रतिबिम्ब दिखता है. थोड़ा सा शृंगार रस का प्रयोग गीत को रोचक बना देता है .


अँगूठी जड़ल मोर नगिनवा,
नगिनवा मोर हेराई गईलें सजना.
अँगूठी.

अँगना में खोजलि,ओसरवा में खोजलि,
खोज अयली सारा मैदनवा,
नगिनवा मोर.
अंग़ूठी.

सास मोरी मरिहैं,ननद गरीयहाएँ,
लहुरा देवरवा बोले बोलियाँ,
नगिनवा मोर.
अंग़ूठी.

लौंग कपूर मनलि,देवी माई थनवा,
मानी अयिली,गोरख नाथ बाबा,
नगिनवा मोर.
अंग़ूठी.

नाहीं तू रोव धाना,नाहीं तू कलपा,
सेजिया पे गिरल तोर नगिवना,
नगिनवा तोर मिली गईले सजनी.

अंग़ूठी जड़ल मोर नगिवना,
नगिनवा मोर मिली गईले सजना.



No comments:

Post a Comment